Struggles of the Nat and Musahar Community A Call for Government Action बोले औरंगाबाद : कौशल विकास योजनाओं का लाभ मिलने से संवरेगा जीवन , Aurangabad Hindi News - Hindustan
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बोले औरंगाबाद : कौशल विकास योजनाओं का लाभ मिलने से संवरेगा जीवन

नट और मुसहर समाज आर्थिक तंगी, अशिक्षा और आवास के अभाव में जी रहे हैं। ये लोग भिक्षा मांगकर या मजदूरी करके जीवन यापन करते हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है, जिससे उनके बच्चों को शिक्षा नहीं...

Newswrap हिन्दुस्तान, औरंगाबादMon, 14 April 2025 11:23 PM
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बोले औरंगाबाद : कौशल विकास योजनाओं का लाभ मिलने से संवरेगा जीवन

नट और मुसहर समाज के लोग कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। समाज की दशा आज भी दयनीय है। भूमिहीन होने के कारण मुसहर समाज के लोग मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। वे लोग खानाबदोश की तरह जिंदगी जीने को विवश हैं। भिक्षा मांग कर या लकड़ी काटकर गुजारा कर रहे हैं। इनके पास रहने के लिए आवास की सुविधा नहीं है। वे सड़क किनारे ही झुग्गी झोपड़ी डालकर रहने को विवश हैं। अशिक्षित होने के कारण उनकी दशा खराब है। कई समस्याओं से जूझते हुए वे जीवन यापन कर रहे हैं। आर्थिक तंगी के कारण बच्चों को शिक्षा नहीं दिला पाते हैं। शिक्षा, शुद्ध पेयजल, शौचालय, रोजगार के अभाव में जीवन गुजार रहे हैं। गरीबी के कारण उनके बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित हो रहे हैं। आश्रय के लिए उनके पास भूमि नहीं है। सरकारी योजनाओं का भी लाभ इन्हें नहीं मिल रहा है। आर्थिक और शिक्षा की दृष्टि से नट मुसहर समाज के लोग काफी पीछे हैं। समाज को हर काम के लिए सरकारी योजनाओं पर आश्रित होना पड़ता है क्योंकि नट मुसहर समाज के लोग आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। अशिक्षित होने के कारण समाज को आसानी से ठगा जाता है। अंत में योजना के लाभ से वंचित हो जाते हैं। इन्हें अपना काम करवाने के लिए किसी शिक्षित व्यक्ति का सहारा लेना पड़ता है। इनके पास ना तो रहने के लिए ठिकाना है और न ही आधार और राशन कार्ड ही बन पाया है। नट और मुसहर समाज के लोग वर्तमान समय में भी काफी पिछड़ा है। समाज के लोग किसी तरह अपनी आजीविका चलाते हैं। समाज में शिक्षा का विकास नहीं होने के कारण शारीरिक मेहनत करके अपनी आजीविका चलाते हैं। समाज के युवा रोजगार की समस्या से जूझ रहे हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में अधिकांश लोग मजदूरी पर निर्भर हैं या काम करने के बाद जो रुपए कमाते हैं, उसमें से आधा नशा करने में खर्च कर देते हैं। जो कुछ बचा उससे घर का खर्च चलता है। उनके बच्चे पढ़ेंगे या नहीं उन्हें चिंता नहीं रहती है। अधिकतर इस समाज के लोग खानाबदोश जिंदगी जीने को विवश हैं। सरकार के अथक सहयोग के बावजूद भी सामाजिक आर्थिक व शैक्षिक परिवेश की रफ्तार बहुत धीमी है। दशकों से चली आ रही परंपरा अब भी नहीं बदली है। समाज को स्वाभिमान और सम्मान की तड़प है। 