मिल्कीपुर की पिच पर बीजेपी ने खेला बडा दांव, चंद्रभानु को उतार एक तीर से कई निशाने
- भाजपा किसी भी सूरत में इस सीट को जीतना चाहती है। ऐसे में पार्टी के भीतर टिकट की लड़ाई भी बेहद रोचक रही। कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा भी फंसी रही। भाजपा ने चंद्रभानु पासवान को उतारकर एक तीर से कई निशाने भी साधे हैं। इसमें जहां पासी समाज को बांधे रखने की कवायद है, वहीं अगड़ों को साधने की रणनीति भी है।
Milkipur Vidhan Sabha By-Election: मिल्कीपुर की चुनावी पिच पर भगवा खेमे (BJP) ने बड़ा दांव खेला है। चुनावी नतीजे तो आठ फरवरी को आएंगे, मगर टिकट की दौड़ में चंद्रभानु पासवान ने सबको क्लीन बोल्ड कर दिया है। भाजपा किसी भी सूरत में इस सीट को जीतना चाहती है। ऐसे में पार्टी के भीतर टिकट की लड़ाई भी बेहद रोचक रही। इसमें कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा भी फंसी रही। भाजपा ने युवा चेहरे चंद्रभानु पासवान को उतारकर कई संदेश दे दिए हैं और एक तीर से कई निशाने भी साधे हैं। इसमें जहां पासी समाज को बांधे रखने की कवायद है, वहीं अगड़ों को साधने की रणनीति भी है।
वर्ष 1977 से लेकर 2022 तक महज दो बार ही भाजपा इस सीट को जीत पाई है। 1991 में भाजपा के मथुरा प्रसाद तिवारी ने तो 2017 में बाबा गोरखनाथ ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की थी। 2022 में गोरखनाथ सपा के अवधेश प्रसाद के हाथों 13338 वोटों से हारे थे। मगर इस बार पार्टी यहां आर-पार के मूड में है। इसके लिए पूरी व्यूह रचना की गई है। सरकार व संगठन पूरी ताकत से जुटे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद चुनावी कमान संभाले हैं।
इसलिए उतारा पासी प्रत्याशी
मिल्कीपुर में करीब 3 लाख 58 हजार वोटर हैं। जातीय समीकरण पर नजर डालें तो करीब सवा लाख दलित वोटरों वाली इस विधानसभा में 55 से 60 हजार के करीब पासी वोटर हैं। यही कारण है कि सपा व भाजपा दोनों ने इसी जाति के चेहरों पर दांव लगाया है। ओबीसी में यादवों की संख्या अधिक है जबकि अगड़ों में ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। भाजपा का फोकस पासी के साथ ही अगड़े व पिछड़े वोटरों को अपने पाले में लाने पर है।
टिकट के लिए चला दिग्गजों में घमासान
गोरखनाथ को पूरी उम्मीद थी कि पार्टी फिर उन्हीं को मौका देगी मगर ऐसा नहीं हुआ जबकि दो दिग्गज मंत्री उन्हें टिकट देने के पक्षधर थे। वहीं पार्टी के चारों विधायक गोरखनाथ को टिकट का विरोध कर रहे थे। इनमें सपा कोटे के भाजपा समर्थित विधायक अभय सिंह भी शामिल थे। तीन दिन पूर्व इन चारों विधायकों ने भाजपा के प्रदेश मुख्यालय में प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह से मुलाकात कर अपने इरादे जता दिए थे।
बसपा के मतदाता किधर देंगे वोट
बसपा इस उपचुनाव से बाहर है। ऐसे में सवाल है कि उसके वोटर खास तौर पर दलित भाजपा की ओर जाएंगे या सपा की ओर? इसका जवाब नतीजे ही तय करेंगे। बसपा यहां जीत चुकी है और मजबूती से चुनाव लड़ती रही है। 2012 में यहां से सपा जीती लेकिन 2017 का चुनाव सपा के अवधेश प्रसाद हार गए। भाजपा के गोरखनाथ जीते थे। यह चुनाव बसपा ने मजबूती से लड़ा। दलित वोट में सेंध से सपा हार गई। 2022 में सपा के अवधेश प्रसाद जीते। भाजपा की कोशिश बसपा के वोटरों को साथ लाने की है।