Increase in ANM Training Seats in Hazaribagh Amid Rising Healthcare Demand बोले हजारीबाग: सरकारी एएनएम प्रशिक्षण केंद्र में बढ़े सीटों की संख्या, Hazaribagh Hindi News - Hindustan
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बोले हजारीबाग: सरकारी एएनएम प्रशिक्षण केंद्र में बढ़े सीटों की संख्या

हजारीबाग में एएनएम प्रशिक्षण केंद्र में सीटों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है। वर्तमान में केवल 30 लड़कियों को प्रशिक्षित किया जाता है जबकि आबादी बढ़ने के कारण यह संख्या 90 या 100 होनी चाहिए। नर्सों...

Newswrap हिन्दुस्तान, हजारीबागFri, 16 May 2025 01:43 AM
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बोले हजारीबाग: सरकारी एएनएम प्रशिक्षण केंद्र में बढ़े सीटों की संख्या

बोले हजारीबाग: सरकारी एएनएम प्रशिक्षण केंद्र में बढ़े सीटों की संख्या हजारीबाग। सहायक चिकित्सा कर्मियों के योगदान के बिना चिकित्सा सेवा की कल्पना नही की जा सकती है। अच्छे भवन,अतिआधुनिक उपकरण, बेहतर चिकित्सक की सेवा तभी सार्थक हो सकती है जब अस्पताल में बेहद प्रशिक्षत नर्स हों। चिकित्सा सेवा की आधारभूत धूरी नर्स है। हजारीबाग सदर अस्पताल परिसर में एएनम प्रशिक्षण स्कूल भी है। जहां प्रतिवर्ष तीस लड़कियों को प्रशिक्षित किया जाता है। यह संख्या स्थापना वर्ष के लिहाज से सही था। आबादी बढने पर सीटों की संख्या नब्बे या सौ होनी चाहिए। हजारीबाग मेडिकल कॉलेज में जिला के सोलह प्रखंड के अलावा कोडरमा, चतरा, गिरिडीह के मरीजों का भारी दवाब रहता है।

