Haridwar s Bhupatwala Faces Sports Ground Shortage for 80 000 Residents बोले हरिद्वार : भूपतवाला क्षेत्र के बच्चे और युवा खेल मैदान नहीं होने से परेशान, Haridwar Hindi News - Hindustan
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बोले हरिद्वार : भूपतवाला क्षेत्र के बच्चे और युवा खेल मैदान नहीं होने से परेशान

हरिद्वार के भूपतवाला क्षेत्र में 80 हजार की आबादी के लिए कोई खेल मैदान नहीं है। इससे युवा और बच्चे खेल गतिविधियों से दूर होते जा रहे हैं। खेल के लिए उन्हें आठ किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। लोगों ने...

Newswrap हिन्दुस्तान, हरिद्वारSun, 18 May 2025 11:07 PM
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बोले हरिद्वार : भूपतवाला क्षेत्र के बच्चे और युवा खेल मैदान नहीं होने से परेशान

हरिद्वार के भूपतवाला क्षेत्र में 80 हजार की आबादी के लिए एक भी खेल मैदान नहीं है। जिससे युवाओं और बच्चों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मजबूरी में युवा भूपतवाला से आठ किमी दूर भेल स्थित खेल के मैदान में प्रैक्टिस करने जाते हैं। इसके अलावा उन्हें ऋषिकेश में खेलने जाना पड़ता है। वहीं दूधाधारी मैदान की चारदीवारी कर दी है और पंतद्वीप मैदान में पार्किंग बना दी गई है। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि उन्हें जल्द खेल मैदान उपलब्ध कराया जाए, ताकि उन्हें खेलने के लिए परेशान न होना पड़े। हरिद्वार से सचिन कुमार की रिपोर्ट...

हरिद्वार के भूपतवाला और खड़खड़ी क्षेत्र में करीब 80 हजार की आबादी निवास करती है। इतनी बड़ी आबादी में करीब 30 हजार युवाओं और बच्चों के लिए खेल का मैदान नहीं है। पहले यहां शनिदेव मंदिर के सामने कुंभ मेला भूमि पर दूधाधारी मैदान था। इस मैदान में बच्चे क्रिकेट और फुटबॉल जैसे खेल खेला करते थे। लेकिन कुछ दिन पहले यहां टीन शेड की चाहरदीवारी करके खेल पर रोक लगा दी गई। अब यहां पर कोई खेल एक्टिविटी नहीं हो रही है। इसके अलावा पंतद्वीप मैदान में सिंचाई विभाग की खाली भूमि पड़ी थी। यहां पर भी क्रिकेट का बड़ा मैदान बनाया गया था। कुछ दिन पहले यहां सिंचाई विभाग ने चमगादड़ टापू की पार्किंग बना दी। जहां अब यात्रियों के वाहन खड़े रहते हैं। साथ ही चारधाम यात्रा के मध्यनजर पुलिस प्रशासन ने टैंट लगाकर होल्ड अप एरिया बना दिया है। बड़ा टैंट लगाने के साथ बल्लियां लगा दी गई। हालांकि पुलिस प्रशासन ने ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए यह व्यवस्था है, लेकिन व्यवस्था के कारण खेल बंद हो गया है। लोगों का आरोप है कि उनके क्षेत्र में खेल मैदानों की यह कमी केवल एक स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि अव्यवस्थित विकास की मार युवाओं को झेलनी पड़ रही है। प्रशासनिक व्यवस्थाएं युवाओं की जरूरतों पर हावी पड़ रही हैं।

