केंद्रीय बलों को 5 साल तक बंगाल में रुकने का आदेश दे देंगे, ममता की पुलिस पर क्यों भड़का HC
न्यायमूर्ति कौशिक चंदा और न्यायमूर्ति अपूर्व सिन्हा रॉय की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि चुनाव बाद हिंसा की घटनाओं से कथित रूप से प्रभावित व्यक्ति ई-मेल के जरिए डीजीपी को शिकायतें भेज सकते हैं।

लोकसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा के बाद पश्चिम बंगाल में कथित चुनाव-बाद हिंसा की खबरों पर हाईकोर्ट भड़का हुआ है। चुनाव बाद हिंसा पर निराशा और चिंता व्यक्त करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि अगर राज्य हिंसा को नियंत्रित करने में विफल रहता है तो वह केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) को अगले पांच वर्षों तक राज्य में तैनात रहने के लिए कह सकता है। राष्ट्रबादी आइनजीबी नामक संगठन द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति कौशिक चंदा और न्यायमूर्ति अपूर्व सिन्हा रे की खंडपीठ ने राज्य सरकार को निर्देश जारी किया कि वह हिंसा से प्रभावित लोगों को ईमेल के माध्यम से राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को शिकायत दर्ज करने की अनुमति दे। पीठ ने कहा, ‘‘हम किसी भी कीमत पर राज्य के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहते हैं।’’
यह आदेश उच्च न्यायालय में एक याचिका के बाद आया है जिसमें चुनाव के बाद राज्य के कुछ स्थानों पर कथित चुनाव बाद हिंसा के मद्देनजर विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पुलिस को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। यह टिप्पणी करते हुए कि इसी तरह के आरोप 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद भी सामने आए थे अदालत ने पूछा कि क्या चुनाव बाद हिंसा की घटनाएं किसी अन्य राज्य में हुई हैं।
आम चुनावों के बाद हिंसा होने की खबरों पर निराशा व्यक्त करते हुए अदालत ने ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने की राज्य सरकार की जिम्मेदारी पर भी जोर दिया। न्यायमूर्ति कौशिक चंदा और न्यायमूर्ति अपूर्व सिन्हा रॉय की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि चुनाव बाद हिंसा की घटनाओं से कथित रूप से प्रभावित व्यक्ति ई-मेल के जरिए डीजीपी को शिकायतें भेज सकते हैं। खंडपीठ ने कहा कि यदि शिकायत में संज्ञेय अपराध का संकेत मिलता है, तो डीजीपी इसे प्राथमिकी दर्ज करने के लिए संबंधित स्थानीय पुलिस थाने को भेज देंगे।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि प्रभावित व्यक्ति शिकायत दर्ज कराने के लिए स्थानीय पुलिस थाने जाने में झिझक रहे हैं। अदालत ने डीजीपी को 10 दिनों के भीतर एक रिपोर्ट देने का निर्देश दिया, जिसमें प्राप्त शिकायतों की संख्या, दर्ज की गई प्राथमिकी और इस संबंध में की गई कार्रवाई का विवरण हो। अदालत में राज्य सरकार के वकीलों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा जिन घटनाओं का उल्लेख किया है, वह सीधे तौर पर चुनावों से जुड़ी नहीं हो सकती हैं। लोकसभा चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने के बाद निर्वाचन आयोग ने राज्य में कुछ और समय तक केंद्रीय बलों की पर्याप्त मौजूदगी बनाए रखने का निर्णय लिया है।
अदालत ने पुलिस को प्राप्त शिकायतों को तुरंत अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का भी निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता सुस्मिता साहा दत्ता की वकील ने अदालत को बताया कि पिछले शनिवार को राज्य में सात चरणों के मतदान समाप्त होने के बाद से 11 लोगों की मौत हो चुकी है। दत्ता ने अदालत को बताया, "1 जून को चुनाव प्रक्रिया पूरी हो गई थी। उसके बाद गुरुवार तक चुनाव बाद की हिंसा में 11 लोगों की मौत हो चुकी है।"
इसके बाद बेंच ने पूछा, “हम कैसे मान लें कि 11 लोग मारे गए हैं?” दत्ता ने जवाब दिया, “हमारे पास पर्याप्त दस्तावेज हैं।” राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा: “ये सच नहीं हैं।” न्यायमूर्ति कौशिक चंदा ने कहा, "हम हर दिन मीडिया में चुनाव के बाद की हिंसा के बारे में देख रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद जो हुआ, वही इस बार भी हो रहा है। आपको (राज्य को) शर्म आनी चाहिए।"
न्यायमूर्ति चंदा ने कहा, "अगर राज्य इस हिंसा को नियंत्रित करने में विफल रहता है, तो हमें यह निर्णय लेना होगा कि अगले पांच वर्षों तक केंद्रीय बल इस राज्य में रहें।" 4 जून को मतगणना से एक दिन पहले, चुनाव आयोग (ईसी) ने पश्चिम बंगाल में केंद्रीय बलों की लगभग 400 कंपनियों की तैनाती को 15 दिनों के लिए 19 जून तक बढ़ाने का फैसला किया है। चुनाव आयोग ने कहा कि सीएपीएफ को मुख्य रूप से उन क्षेत्रों और जिलों में तैनात किया जाएगा जो किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए हिंसा के लिहाज से संवेदनशील हैं। इससे पहले, केंद्रीय बलों को मतगणना के दो दिन बाद यानी 6 जून तक राज्य में रहना था।
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