21वीं सदी में भी समाज को भेदभाव की नजर से देखा जा रहा है। मन में सामाजिक उत्थान को लेकर एक कसक है। मार्गदर्शन के अभाव में युवा सही रास्ता के बजाय गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं। इनका कहना है कि हम लोगों को किसी घर में काम नहीं मिलता है। अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए घर-घर जाकर भिक्षाटन करना पड़ता है तब जाकर एक वक्त की रोटी जुटती है। सरकार को हम खानाबदोश की जिंदगी जी रहे नट मुसहर समाज पर भी ध्यान देने की जरूरत है। उनका कहना है कि हालांकि कुछ हमारे समाज के लोग ट्रक चलाकर अपना घर परिवार चला रहे हैं लेकिन अधिकतर लोगों की जिंदगी सड़क किनारे ही कटती है। सरकार को हमारे लिए जमीन उपलब्ध करा कर आवास योजना के साथ राशन और हेल्थ कार्ड की भी सुविधा दिलानी चाहिए तो हमारे जीवन बेहतर हो सकती है। हमारे बच्चे गरीब होने के कारण बाल श्रम का शिकार हो जाते हैं। शिक्षा की जागरूकता ना होने के कारण समाज में ड्रॉप आउट की संख्या अधिक है। ड्रॉप आउट होने के कारण बच्चे शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं। हमारे समाज के अधिकांश बच्चे विद्यालय नहीं जाते हैं। इस पर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। बच्चे शिक्षित नहीं होने के कारण सरकारी नौकरियों में उनकी भागीदारी नगण्य है। मूल्य सुविधाओं की भी दरकार है। नागरिक की जरूरत के अनुसार सुविधा हो इसके लिए सरकार योजना लाती है, लेकिन अशिक्षित होने के कारण समाज के लोग योजना का लाभ नहीं उठा पाते हैं। आवास योजना, उज्ज्वला योजना सहित अन्य योजनाओं की सुविधाओं को दरकार है। इनका कहना है कि सड़क किनारे आज भी हम लोग झुग्गी झोपड़ी में रहने के लिए मोहताज हैं। हमारे पास ना तो अपनी जमीन है और न ही रहने के लिए सुरक्षित घर है। अधिकांश परिवार कचरा चुन कर साफ-सफाई अथवा भिक्षाटन कर गुजर बसर कर रहे हैं। अधिकांश खानाबदोश की जिंदगी जीने वाले लोग निचले पायदान पर खड़े हैं। आज भी विकास और प्रगति से कोसों दूर है। उनके जीवन में अभी तक शिक्षा की रोशनी नहीं पहुंची है। संपूर्ण जिले के विभिन्न प्रखंडों एवं क्षेत्र में खानाबदोश की जिंदगी जीने वाले नट मुसहर समाज के के लोग जहां तहां बसे हुए हैं और इन सभी परिवारों को कमोवेश यही स्थिति है। इनका जीवन स्तर सड़क किनारे झुग्गी झोपड़ियों तक ही सीमित है। यही नहीं इस समुदाय के लोग अभी तक शुद्ध पेयजल, शौचालय और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। समाज में अभी तक व्याप्त इस तरह की गहरी असमानता और प्रशासनिक उदासीनता के कारण इस समुदाय का जीवन आज भी एक त्रासदी बना हुआ है। इनके पास अपनी कोई जमीन नहीं है। इसके कारण उनके पास स्थाई आवास नहीं है। जमीन के अभाव में वह जहां-तहां झोपड़ी बनाकर पीढ़ी दर पीढ़ी अपना जीवन व्यतीत करते आ रहे हैं। स्थानीय प्रशासन से बार-बार भूमि और आवास के लिए मांग करने के बावजूद उन्हें सहायता नहीं मिली है। जमीन के अभाव में इन परिवारों को आवास योजना का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। भूमिहीन को बसाने की योजनाएं भी इन तक नहीं पहुंच पा रही हैं।