लोगों ने बताया कि भूपतवाला और खड़खड़ी क्षेत्र में 30 हजार से अधिक बच्चे और युवा हैं जो किसी न किसी खेल से जुड़ना चाहते हैं। लेकिन आज उन्हें प्रैक्टिस के लिए आठ किलोमीटर दूर भेल या ऋषिकेश जाना पड़ता है। इसके अलावा रोशनाबाद खेल स्टेडियम और भी ज्यादा दूर पड़ता है। यह दूरी हर बच्चे या खिलाड़ी के लिए मुमकिन नहीं है, खासकर उन लोगों के लिए जो आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वह इस गंभीर मुद्दे पर तत्काल ध्यान दे और बच्चों को फिर से खेलने की आजादी दे। यदि अब भी प्रशासन नहीं जागा तो यह आने वाले समय में यह एक बड़ी सामाजिक समस्या का रूप ले सकती है। खेलों से कटते बच्चे न केवल अपनी प्रतिभा गंवाएंगे, बल्कि खेल को करियर बनाने में भी पीछे रह जाएंगे। ऐसे में यह जरूरी है कि भूपतवाला और खड़खड़ी क्षेत्र को जल्द से जल्द एक समुचित और सुरक्षित खेल मैदान उपलब्ध कराया जाए, ताकि यहां की प्रतिभाएं फिर से मैदान में लौट सकें और अपने भविष्य को संवार सकें। उन्होंने मांग की है कि जब देश में खेलो इंडिया जैसी बड़ी योजनाएं चलाई गईं हैं तो खेल मैदानों की उपलब्धता के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए।

दूधिया वन में बिजलीघर बनने से खेल हुआ बंद

भूपतवाला क्षेत्र में कभी दूधिया वन नामक स्थान में एक बड़ा खेल मैदान हुआ करता था। यह मैदान खासतौर से क्रिकेट और कबड्डी जैसे पारंपरिक खेलों के लिए मशहूर था। स्थानीय लोग और बच्चे यहां नियमित रूप से अभ्यास करते थे। लेकिन कुछ साल पहले यहां पर बिजलीघर बना दिया गया। बिजलीघर बनने के बाद पूरे क्षेत्र को चारों ओर से बंद कर दिया गया और खेल गतिविधियां एकदम समाप्त हो गईं। लोग सवाल उठा रहे हैं कि अगर हर खुली जगह पर निर्माण होगा, तो बच्चों और युवाओं का भविष्य कहां तैयार होगा?

बच्चों ने छोड़ दिए खेल, बढ़ रही स्क्रीन टाइम की आदत

भूपतवाला और खड़खड़ी क्षेत्र में खेल के मैदानों की कमी का सबसे बड़ा असर छोटे बच्चों पर पड़ रहा है। पहले जहां शाम होते ही बच्चे मैदानों की ओर दौड़ पड़ते थे अब वे घरों में मोबाइल, टीवी या वीडियो गेम्स में व्यस्त दिखाई देते हैं। अभिभावकों का कहना है कि बच्चों की शारीरिक गतिविधियां अब लगभग शून्य हो गई हैं। न खेल से जुड़ाव रहा न टीमवर्क और अनुशासन जैसी सीख मिल रही है। खेल केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास का जरिया होता है। लेकिन जब आसपास कोई मैदान नहीं हो तो बच्चे मजबूरी में मोबाइल की ओर खिंचने लगते हैं। इसके कारण आंखों की समस्याएं, चिड़चिड़ापन और मोटापा जैसी दिक्कतें बढ़ रही हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि अगर जल्द ही मैदान नहीं बनाए गए तो आने वाली पीढ़ी सिर्फ स्क्रीन के पीछे की दुनिया में ही सीमित रह जाएगी।

