स्कूलों, शिक्षकों और शिक्षा प्रणाली पर वाजिब सवाल उठाती OMG 2
OMG 2: अक्षय कुमार की फिल्म 'ओएमजी 2' में सेक्स एजुकेशन पर जोर दिया गया है। पकंज त्रिपाठी ने अपने डायलॉग्स और फिल्म की कहानी के जरिए सेक्स एजुकेशन के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है।
'ओएमजी 2'...सामाजिक मुद्दे पर बनी अक्षय कुमार की ये फिल्म सेक्स एजुकेशन पर जोर देती है। फिल्म में कांति शरण मुदगल (पकंज त्रिपाठी) कोर्ट में ये साबित करने की कोशिश करते हैं कि बच्चों के लिए "सेक्स एजुकेशन" कितनी जरूरी है। वह कोर्ट में अपना पक्ष रखते समय कई ऐसी बातें बोल जाते हैं जो हमें सच में सोचने पर मजबूर कर देती हैं। सिर्फ स्कूल में 'सेक्स एजुकेशन' की शुरुआत कर देने से लाखों-करोड़ों बच्चों को गलत दिशा में भटकने से रोका जा सकता है। आए दिन हाे रहे रेप पर रोक लगाई जा सकती है। उत्पीड़न को रोका जा सकता है।
स्कूल में टीचर्स करते हैं ये बड़ी गलती
दसवी कक्षा की बायोलॉजी किताब में एक चैप्टर है जिसमें बच्चों को लड़की और लड़के के शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में पढ़ाया जाता है। लेकिन, अमूमन टीचर्स इस चैप्टर को स्किप कर देते हैं। टीचर यदि मेल होता है तो उसे लड़कियाें के सामने ये सब्जेक्ट पढ़ाने में शर्म आती है। वहीं फीमेल टीचर दसवी कक्षा के लड़कों के सामने इसके बारे में बात नहीं कर पाती हैं। ऐसे में नुकसान बच्चों का होता है। उन्हें पता ही नहीं चलता कि आने वाले समय में उनके शरीर में क्या बदलाव होने वाले हैं।
सेक्स एजुकेशन न मिलने की वजह से भटक जाते हैं लड़के
जब शरीर में बदलाव होना शुरू होते हैं तब अक्सर लड़के फोन पर पॉर्न देखना शुरू कर देते हैं। उनके अंदर जिज्ञासा बढ़ती है और वे रेप या उत्पीड़न जैसा पाप कर बैठते हैं। लेकिन, ऐसा होगा ही नहीं अगर पहले ही टीचर्स उनकी जिज्ञासा को शांत कर देंगे। उनके हर एक सवाल का जवाब दे देंगे।
एजुकेशन सिस्टम की गड़बड़ी
आप में से कितनी लड़कियां ऐसी हैं जिन्हें बचपन में पता ही नहीं था कि पीरियड्स क्या होता है? मैं उनमें से एक हूं। जब मैं छोटी थी तब मुझे पीरियड्स शब्द का मतलब ही नहीं पता था। इसलिए जब पीरियड्स आए मैं डर गई। मुझे लगा जैसे कोई बीमारी हो गई है। और मैं यकीन के साथ कह सकती हूं कि ये सिर्फ मेरी ही नहीं आप में से बहुत सारी लड़कियों की कहानी होगी। लेकिन, जरा सोचिए अगर स्कूल में पहले ही पीरियड्स के बारे में बता दिया जाए तो हमारे लिए जिंदगी कितनी आसान हो जाएगी...और ये बात लड़कियों के साथ बंद कमरे में नहीं होनी चाहिए। बल्कि पूरी क्लास के सामने होनी चाहिए। क्योंकि जब तक लड़कों को पीरियड्स और पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द के बारे में पता नहीं चलेगा वे उसके प्रति सेंसेटिव नहीं बनेंगे। अगर वे सेंसेटिव नहीं बने तो स्कूल में लड़कियों के स्कर्ट पर लगे पीरियड्स के दाग का मजाक उड़ाते रहेंगे।
माय स्टैंड
मैं चाहती हूं कि स्कूल्स में सेक्स एजुकेशन को कंपलसरी किया जाए। इस पर लड़कों और लड़कियों से अलग-अलग नहीं बल्कि साथ में बात की जाए। टीचर्स को ट्रेनिंग दी जाए ताकि वे आसान और सही तरीके से बच्चों को मेल और फीमेल दोनों के शरीर के बारे में बता पाएं।