भिक्षा मांग कर या लकड़ी काटकर अपनी आजीविका चलाते हैं खानाबदोश

खानाबदोश की जिंदगी जी रहे लोगों ने बताया कि हम लोग समाज के सबसे पिछड़े समुदाय में से एक हैं लेकिन आज भी उनकी बुनियादी सुविधाओं को बहाल करने के लिए सरकार या प्रशासन के द्वारा कोई उपाय नहीं किया जा सका है। इन्हें रोजगार तक उपलब्ध नहीं है। भिक्षा मांग कर या लकड़ी काटकर अपनी आजीविका चलाते हैं। इन्हें मनरेगा से भी रोजगार नहीं मिलता है। इस समुदाय के लोगों ने कहा कि हम लोगों को बसाने के लिए सरकार कोई पहल नहीं कर रही है। इनकी पीढ़ी दर पीढ़ी सड़क किनारे ही झुग्गी झोपड़ी में अपना जीवन गुजार रहे हैं। इनको अगर भूमि उपलब्ध करा कर आवास योजना का लाभ मिले तो इनकी भी सामाजिक स्थिति सुधर सकती है। उनका कहना है कि हमारी पीढ़ी दर पीढ़ी भिक्षा मांग कर गुजारा करती आ रही है। सरकार को हम लोगों के लिए रोजगार का साधन उपलब्ध कराना चाहिए। रोजगार का साधन उपलब्ध नहीं होने के कारण हम लोग आज भी सामाजिक व आर्थिक रूप से पीछे रह जाते हैं। उनके पास रहने के लिए एक आदत घर तक नहीं है। सरकारी जमीनों पर झोपड़ी व कच्चे मकान में रहना हमारी नियति बन चुकी है। उन्होंने कहा कि भूमिहीन खानाबदोश नट मुसहर परिवारों को चिन्हित कर भूमि उपलब्ध कराई जाए। उनका कहना है कि सड़क किनारे जहां जगह मिल जाती है वहीं पर अपना ठिकाना बना लेते हैं। हम लोगों के बारे में ना जिला प्रशासन सोचता है और न ही कोई अधिकारी और जनप्रतिनिधि आखिर हम अपनी पीड़ा किसे सुनाएं। हम लोग इतने पढ़े लिखे नहीं हैं कि अपना दुख सरकारी अफसर के पास सुनाएं। हमारे विकास के लिए सरकार को योजना बनाकर चिन्हित जगह पर बसाने का अगर कार्य करें तो हम लोग भी समाज से जुड़कर अच्छा जिंदगी जी सकते हैं।

सुझाव

1. खानाबदोश की जिंदगी जी रहे नट मुसहर समाज को भूमि आवंटन हो

2. रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कौशल विकास योजनाओं का लाभ दिलाया जाए

3. शुद्ध पेयजल, शौचालय, स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाए

4.जिम्मेदार अधिकारियों, समाजसेवी और बुद्धिजीवियों को उनकी समस्याओं के प्रति जागरूक किया जाए।

4. इस समाज के लोगों को शिक्षित करने के लिए मुहिम चलाई जाए।

शिकायतें

1. जिले के सभी खानाबदोश नट मुसहर परिवार के पास ना तो अपनी जमीन है और ना ही अपना स्थाई मकान

2. यह समाज अभी तक शिक्षा से पूरी तरह वंचित है।

3. अभी भी इस समाज के अधिकांश लोग भिक्षाटन का कार्य कर अपना जीवन यापन करते हैं।

3. इन्हें अधिकांश सरकारी योजनाओं का लाभ अभी तक नहीं मिल रहा है।

3. इन परिवारों के अधिकांश बुनियादी एवं आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं है

हमारी भी सुनिए

हमारी कई पीढ़ियों का जीवन झुग्गी में रहते एवं कचरा चुनते बीत गया। राशन समेत अन्य सुविधा सरकार नहीं मिली है। शिकायत करने पर कोई सुनवाई नहीं होती है।

राकेश

पीढ़ी दर पीढ़ी हमारा जीवन झुग्गी में व्यतीत हो रहा है। प्रशासन से आवास योजना का लाभ नहीं मिला है। इसकी शिकायत की गई लेकिन समस्या पर सुनवाई नहीं होती है।

मुंडी देवी

झुग्गी में रहती हूं वहीं परिवार के लोग छोटे स्तर का काम करते हैं तो परिवार चलता है। सरकार हमें कुछ भी नहीं दे रही है। ना जमीन है और ना ही घर है।