मरीजों के हिसाब से नर्सों की संख्या कम है इसलिए उन पर कार्य का बोझ बढ गया है। वैसे हजारीबाग में बीएसएसी नर्सिंग के लिए एक निजी कॉलेज और एएनएम और जीएनएम के लिए भी जीएम नर्सिंग कॉलेज चलाया जा रहा है। पर छात्राओं की बढ़ती संख्या से यहां बीएसएसी नर्सिंग के लिए भी आवाज उठ रही है। मरीजों की रिपोर्ट लिखना, दवा देना, डॉक्टर के साथ भ्रमण,आपरेशन में सहयोग करना, मरीज के परिजनों को सुनना, सरकारी रिपोर्ट तैयार करना, आकस्मिक किसी कार्य के लिए तैयार रहना, सरकार की नई योजनाओं और गाइडलाइन को पढना,किसी चिकित्सा शिविर में जाने के लिए तैयारी जैसे दर्जनों काम करने पड़ते है। सरकार नियमित रूप से नर्सों की बहाली नही करती है। इससे चिकित्सा सेवा चरमरा जाता है। चिकित्सक विशेषज्ञ होते हैं पर हम लोग हर तरह के मरीजों के लिए उपलब्ध होते हैं। हजारीबाग में नर्सों को आवासीय परिसर में निशुल्क प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जाता है। इस तरह की सुविधा झारखंड के कुछ ही जिलों में उपलब्ध है। हजारीबाग में अवस्थित इस बेहतरीन संस्थान में नर्सिंग का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद भी इन बच्चियों को जॉब की गारंटी नही है। जबकि सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र सहायक चिकित्सा कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं। कुछ बच्चियों को निजी अस्पताल में काम मिल जाता है, कुछ संविदा के आधार पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र,सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में बहाल हो जाते हैं। जो संविदा पर बहाल होते हैं उन्हें हर 11 महीने पर रिन्यूअल करवाना पड़ता है। अगर सरकार नियमित बहाली नहीं ला रही है तो क्यों उन्हे बार बार रिन्यू करवाना पड़ता है। जब स्थायी वैंकेसी आ जाएगी तो हमलोग स्वंय हट जाते। यह एक तरह का मानसिक परेशानी बन जाता है। जो एएनएम कुछ साल ग्रामीण क्षेत्र में सेवा दे देती वो बाद में किसी अन्य लाभ के अभाव में जॉब छोड़कर शहर के निजी अस्पताल से जुड़ जाती है। बहुत से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र जिला मुख्यालय से 60-70 किमी दूर है। जंगल के बीच से होकर जाना पड़ता है। कई जगह नदियों में पुल नही है, बिजली की स्थिति ठीक नहीं होती। इस कारण से कोई इन प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में अपनी ड्यूटी नहीं चहता। आरोग्यम इंस्टीट्यूट ऑफ नर्सिंग एंड पारा मेडिकल में बीएसएसी नर्सिंग के साथ जीएनएम और एएनएम का कोर्स कराया जाता है। वहीं जीएम पारामेडिकल एंड फॉर्मेसी कॉलेज भी संचालित है। सरकार की नई चिकित्सा योजनाओं का भी लाभ मिल सके। यहां फिलहाल केवल 30 लड़कियां ही नर्स की प्रशिक्षण प्राप्त करती है। हजारीबाग शहर में आबादी बढ़ने के कारण यह संख्या बहुत कम है। अगर 30 की बजाय 90 लड़कियों को प्रशिक्षित किया जाए तो बेहतर होगा। खाड़ी के देशों में भी भारतीय प्रशिक्षित नर्सों का बहुत मांग है। केरल के अलावा झारखंड भी एक बेहतर विकल्प नर्सिंग में बन सकता है। यह घर नहीं, जीवन का प्रशिक्षण केंद्र होता है। अभी यहां केवल दो साल का प्रशिक्षण कोर्स चलाया जाता है जो बैचलर डिग्री के समकक्ष नहीं है। अब जब हजारीबाग में चिकित्सा महाविद्यालय खुल गया है तो यहां बीएससी नर्सिंग का कोर्स प्रारंभ करना चाहिए। इस कोर्स को करने के बाद लड़कियों के पास रोजगार की संभावना में भी वृद्धि होता है। वह नर्सिंग में मास्टर से लेकर पीएचडी तक कर सकती हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में भी उच्च उपाधि को खोलना चाहिए। नर्सो की ड्यूटी काफी परेशानी भरी होती है ऐसे में सप्ताह में दो दिन की छुट्टी की सुविधा भी मिलनी चाहिए। हजारीबाग में प्रशिक्षण पानी वाली नसों का कहना है कि हमलोग अहर्निश सेवा देते हैं, ज्यादातर नर्स बाहर से आकर यहां रहते हैं। ऐसे में हमलोगों के लिए सप्ताह में पांच दिन ही काम मिलना चाहिए। एक दिन का ऑफ से थकान दूर नहीं हो पाती है। कभी कभी डबल ड्यूटी का भी चक्कर लग जाता है। हमारे यहां से जो लड़कियां नर्सिंग कोर्स का प्रशिक्षण प्राप्त करती है उन्हें जॉब नहीं मिल पाता है। कुछ लड़कियों को ही किसी संस्थान या निजी संस्थान में जॉब मिलता है, जबकि अस्पताल में नसों की भारी कमी है अगर सरकार नर्सिंग के लिए नियमित बहाली करें तो इन लड़कियों को जो सीखी है उसे सेवा का भी मौका मिल सकता है। अगर सरकार संविदा के आधार पर बहाली करती है तो उसे हर साल रिन्यू करने के बजाय 5 साल या जब तक नहीं वैकेंसी नहीं आती है तब तक के लिए काम करने का मौका दें। इसके अलावा इस कारण हर 11 महीने पर लड़कियों के मन में एक खतरा मंडराता रहता है कि जॉब आगे कर पाएंगे या नहीं। सभी ने कहा कि हमेशा असमंजस का माहौल रहता है। हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करना आसान नहीं है। साथ ही यहां का वातावरण पढ़ाई के अनुकूल है, जिससे हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। -निर्मला सोरेन सब कुछ सीखने के बाद भी अगर नौकरी न मिले तो मेहनत बेकार लगती है। हम चाहते हैं कि सरकार हर साल नियमित बहाली करे। -दामिनी कुमारी हम नर्सिंग के हर पहलू को सीख रहे हैं और इसमें हमें गर्व भी है। लेकिन कोर्स खत्म होने के बाद करियर को लेकर कोई स्पष्ट दिशा नहीं दिखती। -तान्या कुमारी यहां की ट्रेनिंग बहुत अच्छी है। साथ ही पढ़ाई के साथ-साथ व्यवहारिक अनुभव भी मिल रहा है, जो हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाता है। -अंजली कुमारी हर 11 महीने पर संविदा रिन्यू कराना मानसिक तनाव देता है। हम होकर काम नहीं कर पाते। साथ ही सरकार को स्थायित्व देना चाहिए। -नीलम कुमारी बीएससी नर्सिंग अगर शुरू हो जाए तो हमें झारखंड से बाहर नहीं जाना पड़ेगा। यहां की पढ़ाई भी मजबूत है। आगे बढ़ने के लिए डिग्री कोर्स जरूरी है। -रानी सोरेन सरकारी अस्पतालों में स्टाफ की कमी है, फिर भी बहाली नहीं होती। कई योग्य छात्राएं बेरोजगार रह जाती हैं, जो हताशाजनक स्थिति है। -अमीषा प्रिया हॉस्टल में साफ-सफाई, सुरक्षा और समय पर भोजन की व्यवस्था है। हमें पढ़ाई और रहने के लिए है, जिससे पढ़ाई में मन लगता है। -कुसुम कुमारी सरकार योजनाएं तो बना रही है, लेकिन स्टाफ नहीं बढ़ा रही। काम का बोझ बढ़ता है और मरीजों को समय पर सेवा नहीं मिल पाती। -रसिन हेंब्रम हमें यहां जो सिखाया जा रहा है। व्यावहारिक रूप से बहुत उपयोगी है। अस्पताल में मरीजों की सेवा करते हुए जो अनुभव मिलता है। -अंजली कुमारी पढ़ाई के दौरान आर्थिक सहयोग नहीं मिलता। कई बार खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है। स्कॉलरशिप या कोई सहायता मिलनी चाहिए। -पूजा कुमारी हमें यहां साथ रहकर अनुशासन में जीना और सेवा भाव सीखने को मिला है। साथ ही साथ अनुभव हमारे पूरे जीवन के लिए लाभदायक रहेगा। -शिल्पी

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