30 से 40 साल की उम्र के लोग भी कर रहे हैं खेल मैदान का इंतजार

भूपतवाला और खड़खड़ी क्षेत्र में खेल मैदान की कमी सिर्फ बच्चे और युवा ही नहीं है बल्कि 30 से 40 साल की उम्र के लोग भी इससे प्रभावित हैं। इन इलाकों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो स्वास्थ्य और फिटनेस के लिए हर दिन खेलना या व्यायाम करना चाहते हैं। लेकिन पास में कोई भी उपयुक्त मैदान या पार्क न होने के कारण वे या तो घरों में ही सीमित रह जाते हैं या फिर उन्हें लंबी दूरी तय करके किसी और क्षेत्र में जाना पड़ता है। यह स्थिति न केवल उनकी दिनचर्या को प्रभावित कर रही है बल्कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ा रही है। लोगों का कहना है कि इस उम्र के लोग अक्सर सुबह-शाम टहलने, बैडमिंटन, वॉलीबॉल या क्रिकेट जैसे हल्के खेल खेलते थे। लेकिन अब उनके पास कोई जगह नहीं बची। इसलिए उनकी मांग है कि जल्द ही इन क्षेत्रों के लिए एक बड़ा मैदान बनाया जाए जिसमें सभी तरह के खेल खेलने की सुविधा उपलब्ध हो।

प्रशासन की अनदेखी से मैदान में लगी फ्लड लाइट बनीं शोपीस

एक समय था जब पंतद्वीप मैदान में खेल की रौनक देखते ही बनती थी। यहां बच्चों से लेकर युवा तक हर रोज क्रिकेट, फुटबॉल और एथलेटिक्स की प्रैक्टिस करते थे। वर्ष 2004 में यहां खेल सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए बड़े-बड़े फ्लड लाइट पोल लगाए गए थे। ताकि रात को भी खिलाड़ी प्रैक्टिस कर सकें। इन लाइटों की रोशनी में देर शाम तक खेल चलता रहता था। लेकिन आज वही मैदान वीरान पड़ा है। पुलिस प्रशासन ने चारधाम यात्रा के दौरान यहां पार्किंग और टेंट लगाने की व्यवस्था कर दी है। जिससे खेल पूरी तरह बंद हो गया है। लाखों रुपये की लागत से लगाई गई लाइटें अब केवल शोपीस बनकर रह गई हैं। खिलाड़ी सवाल कर रहे हैं कि जब मैदान ही नहीं बचा, तो यह लाइट किस काम की? उनका कहना है कि यह संसाधनों का दुरुपयोग है और प्रशासन को खेल के लिए समर्पित स्थानों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।

सुझाव

1. भूपतवाला और खड़खड़ी क्षेत्र में सरकारी या खाली पड़ी भूमि को चिन्हित कर खेल मैदान बनाए जाएं।

2. पुराने मैदान जैसे दूधाधारी और पंतद्वीप को खेल गतिविधियों के लिए दोबारा बहाल किया जाए।

3. क्षेत्रीय विकास योजनाओं में खेल और शारीरिक गतिविधियों के लिए प्रस्ताव बनाया जाए।

4. बच्चों और युवाओं की खेल प्रतिभा को संवारने के लिए प्रशिक्षण की सुविधा और खेल आयोजन की व्यवस्था की जाए।

5. खेलो इंडिया जैसी योजनाओं के अंतर्गत इन क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हुए मैदानों और पार्कों की समुचित व्यवस्था की जाए।

शिकायतें

1. भूपतवाला और खड़खड़ी क्षेत्र में खेल मैदान न होने से हजारों बच्चे-युवा खेल गतिविधियों से दूर हो गए हैं।

2. दूधाधारी-पंतद्वीप मैदानों को प्रशासन ने चारदीवारी पार्किंग और होल्डिंग एरिया में बदल दिया है।

3. खेल के लिए आठ किलोमीटर दूर भेल या ऋषिकेश जाना हर बच्चे के लिए संभव नहीं है।

4. प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को कई बार अवगत कराया गया, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिले। जमीनी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

5. जो पार्क बचे हैं वे भी रखरखाव के अभाव में बदहाल हो चुके हैं। बुजुर्गों और महिलाओं के लिए टहलने की जगह तक नहीं है।

बोले जिम्मेदार

फ्लाईओवर के नीचे खिलाड़ियों के लिए स्पोर्ट्स जोन बनाया जा रहा है। निर्माण कार्य पूर्ण होते ही स्पोर्ट्स जोन का शुभारंभ कराया जाएगा। यदि भूपतवाला क्षेत्र में कोई खाली जमीन है तो लोग प्रस्ताव बनाकर दें। प्रस्ताव मिलने के बाद खेल मैदान की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाएगी।

