गीडा के बॉयलर में रोज फुंक रही 40 ट्रक धान की भूसी, घरों से लेकर फैक्ट्रियों में पहुंच रही राख
गोरखपुर, अजय श्रीवास्तव। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा गीडा क्षेत्र की सरिया फैक्ट्री की
गोरखपुर, अजय श्रीवास्तव। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा गीडा क्षेत्र की सरिया फैक्ट्री की चिमनियों ने निकलने वाली राख को लेकर जवाब तलब किये जाने के बाद बॉयलर में धान की भूसी का इस्तेमाल करने वाली फैक्ट्रियां रडार पर हैं। बॉयलर में धान की भूसी के इस्तेमाल से गीडा क्षेत्र के सटे कस्बाई और ग्रामीण इलाकों के घरों से लेकर फैक्ट्रियों में पहुंच रही राख से लोग परेशान हैं। यह लापरवाही तब है जब टोरेंट गैस की तरफ से गीडा में पाइप लाइन बिछा दी गई है। इसके इस्तेमाल से प्रदूषण और राख से निजात मिलने की उम्मीद है।
गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) की करीब 25 छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों के बॉयलर में आग के लिए रोज 30 से 40 ट्रक धान की भूसी की खपत होती है। इस भूसी की आग से ही चिमनियों के जरिये राख पूरे सहजनवां कस्बे के घरों तक पहुंचता है। सहजनवां क्षेत्र के लोगों का कहना है कि राख के चलते हर वक्त घरों के दरवाजे और खिड़कियों को बंद रखने की मजबूरी है। चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष आरएन सिंह का कहना है कि प्रदूषण की समस्या से सभी को मिलकर पहल करनी होगी। पीएनजी एक विकल्प है। इसे लेकर उद्यमियों और गीडा के अधिकारियों के साथ बैठक कर रास्ता निकालने का प्रयास होगा।
टोरेंट की पाइप लाइन ज्यादेतर एरिया में पहुंची
गीडा की फैक्ट्रियों में आग की जरूरतों को देखते हुए टोरेंट गैस की तरफ से पीएनजी लाइन बिछा दी गई है। सेक्टर 15 और 17 में पूरी तरह पाइप लाइन बिछा दी गई है। टोरेंट गैस के जिम्मेदारों का दावा है कि जहां भी बॉयलर का इस्तेमाल होता है, वहां से पाइप लाइन गुजरी है। धान की भूसी और पीएनजी से आग की जरूरत को पूरा करने में लागत में खास अंतर नहीं है। लेकिन प्रदूषण के स्तर का अंतर काफी अधिक है। बताया जा रहा है कि धान और पीएनजी की आग की लागत में करीब 30 फीसदी तक का अंतर आएगा।
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