बोले मथुरा-किसी और की लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे चालक
Mathura News - बोले मथुरा-कासगंज में सड़क सुरक्षा के संबंध में बातें तो बड़ी-बड़ी की जाती हैं, लेकिन उन्हें

कासगंज में सड़क सुरक्षा के संबंध में बातें तो बड़ी-बड़ी की जाती हैं, लेकिन उन्हें अमल में नहीं लाया जाता। सुधार भी तब तक ही दिखता है, जब तक अभियान चलता है। इसके बाद स्थिति जस की तस बन जाती है। अतिक्रमण के कारण तंग हो चुकी शहर की सड़कों पर कभी जाम, तो कभी बारिश में जर्जर सड़क और गलियों में जलभराव के बीच से बच्चों को लेकर गुजरने वाले स्कूल वाहनों को अक्सर देखा जाता है। इसके बाद भी ये स्कूल वाहन चालक बच्चों को समय पर और सुरक्षित पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाते हैं। स्कूल पहुंचने में थोड़ी-सी देर होने पर इन्हें प्रबंधन की फटकार और घर छोड़ने में देर होने पर अभिभावकों को जवाब देना पड़ता है।
ऐसी तमाम समस्याओं को झेलते हुए स्कूली वाहनों के चालक अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं। कासगंज में तकरीबन 200 बसें स्कूलों में चल रही हैं। इन बसों के संचालन से सरकार का खजाना तो भरता है, लेकिन स्कूल बस चालक और संचालक की स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ता। चालक जोगेंद्र बताते हैं कि अधिकांशत: अभिभावक समय की कमी के चलते अपने बच्चों को स्कूल लाने और ले जाने के लिए स्कूल वैन अथवा बस पर ही भरोसा करते हैं। इसमें भी बच्चों को समय पर और सुरक्षित स्कूल लाने व ले जाने की जिम्मेदारी हम वाहन चालकों पर ही होती है। ऐसे में हम लोग समय के पाबंद रहकर ड्यूटी निभाते हैं। इसके बाद भी हम वाहन चालकों को ऐसी दुश्वारियां और मुश्किलें का सामना करना पड़ता है, जो हमारी लिए परेशानी का सबब बन जाती हैं। शहर के सोरों गेट से लेकर अंदर की सड़कों तक जगह-जगह जाम में फंसना, फिर भी समय पर बच्चों को स्कूल पहुंचाना बहुत ही तनावपूर्ण काम होता है। रही बची कसर छुट्टी के समय निकल जाती है। दोपहर के समय पर सड़कों पर वाहनों की संख्या भी अधिक होती है और जगह-जगह लगने वाले ठेले-खोमचों के साथ फैला अन्य अतिक्रमण हमारी समस्या को और भी बढ़ा देते हैं। वाहन चालक निर्दोष कुमार ने बताया कि अगर सुरक्षा की बात करें तो कई बार छोटे बच्चे सीट बेल्ट ही नहीं लगाते। बच्चों को बैठाते समय वाहन चालक बेल्ट लगाते हैं, लेकिन उसे बच्चे फिर खोल देते हैं। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा भी बड़ी जिम्मेदारी होती है। उसमें जरा-सी चूक होने पर ट्रैफिक पुलिस चालान काट देती है। स्कूल वाहन चालकों का कहना है कि शहर में फैले अतिक्रमण के कारण जाम की समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। अतिक्रमण के चलते गलियां एवं सड़कें सिमटती जा रही हैं। छुट्टी के समय जाम में फंसकर हमारा काफी समय बर्बाद हो जाता है। ऐसे में बच्चों के साथ हमें भी परेशान होना पड़ता है। स्कूलों की छुट्टी के समय यातायात पुलिस को सक्रिय रहना चाहिए। समस्याओं के साथ ड्यूटी करना और कठिन हो जाता स्कूल वाहन चालकों का कहना है कि हम अपने वाहनों को पूरी तरह से फिट रखने का प्रयास करते हैं। इसके साथ ही हम लोग नियम कायदों का भी पूरा ध्यान रखते हैं। फिर भी कई बार ऐसा होता है कि निजी वैन अन्य वाहन जो नियम विरुद्ध चलते हैं और स्कूली बच्चों को लेकर आते जाते हैं। इन वाहनों से ही हादसे हो जाते हैं। कोई हादसा होता है तो इसके बाद प्रशासन सख्ती दिखाते हुए कार्यवाही करता है। लेकिन निजी वाहनों इसके शिकार नहीं होते, क्योंकि वो लोग गायब हो जाते हैं और छोटी एवं मामूली कमियां निकाल कर हमारे वाहनों के चालान काट दिए जाते हैं। इन समस्याओं के साथ ड्यूटी करना और कठिन हो जाता है। कई स्कूल वाहन चालकों को उनकी सेवाओं के लिए पर्याप्त वेतन नहीं मिलता है। जिसके चलते उनकी आर्थिक स्थिति सही नहीं हो पा रही है। स्कूली वाहन चालकों का कहना है, कि उन्हें इतने कम पैसे मिलते हैं कि घर खर्च चलाना भी मुश्किल होता है। यह समस्या तब और बढ़ जाती है जब पुलिस की कार्यवाही होने पर स्कूल वाहन मालिक हमलोगों के पैसे काट देते हैं। हर सुबह हम समय से पहले घर से निकलते हैं, ताकि बच्चों को स्कूल समय से पहुंचाया जा सके। लेकिन जाम, गड्ढ़े अतिक्रमण हर रोज की चुनौती हैं। फिर भी हम पूरी कोशिश करते हैं, क्योंकि हमारे लेट होने से बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो सकती है। -जोगेंद्र हमें यह चिंता रहती है कि कोई भी बच्चा असुरक्षित न हो, लेकिन बच्चों को बेल्ट लगवाने के बावजूद वे अक्सर खोल देते हैं। इसके बाद गलती हमारी मानी जाती है। ट्रैफिक पुलिस चालान काट देती है, हमारी मंशा हमेशा सुरक्षा सुनिश्चित करने की होती है। -निर्दोष कुमार हमारे वाहन फिटनेस पास होने के बावजूद कई बार मामूली कमियों पर चालान काट दिया जाता है। असली खतरा तो वे निजी वाहन हैं जो बिना अनुमति बच्चों को लाते-ले जाते हैं। लेकिन कार्रवाई सिर्फ हमारे ऊपर होती है। -संजू कुमार स्कूलों की छुट्टी के समय में जाम के कारण हम तनाव में रहते हैं। गलियों में ठेले और दुकानों के अतिक्रमण से हालत बदतर है। ऐसे में बच्चे लेट होते हैं और उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है। प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए। -बॉबी स्वास्थ्य विभाग को हमारी सेहत का ख्याल रखना चाहिए। दिनभर धूल और धुएं में रहना आंखों और फेफड़ों पर असर डालता है। हमारी आंखों की नियमित जांच हो और कमजोर दृष्टि वालों को निशुल्क चश्मा मिले, तो हम बेहतर सेवा दे सकेंगे। -ओमप्रकाश हमारी सैलरी इतनी कम है कि घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है। ऊपर से अगर कोई चालान हो जाए तो वाहन मालिक हमारे पैसे काट लेते हैं। इस काम में हम मानसिक दबाव के साथ आर्थिक परेशानियां झेल रहे हैं। -संजू
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