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जब पैसे की कमी के चलते छोड़ा खाना, मनमोहन सिंह की बेटी ने किताब में खोले राज

  • भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन के बाद उनसे जुड़ी ढेरों कहानियां सामने आई हैं। ऐसी ही कुछ कहानियां मनमोहन सिंह की बेटी की किताब में भी हैं।

Deepak लाइव हिन्दुस्तानSat, 28 Dec 2024 10:45 AM
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भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन के बाद उनसे जुड़ी ढेरों कहानियां सामने आई हैं। ऐसी ही कुछ कहानियां मनमोहन सिंह की बेटी की किताब में भी हैं। इसके मुताबिक कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में स्कॉलरशिप पर पढ़ाई के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री ने बहुत कठिन समय देखा था। तब एक वक्त ऐसा भी आया था, जब पैसे की कमी के चलते उन्हें खाना छोड़ना पड़ता था। उस वक्त वह चॉकलेट खाकर गुजारा किया करते थे। मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने अपनी किताब ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरुशरण’ में यह बातें लिखी हैं। यह किताब साल 2014 में हार्परकॉलिंस से प्रकाशित हुई थी। मनमोहन सिंह ने 1957 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज से इकोनॉमिक्स में फर्स्ट क्लास ऑनर्स की डिग्री हासिल की थी।

दमन सिंह ने इस किताब में बताया कि कैसे उनके पिता अपने गांव के कठिन दिनों और साधारण जीवन की खुशियों के बारे में बताया करते थे। मनमोहन सिंह का जन्म पंजाब के गाह (अब पाकिस्तान का हिस्सा) में हुआ था। दमन याद करती हैं कि एक बार उनकी बहन ने मनमोहन सिंह से पूछा कि क्या आप गाह वापस जाना चाहते हैं? इस पर पूर्व प्रधानमंत्री का जवाब था, नहीं। यह वो जगह है जहां मेरे दादाजी को मारा गया था।

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कैम्ब्रिज में अपने पिता के दिनों के बारे में लिखते हुए दमन ने बताया है कि उनके ट्यूशन और पढ़ाई पर 600 पाउंड खर्च होता था। जबकि पंजाब यूनिवर्सिटी से उन्हें स्कॉलरशिप के तौर पर मात्र 160 पाउंड ही मिला करते थे। बाकी पैसे के लिए वह अपने पिता पर निर्भर थे। दमन आगे लिखती हैं कि मनमोहन सिंह अनावश्यक खर्च से बचते थे। डाइनिंग हॉल में सब्सिडी वाले भोजन दो शिलिंग छः पेंस पर अपेक्षाकृत सस्ते थे। उन्होंने कभी बाहर नहीं खाया। इसके अलावा उन्होंने कभी बीयर या वाइन नहीं पी। इन सबके बावजूद अगर घर से पैसे समय से नहीं पहुंचते थे तो मुश्किल होती थी।

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दमन ने लिखा है कि घर से आए पैसे खत्म होने के बाद वह खाना छोड़ देते थे। वह छह पेंस मिलने वाली कैडबरी की चॉकलेट खाकर गुजारा करते थे। किताब के मुताबिक उन्होंने अपने जीवन में कभी किसी से पैसा नहीं मांगा और अगर जरूरत पड़ी तो अपने सबसे करीबी दोस्त मदन लाल सूडान का रुख किया। जब प्रथम वर्ष की परीक्षा में सिंह फर्स्ट आए तो उन्होंने मदन को लिखा कि अब पैसे न भेजा करें। मनमोहन सिंह ने लिखा कि मुझे लगता है कि करीब 20 पाउंड का इनाम मिलेगा। अगर मैं दबाव डालूं तो संभवत: स्कॉलरशिप भी मिल सकती है। लेकिन मैं इतना लालची नहीं हूं। इसलिए अगले साल तक इंतजार करना पसंद करूंगा।


मनमोहन सिंह की बेटी ने यह भी लिखा है कि कैसे उनके पिता फैमिली गेट-टुगेदर पिकनिक में गाना पसंद करते थे। उन्होंने लिखा है कि इस दौरान वह आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की गजल ‘लगता नहीं है जी मेरा’ और अमृता प्रीतम की कविता ‘आखां वारिस शाह नूं...’ गाते थे। इसके अलावा उनका सेंस ऑफ ह्यूमर काफी अच्छा था। जब वह दोस्तों के साथ होते थे, चाहे वो अर्थशास्त्री ही क्यों न हों वह काफी हंसी-मजाक करते रहते थे। दमन ने किताब में यह भी लिखा है कि उन्होंने लोगों को खूब निकनेम दिए थे। परिवार के लोग भी इससे बच नहीं पाए थे। वह मेरी मां को ‘गुरुदेव’, जबकि हम तीनों बहनों को ‘किक’, ‘लिटिल नोन’ और ‘लिटिल राम’ के निकनेम से बुलाते थे।

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