IGIMS में डॉक्टरों के 47 फीसदी सीट खाली, पारा मेडिकल और नर्सिंग स्टाफ की भी कमी
ओपीडी मरीजों को निशुल्क दवाइयां नहीं मिलती हैं। सरकार के आदेश के बावजूद यहां के मरीजों को जेनेरिक दवाइयों की बजाय महंगी दवाइयां लिखी जाती हैं। ये दवाइयां भी कुछ चिह्नित दुकानेां में ही मिल पाती हैं।
इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान राज्य का एकमात्र हृदय का सुपर स्पेशयिलिटी अस्पताल है। इसमें चिकित्सकों के लगभग 47 प्रतिशत पर रिक्त हैं। चिकित्सकों के कुल स्वीकृत पद 172 हैं। लेकिन, यहां कार्यरत चिकित्सकों की संख्या मात्र 85 है। इसमें तीन संविदा पर तैनात किए गए हैं। इन चिकित्सकों में सुपर स्पेशियलिटी कोर्स किए हुए मात्र पांच चिकित्सक ही हैं जो ओपेन हर्ट या हृदय के बड़े ऑपरेशन कर सकते हैं। इमरजेंसी में भी मरीजों की देखभाल के लिए चिकित्सकों की कमी का सामना इस अति विशिष्ट अस्पताल को करना पड़ रहा है। इसी तरह पारा मेडिकल और नर्सिंग स्टाफ के कई पद रिक्त हैं।
इस अस्पताल में सामान्य मरीजों के लिए 280 और इमरजेंसी में 25 बेड हैं। ट्रॉलीयुक्त तीन बेड और इमरजेंसी में रखा गया है। बावजूद इसके गंभीर मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण स्ट्रेचर पर लिटाकर इलाज होता है। चिकित्सकों की कमी से अस्पताल में ओपेन हर्ट और सामान्य सर्जरी के लिए छह माह से एक माह बाद का समय मिलता है। अस्पताल के अपर निदेशक डॉ. केके वरुण ने बताया कि इमरजेंसी में और 12 विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती होती तो इसका संचालन और बेहतर होता।
ओपीडी में प्रतिदिन 450 से 500 मरीज आते हैं जबकि इमरजेंसी में प्रतिदिन 30 नए मरीजों की भर्ती की जाती है। सर्जरी मात्र दो दिन होती है। सभी तरह का इलाज निशुल्क है। आयुष्मान भारत और मुख्यमंत्री हृदय योजना का लाभ भी यहां मरीजों को मिलता है। इस कारण गरीब मरीजों की भीड़ ज्यादा होती है। इससे उनको सर्जरी के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। इस दौरान मरीज और तीमारदार परेशान होते रहते हैं।
ओपीडी के मरीजों को नहीं मिलती है निशुल्क दवाइयां
ओपीडी मरीजों को निशुल्क दवाइयां नहीं मिलती हैं। सरकार के आदेश के बावजूद यहां के मरीजों को जेनेरिक दवाइयों की बजाय महंगी दवाइयां लिखी जाती हैं। ये दवाइयां भी कुछ चिह्नित दुकानेां में ही मिल पाती हैं। डॉ. केके वरुण ने बताया कि भर्ती मरीजों के लिए इस्तेमाल होनेवाली लगभग सभी दवाइयां अस्पताल से ही मिल जाती हैं।