-मनीष सिंह, सचिव, हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण

मन की बात

हर रोज काम और कॉलेज से लौटने के बाद खेलने का मन करता है। लेकिन अब तो मैदान ही नहीं बचा। भेल जाने में समय भी लगता है और पैसे भी खर्च होते हैं। प्रशासन को इसका संज्ञान लेकर कार्रवाई करे। -अजय गिरी

हमने दूधाधारी मैदान में सालों तक क्रिकेट खेला। लेकिन अब वहां चारदीवारी कर दी गई है। वहां जाना भी मना है। अब तो गली-मोहल्लों में ही खेलने को मजबूर हैं। हमारी समस्या हल होनी चाहिए। -अमन ठाकुर

ऋषिकेश या रोशनाबाद जाना हमारे लिए बहुत मुश्किल है। रोज सफर करना न संभव है और न ही सुरक्षित। नतीजा ये है कि कई बच्चों ने खेलना ही छोड़ दिया। क्षेत्र में जल्द से जल्द खेल मैदान बनना चाहिए। -डुंगर सिंह

शारीरिक विकास के लिए खेल बहुत जरूरी है। लेकिन अब बच्चे मोबाइल में ज्यादा और मैदान में कम हैं। क्योंकि आसपास खेलने की जगह ही नहीं छोड़ी गई। यह समस्या जल्द हल होनी चाहिए। -गौरव गोस्वामी

अगर सरकार खेलो इंडिया जैसी योजनाएं चला रही है तो मैदानों की व्यवस्था भी करनी चाहिए। क्या हमें एक खेल मैदान भी नहीं मिल सकता? बच्चों के साथ ये अन्याय है। -गोविंद पांडे

कई बार जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से बात की, लेकिन केवल आश्वासन मिले। जमीनें खाली हैं लेकिन उन्हें या तो पार्किंग में बदला जा रहा है या अन्य उपयोग में लिया जा रहा है। -मोहित अरियाल

हमारे इलाके में खेल प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन मंच नहीं है। अगर एक अच्छा मैदान मिल जाए तो यहां से राज्य और राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी निकल सकते हैं। संबंधित विभाग इसका संज्ञान लें। -रविकांत रावत

भूपतवाला में खेल के मैदान तो है ही नहीं, बल्कि टहलने के लिए पार्क तक नहीं है। जो पार्क है वो देखरेख के अभाव में बदहाल होते जा रहे हैं। जिला प्रशासन को इस समस्या को जल्द हल करना चाहिए। -रितेश पांडे

पंतद्वीप और दूधाधारी मैदान में केवल खेल होता था अब वहां पार्किंग बन गई है। बिना मैदान के युवाओं की प्रतिभा उभरकर नहीं आ सकती। इसलिए जल्द से जल्द खेल मैदान बनाया जाना चाहिए। - श्याम सिंह

प्रशासन को खेल मैदान के साथ-साथ यहां पार्क भी बनाने चाहिए। जहां बच्चे और महिलाएं भी टहल सकें। हमें अस्थाई नहीं खेलों की समस्या का स्थाई समाधान चाहिए। प्रशासन इस पर ध्यान दे। -विशाल गोस्वामी

हमारी कॉलोनी में सैकड़ों बच्चे हैं जो खेलना चाहते हैं। लेकिन कोई मैदान नहीं बचा है। अगर प्रशासन चाहे तो जमीन की व्यवस्था कर वहां खेल मैदान बनाया जा सकता है, ताकि प्रतिभाएं उभरकर आगे आएं। -आयुष रौथ

पंतद्वीप मैदान में अच्छी प्रैक्टिस होती थी, लेकिन अब वहां टेंट लगे हैं। जो मैदान बचा है उसमें पत्थर, घास और पानी भरा है। समझ नहीं आता कि खेलों के लिए कोई क्यों नहीं सोचता। -दिनेश रावत

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