क्या है रूम नंबर 602 का रहस्यलोक, मंत्रालय का ये कमरा लेने से क्यों डर रहे महाराष्ट्र के मंत्री
अजित पवार को भी कमरा नंबर 602 आवंटित किया गया था। वह तब करोड़ों रुपये के सिंचाई घोटाले में फंस गए थे। हालांकि पवार जेल जाने से बच गए लेकिन उन्हें भी मंत्री पद छोड़ना पड़ा।
देश में अंधविश्वास और राजनीति के बीच रिश्ता पुराना है। पहले भी ऐसे कई मौके और मामले आए हैं, जब शुभ-अशुभ के चक्कर में कई बार राजनेता फंस चुके हैं। इस बार महाराष्ट्र के मंत्रालय का कमरा नंबर 602 चर्चा में है। ऐसी धारणा रही है कि जो भी मंत्री कमरा नंबर 602 में बैठता है, वह या तो किसी विवाद में फंसकर अपनी कुर्सी खो बैठता है या कभी-कभी जान भी गंवा बैठता है। यही वजह है कि कोई भी मंत्री इस कमरे को लेने से परहेज कर रहा है।
इस बार फिर से यह कमरा तब सुर्खियों में आया जब देवेंद्र फडणवीस की नई सरकार में लोक निर्माण मंत्री बने शिवेंद्रराजे भोसले को यह कमरा आवंटित हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि कमरा आवंटन होते ही भोसले और उनके समर्थक टेंशन में आ गए। भोसले छत्रपति शिवाजी के वंशज हैं लेकिन इस कमरे के इतिहास से सकते में हैं।
क्या है रूम नंबर 602 का इतिहास और रहस्य
1999 में जब राज्य में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार बनी थी, तब ताकतवर मंत्री छगन भुजबल को ये कमरा आवंटित किया गया था। 2003 तक सबकुछ ठीक चलता रहा लेकिन फिर उसी साल करोड़ों के फर्जी स्टांप से जुड़े तेलगी घोटाले में उनका नाम आया। फिर बात उनकी गिरफ्तारी तक पहुंच गई। भुजबल को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया था। बाद में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार में ही अन्य ताकतवर मंत्री अजित पवार को भी कमरा नंबर 602 आवंटित किया गया था। वह तब करोड़ों रुपये के सिंचाई घोटाले में फंस गए थे। हालांकि पवार जेल जाने से बच गए लेकिन उन्हें भी मंत्री पद छोड़ना पड़ा।
2014 में जब देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनी तो उस सरकार में मंत्री बने एकनाथ खड़से को भी रूम नंबर 602 आवंटित किया गया। मंत्री पद संभालने के कुछ ही दिनों बाद खडसे एक जमीन घोटाले में फंस गए और उन्हें भी मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उनके बाद मंत्री पांडुरंग फुंडकर उस कमरे में आए लेकिन दो साल के बाद काम करने के दौरान ही उन्हें हार्ट अटैक आ गया, जिससे उनकी मौत हो गई।
2019 के विधानसभा चुनावों से पहले तब कृषि विभाग का प्रभार संभाल रहे भाजपा नेता अनिल बोंडे को यह कमरा मिला। हालांकि, वह कमरे में नहीं गए लेकिन 2019 का चुनाव वह हार गए। उसके बाद से यह कमरा यानी पिछले पांच सालों से खाली है।