Why Turkey President Tayyip Erdogan jumping cooking new dish in Sunni Muslim world in anti India Fire Boycott Turkiye यूं ही नहीं उछल रहे तुर्की राष्ट्रपति एर्दोगन, भारत विरोध की आग में सुन्नी मुस्लिम वर्ल्ड में पका रहे नई खिचड़ी, International Hindi News - Hindustan
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यूं ही नहीं उछल रहे तुर्की राष्ट्रपति एर्दोगन, भारत विरोध की आग में सुन्नी मुस्लिम वर्ल्ड में पका रहे नई खिचड़ी

देश के अग्रणी संस्थानों में शुमार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की ने शुक्रवार को तुर्की के इनोनू विश्वविद्यालय के साथ मौजूदा समझौता ज्ञापन (एमओयू) को रद्द कर दिया है। विश्वविद्यालय की ओर से आज इसकी आधिकारिक घोषणा की गई।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिलीलFri, 16 May 2025 06:44 PM
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यूं ही नहीं उछल रहे तुर्की राष्ट्रपति एर्दोगन, भारत विरोध की आग में सुन्नी मुस्लिम वर्ल्ड में पका रहे नई खिचड़ी

तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन पिछले कुछ समय से लगातार सुर्खियों में बने हए हैं। इसकी पहली वजह तो यह है कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ना सिर्फ पाकिस्तान का समर्थन किया बल्कि उसे ड्रोन भी उपलब्ध कराए, जिसका इस्तेमाल पाक सेना ने भारत पर हमला करने के लिए किया। इतना ही नहीं, एर्दोगन ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में 9 आतंकी ठिकानों पर भारत की कार्रवाई की निंदा की और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी जांच कराने की पाकिस्तान की मांग का समर्थन किया। पाकिस्तान ने इसके लिए तुर्की को धन्यवाद दिया। वैसे यह पहला मौका नहीं था, जब एर्दोगन ने इस तरह पाक का समर्थन किया है, वह पहले भी UN में कश्मीर मुद्दे पर समर्थन कर चुके हैं।

इसके अलावा एर्दोगन ने अपने देश के अंदर भी एक बड़ी उपलब्धि हासिल की। उनके चिर प्रतिद्वंद्वी कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी-PKK का खात्मा हो गया। यानी यह पार्टी विघटित हो गई, जो पिछले चार दशकों से सशस्त्र संघर्ष कर रही थी। इसी बीच, अमेरिका ने सीरिया पर से प्रतिबंध हटाने की घोषणा की है। इस घोषणा से दमिश्क में अंकारा का प्रभाव और मजबूत हो गया है। इसके अलावा ट्रंप प्रशासन ने तुर्की के साथ 300 मिलियन डॉलर की मिसाइल डील की है। ये सारी गतिविधियां भू-राजनीतिक मोर्चे पर ऐसे वक्त पर हुई हैं, जब एर्दोगन एक बार फिर घरेलू मोर्चे पर राजनीतिक विरोधों का सामना कर रहे थे लेकिन उसे उन्होंने रणनीतिक तरीके से अपने पक्ष में भुना लिया।

तुर्की में हजारों लोगों का विरोध प्रदर्शन

बता दें कि मार्च, अप्रैल और मई के पहले हफ्तों में, इस्तांबुल के मेयर एक्रेम इमामोग्लू की गिरफ्तारी के खिलाफ तुर्की में हजारों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया, जो तेजी से एर्दोगन के मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रहे थे। जाहिर है कि वैश्विक गतिविधियों की तरफ ध्यान खींचकर एर्दोगन घरेलू स्तर पर हो रहे विरोध और मुद्दों से दुनिया का ध्यान हटाने में कामयाब रहे हैं। एर्दोगन के आलोचकों का कहना है कि भ्रष्टाचार के आरोपों में इमामोग्लू की गिरफ़्तारी राजनीति से प्रेरित है।

यूरोप से एशिया तक मार रहे हाथ-पांव

अब एर्दोगन ने अंकारा के बढ़ते प्रभाव का फायदा उठाया है, मध्य पूर्व से लेकर पूर्वी यूरोप, दक्षिण एशिया से लेकर मध्य यूरोप तक, एक बार फिर से नैरेटिव को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। बड़ी बात यह है कि इस सप्ताह तुर्की ने रूस-यूक्रेन शांति वार्ता की भी मेजबानी की। शुरुआत में, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की और यहाँ तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भी इसमें शामिल होने की उम्मीद थी। हालाँकि, पुतिन और ट्रम्प ने अंतिम समय में इसमें भाग लेने से मना कर दिया। ज़ेलेंस्की ने भी अपने रक्षा मंत्री को भेजने का फैसला किया।

एर्दोगन खुद को बड़ा खिलाड़ी साबित करना चाह रहे

दरअसल, इन शांति वार्ताओं की मेजबानी करके तुर्की खुद को यूरोपीय महाद्वीप की युद्ध-पश्चात सुरक्षा संरचना का एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना चाहता है। एर्दोगन की महत्वाकांक्षाएं सिर्फ यूरोप तक ही सीमित नहीं है। वह पाकिस्तान के मामलों में दखल देकर एशिया तक अपनी धाक बढ़ाना चाहते हैं। पाकिस्तान तुर्की की इस मंशा को बढ़ाने वाला अहम साथी है।

 

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शहबाज शरीफ तारीफ में कसीदे पढ़ रहे

इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जैसे ही पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध विराम की घोषणा हुई, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने दक्षिण एशिया में शांति को बढ़ावा देने में एर्दोगन की भूमिका के लिए सार्वजनिक रूप से उनका आभार व्यक्त किया। शरीफ ने कहा, "मैं दक्षिण एशिया में शांति को बढ़ावा देने में महामहिम (एर्दोगन) की रचनात्मक भूमिका और ठोस प्रयासों के लिए विशेष रूप से आभारी हूं।" हालांकि, भारत ने इस दावे को खारिज कर दिया है कि किसी तीसरे पक्ष ने युद्ध विराम वार्ता में मध्यस्थता की है, लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का बयान दक्षिण एशियाई देश में अंकारा के बढ़ते प्रभाव को उजागर करता है।

सुन्नी मुस्लिम जगत का नेता बनना चाह रहे एर्दोगन

अपने बयान में, शरीफ ने युद्ध विराम वार्ता में मध्यस्थता के लिए अमेरिका, चीन और तुर्की तीनों को धन्यवाद दिया। विश्लेषकों का मानना ​​है कि आर्मेनिया और भारत के साथ अपने-अपने संघर्षों में अजरबैजान और पाकिस्तान जैसे देशों का समर्थन करके तुर्की खुद को सुन्नी मुस्लिम वर्ल्ड के नेता के रूप में स्थापित करना चाहता है। यही वजह है कि एर्दोगन सुन्नी बहुल पाकिस्तान की खुलकर मदद कर रहे हैं। दूसरी तरफ भारत का विरोध करने वाले एक और पड़ोसी सुन्नी बहुल इस्लामिक देश बांग्लादेश भी पाकिस्तान के नक्शे कदम पर आगे बढ़ रहा है। तुर्की भारत विरोध को इसलिए भी हवा देना चाहता है क्योंकि तुर्की के दुश्मन सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से भारत की निकटता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। सुन्नी मुस्लिमों की बात की जाए तो 50 मुस्लिम देशों में से 40 देश सुन्नी मुस्लिम बहुल हैं। इनमें तुर्की के अलावा सऊदी अरब, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, भारत और इंडोनेशिया जैसे बड़े देश शामिल हैं।

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