मघा श्राद्ध आज, जानें श्राद्ध का समय, विधि व खास महत्व
- Magha Shradh 2024 : आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि पर मघा श्राद्ध किया जाएगा। ऐसी मान्यता है की मघा श्राद्ध के दिन पितरों का तर्पण व श्राद्ध करने से पितर अपने वंशजों को खूब आशीर्वाद देते हैं।
Magha Shradh 2024 : पितृ पक्ष के दौरान मघा श्राद्ध का दिन काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि पर मघा श्राद्ध किया जाएगा। मघा नक्षत्र लगने पर मघा श्राद्ध किया जाता है। आज, रविवार के दिन मघा श्राद्ध किया जाएगा। मान्यताओं के अनुसार, दोपहर के वक्त श्राद्ध कर्म करना शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है की मघा श्राद्ध के दिन पितरों का तर्पण व श्राद्ध करना बेहद लाभकारी माना जाता है। आइए जानते हैं आखिर क्यों खास है मघा श्राद्ध, श्राद्ध करने का समय, व विधि-
मघा श्राद्ध आज: जिस दिन अपराह्न काल के दौरान मघा नक्षत्र प्रबल होता है, उसी दिन मघा श्राद्ध किया जाता है। अपराह्न काल के दौरान मघा नक्षत्र व त्रयोदशी तिथि का संयोग बनने पर मघा त्रयोदशी श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध कर्म करने के लिए कुतुप मुहूत सबसे उत्तम मुहूर्त माना जाता है।
श्राद्ध का समय: पंचांग अनुसार, मघा नक्षत्र का प्रारंभ 28 सितम्बर की रात 03 बजकर 38 मिनट पर हुआ, जिसकी समाप्ति सितम्बर 30 को सुबह 06 बजकर 19 मिनट पर होगी। कुतुप मूहूर्त आज सुबह 11 बजकर 47 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा, जिसकी अवधि 00 घण्टे 48 मिनट्स है। इस मुहूर्त के बाद भी श्राद्ध किया जा सकता है। आप रौहिण मूहूर्त दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से दोपहर 1 बजकर 23 मिनट तकमें श्राद्ध कर सकते हैं।
क्यों खास है मघा श्राद्ध: पितृ पक्ष का मघा श्राद्ध विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मघा नक्षत्र 10वां नक्षत्र है, जिसके देवता पितर हैं। मघा नक्षत्र प्रबल होने पर ही मघा श्राद्ध किया जाता है। इस नक्षत्र पर पितरों का प्रभाव अधिक होता है। इसलिए मघा श्राद्ध के लिए पितृ तर्पण व श्राद्ध कर्म करने से पुण्य मिलता है व पूर्वजों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। मन्यताओं के अनुसार, मघा श्राद्ध के दिन श्राद्ध कर्म करने से पितर प्रसन्न व संतुष्ट होते हैं और अपने वंशजों पर कृपा बनाए रखते हैं।
इस विधि से करें तर्पण: पूर्व दिशा की ओर मुंह करें। इस दिन घर के मुख्य द्वार पर फूल आदि डालकर पितरों का आह्वान करें। पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय का ग्रास निकालें। बिना कुश आदि पहने केवल हाथ से तर्पण नहीं करना चाहिए। पितरों को तर्पण करने वाले जल में काले तिल, जौ, चंदन, अक्षत, आदि मिला लें। श्राद्ध कर्म में तिल, कुशा सहित जल लेकर पितृ तीर्थ यानि अंगूठे की ओर से पिंड पर छोड़ने से पितरों को तृप्ति मिलती है। किसी ब्राह्मण को वस्त्र, फल, मिठाई आदि दान दें। जिन्हें ब्राह्मण नहीं मिल सके, वे भोजन आदि मंदिर में बांट सकते हैं।
श्राद्ध करने की आसान विधि
सुबह जल्दी उठें।
स्नानादि के बाद स्वच्छ कपड़े धारण करें।
पितृस्थान को गाय के गोबर से लीपकर और गंगाजल से पवित्र करें।
महिलाएं स्नान करने के बाद पितरों के लिए सात्विक भोजन तैयार करें।
श्राद्ध भोज के लिए ब्राह्मणों को पहले से ही निमंत्रण दें।
ब्राह्मणों के आगमन के बाद उनसे पितरों की पूजा और तर्पण कराएं।
पितरों का नाम लेकर श्राद्ध करने का संकल्प लें।
जल में काला तिल मिलाकर पितरों को तर्पण दें।
पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, घी, खीर और दही अर्पित करें।
चावल के पिंड बनाकर पितरों को अर्पित करें।
ब्राह्मण को पूरे सम्मान के साथ भोजन कराएं।
अपनी क्षमतानुसार दान-दक्षिणा दें।
इसके बाद आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करें।
श्राद्ध में पितरों के अलावा कौए, देव, गाय, और चींटी को भोजन खिलाने का विधान है।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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