खास बात है कि सुप्रिया सुले ने भाषण के दौरान बगैर नाम लिए कहा, 'अब कोई चुनाव नहीं है, तो हमें एक-दूसरे से अच्छे से बात करनी चाहिए।' इसके अलावा सीनियर पवार और अजित पवार ने भी किसी का नाम नहीं लिया।
अजित पवार ने मुंबई में अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने का फैसला किया है। इसलिए वे अकेले अपने दम पर BMC चुनाव लड़ेंगे।
महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर अकसर 'कोयता' गिरोहों के लिए चर्चा में रहता है, जो दरांती जैसे लंबे ब्लेड वाले हथियारों से लोगों को निशाना बनाते हैं। ऐसे कई हमलों की घटनाएं सीसीटीवी में रिकॉर्ड हुई हैं।
खबर है कि जब डिप्टी सीएम अजित पवार के सामने उनके समर्थक कई मुद्दो को लेकर पत्र लेकर पहुंचे, तो वह भड़क गए थे।
शाम 5:45 बजे शरद पवार और छगन भुजबल दोनों मंच पर पहुंचे और प्रतिमा का अनावरण किया। इससे पहले शरद पवार को वहां करीब डेढ़ घंटे तक छगन भुजबल का इंतजार करना पड़ा।
शुरुआत अजित पवार खेमे से नहीं बल्कि शरद पवार गुट से ही हुई थी। बीते साल 14 दिसंबर को शरद पवार की पार्टी के विधायक और रिश्ते में उनके पोते रोहित पवार की मां सुनंदा का बयान आया था। सुनंदा पवार का कहना था कि यह जरूरी है कि अजित पवार और शरद पवार एक हो जाएं। राज्य और परिवार के लिए यह अच्छी बात होगी।
रणनीतिकारों का कहना है कि इससे भाजपा को निचले स्तर तक पहुंच बनाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा मुंबई, पुणे, नागपुर समेत तमाम शहरों में वह अपनी ताकत को भी आंक सकेगी। भाजपा के अलावा अन्य दल भी अकेले ही लड़ने के पक्ष में हैं। अघाड़ी में तो उद्धव सेना दोहरा चुकी है कि वह निकाय चुनाव में अकेले ही उतरेगी।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में एनसीपी ने 11 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है। पार्टी ने मुलायम सिंह को बादली से, बुराड़ी से रतन त्यागी, चांदनी चौक से खालिद उर रहमान, बल्लीमारान से मोहम्मद हारुन और ओखला...
अजित पवार को भी कमरा नंबर 602 आवंटित किया गया था। वह तब करोड़ों रुपये के सिंचाई घोटाले में फंस गए थे। हालांकि पवार जेल जाने से बच गए लेकिन उन्हें भी मंत्री पद छोड़ना पड़ा।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और छगन भुजबल के बीच मीटिंग पर अजित पवार का रुख सामने आया है। अजित पवार ने छगन भुजबल की नाराजगी को पार्टी का अंदरूनी मामला बताया है।
छगन भुजबल को उम्मीद थी कि उन्हें कम से कम कैबिनेट में जरूरी शामिल किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा था कि मैं किसी के हाथ का खिलौना नहीं हूं कि जब चाहा खेला और जब चाहा रख दिया। बागी रुख के चलते ही उनके भाजपा में जाने की चर्चाएं तेज हैं।
एकनाथ शिंदे के फिर से गांव पहुंचने पर चर्चाएं तेज हैं। सोमवार को अजित पवार अपना कामकाज संभालने जा रहे हैं तो वहीं एकनाथ शिंदे गांव पहुंच गए हैं। यह सामान्य बात नहीं हो सकती। दरअसल विभागों के बंटवारे के बाद अब महाराष्ट्र के तीन सत्ताधारी दलों के बीच प्रभारी मंत्रियों को लेकर संघर्ष की स्थिति है।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा विभागों का आवंटन किए जाने के एक दिन बाद एनसीपी चीफ और डिप्टी सीएम अजित पवार ने कहा कि प्रत्येक मंत्री को एक विभाग देना ही था। जाहिर है, कुछ लोग खुश हैं और कुछ नहीं।
अजित पवार ने आरएसएस मुख्यालय से दूरी बनाकर साफ कर दिया कि वह सत्ता और विचारधारा दोनों को साधना चाहते हैं और किसी से भी समझौता नहीं करेंगे। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान भी उनका यह भी रुख नजर आया था, जब उन्होंने नवाब मलिक को भाजपा के ऐतराज के बाद भी चुनाव में लड़ाया।
फडणवीस ने कहा कि अजित पवार सुबह की शिफ्ट में काम करेंगे क्योंकि वे जल्दी उठने वाले हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि वे स्वंय दोपहर 12 बजे से रात 12 बजे तक काम करेंगे।