रेशमी देवी

खानाबदोश जिंदगी जीने वाले लोगों की महिलाओं को उत्थान के लिए सरकार को बेहतर से बेहतर सुविधाएं मुहैया कराई जानी चाहिए ताकि वह सशक्त बन सकें।

मुन्नी देवी

हमारे परिवार की नई पीढ़ी को रोजगार और शिक्षित करने का सरकार को उपाय करना चाहिए। उनके विकास के लिए योजनाएं बनाई जानी चाहिए।

उपेंद्र

सरकार ने हमलोगों की कभी भी सुध नहीं ली। हमारी समस्या सुनने वाला कोई नहीं है। इसका निदान करते हुए सरकार को हमारे उत्थान का प्रयास करना चाहिए।

पप्पू

हम भूमिहीन हैं। सरकार को अभियान चल कर हमें भूमि उपलब्ध करानी चाहिए ताकि हम लोग स्थाई रूप से आवास बना कर रह सकें।

मुन्नी

हम लोगों के पास रहने के लिए जमीन नहीं है। सरकार को जमीन उपलब्ध कराकर हमें आवास योजना का लाभ देना चाहिए।

करण

हम लोगों के उत्थान के लिए सरकार को मुहिम चला कर शिक्षा से जोड़ना चाहिए ताकि हम लोग भी पढ़ लिखकर अपने अधिकार को समझ सकें।

प्रीति

मन में एक कसक रहती है कि अपने बच्चों को भी पढ़ा लिखा कर कुछ बनाए लेकिन मजबूरी में हम बच्चों को शिक्षा नहीं दे पाते हैं। घर की माली हालत खराब होने के कारण बच्चे भी काम में लग जाते हैं।

शोभा

अब तक खानाबदोश परिवारों का विकास नहीं हो पाया है। बहुत नेता विकास की बात करते हैं लेकिन समाज का उत्थान नहीं कर सके। आज भी हम लोग बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं।

मीना देवी

हमलोग असहाय महसूस करते हैं। कहीं भी हम लोगों को मान सम्मान नहीं मिल पाता है। किसी तरह अपनी जिंदगी जी रहे हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

सोनू

इस समाज की शिकायतें सुनने वाला कोई नहीं है। कैंप लगाकर सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जाती तो हम सभी के लिए बहुत अच्छा होता।

कर्ण

समस्या सभी के साथ है लेकिन विशेष रूप से हम लोगों की समस्या है क्योंकि आज तक हम लोगों को आवास योजना का लाभ सरकार की ओर से नहीं मिल सका है। इसके कारण सड़क किनारे झोपड़ी और झुग्गी बना कर रहने को विवश हैं।

नीता

आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण शिक्षा का अभाव है। इसके कारण हम लोगों को कम उम्र में ही परिवार की जिम्मेवारी उठाने पड़ती है।

मुकेश नट

किसी तरह काम कर अपने परिवार को जीविकोपार्जन चला रहे हैं। घर की हालत दयनीय है। हम लोग शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं।

रामझरी

नट मुसहर समाज के लोगों के पास खाने को एक दाना नहीं है और उपर से हम लोगों को रोजगार भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।

उषा देवी

गरीबी और अशिक्षित होने के कारण समाज के बच्चे बाल श्रम का शिकार हो रहे हैं। हम लोगों के समाज में शिक्षा का अभाव है जिसे दूर करने के लिए सरकार को जागरूक करने की जरूरत है।

पंकज नट

हम लोगों के लिए सरकार बहुत सारी योजनाएं चल रही हैं लेकिन जानकारी और शिक्षा के अभाव के कारण उसका लाभ हम नहीं ले पाते हैं। साथ ही हम लोगों का एक जगह ठिकाना नहीं रहने के कारण भी परेशानी हो रही है।

गुड्डी देवी

हम लोग रोज कमाने और रोज खाने वाले व्यक्ति हैं। अगर एक दिन काम नहीं करने जाएंगे तो घर का चूल्हा तक नहीं जल पाएगा। हमारे लिए विशेष प्रयास करने की जरूरत है।

सत्येंद्र नट

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