मंत्री पद से वंचित किए जाने के बाद वे सोमवार को अपने गृहनगर नासिक लौटे और नागपुर में चल रहे राज्य विधानमंडल के शीतकालीन सत्र से दूरी बनाए रखी।
'जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना' टिप्पणी को लेकर अटकलों के बीच छगन भुजबल ने कहा कि वह बुधवार को राकांपा कार्यकर्ताओं और येवला निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से चर्चा करने के बाद कुछ कहेंगे।
छगन भुजबल ने कहा, ‘मैंने नासिक से लोकसभा चुनाव लड़ने का सुझाव स्वीकार कर लिया। जब मैं इस साल की शुरुआत में राज्यसभा में जाना चाहता था, तो मुझे विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा गया। मुझे आठ दिन पहले राज्यसभा सीट की पेशकश की गई थी, जिसे मैंने अस्वीकार कर दिया।’
विधायक छगन भुजबल ने सोमवार को नागपुर में संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने राज्यसभा सीट के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि यह उनके विधानसभा क्षेत्र के साथ विश्वासघात होगा
मराठा आंदोलन के समय छगन भुजबल का रुख अजित पवार के लिए मुसीबत बन रहा था। इसके अलावा भी कई मौकों पर छगन भुजबल ने पार्टी के खिलाफ स्टैंड लिया।
महायुति के 11 प्रमुख मंत्रियों को महाराष्ट्र की नई सरकार से हटा दिया गया। छगन भुजबल ने कहा है कि वह लोगों से बात करने के बाद भविष्य की राह तय करेंगे। उधर, खबर है कि भाजपा के दिग्गज नेता सुधीर मुंगतीवार भी नाराज चल रहे हैं।
भुजबल ने कहा कि वह नई कैबिनेट में शामिल नहीं किए जाने से नाखुश हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं एक साधारण राजनीतिक कार्यकर्ता हूं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे दरकिनार कर दिया गया या पुरस्कृत किया गया।’ एनसीपी लीडर ने कहा, ‘मंत्री पद आते-जाते रहते हैं, लेकिन उन्हें खत्म नहीं किया जा सकता।’
राज्यपाल ने नागपुर में नवनिर्वाचित मंत्रियों को मंत्री पद की शपथ दिलाई, लेकिन प्राप्त जानकारी के अनुसार शपथ लिए मंत्रियों का कार्यकाल पांच साल का नहीं, बल्कि ढाई साल का होगा और मंत्री पद का शपथ लेने के बाद उन्हें शपथ पत्र भी लिखना होगा।
सीएम फडणवीस ने जोर दिया कि मंत्रियों को प्रदर्शन की कसौटी में खरा उतरना होगा। शिंदे ने कहा कि उनकी पार्टी से आने वाले मंत्रियों का कार्यकाल ढाई साल का होगा। वहीं, अजित पवार ने चेताया कार्यकाल ढाई साल क्या ढाई महीने का भी हो सकता है।
सुनंदा पवार ने पत्रकारों से कहा कि राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार, उनके बेटे पार्थ पवार और रोहित पवार सभी दिग्गज नेता शरद पवार को जन्मदिन की बधाई देने के लिए एकत्र हुए थे।
शरद पवार के 84वें जन्मदिन के मौके पर अजित पवार बिना किसी पूर्व सूचना के ही उनके दिल्ली स्थित आवास पर पहुंच गए।
अजित पवार से भी अलग से अमित शाह मिल रहे हैं। वहीं डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र में ही हैं और वह दिल्ली नहीं आए। यहां तक कि अपने ठाणे स्थित घर पर ही रहे। ऐसे में कयास तेज हैं कि एकनाथ शिंदे क्या फिर से नाराज हैं और विरोध दर्ज कराने के लिए ही वह दिल्ली नहीं गए।
लुटियंस में सुनेत्र पवार को टाइप 7 बंगला मिलना चर्चा का मुद्दा बन गया। दरअसल, वह पहली बार सांसद बनी हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पहली बार के सांसद दूसरे सबसे बड़े वर्ग के आवास के हकदार नहीं होते हैं।
एकनाथ शिंदे ने पद संभालते ही चिवटे को सीएम रिलीफ फंड की कमान सौंपी थी, लेकिन अब फडणवीस ने भी सत्ता बदलते ही चिवटे को हटा दिया है। रामेश्वर नाइक को देवेंद्र फडणवीस का करीबी माना जाता है। वह फडणवीस के डिप्टी सीएम रहने के दौरान मेडिकल एड सेल का काम देख रहे थे।
अखबार से बातचीत में शिंदे के एक करीबी ने कहा, 'इस पूरी प्रक्रिया में शिंदे उनके साथ हुए व्यवहार से भी खफा हैं।' उन्होंने कहा, 'उन्हें हर चीज में तोल मोल करना पड़ा। उन्हें लगता है कि सत्ता में उन्हें उचित हिस्सा नहीं दिया गया।