सभी चरण पूरे होने के बाद साधकों को गुरु मंत्र दिया जाता है। नागा संन्यासी इसके बाद इस मंत्र का जप करते रहते हैं।
स्नान आदि के बाद साधकों को चंदन का लेप लगाया जाता है। यह लेप उनके माथे के साथ-साथ भुजा पर भी लगाया जाता है।
नागा संन्यासी बनने का एक अहम हिस्सा पिंडदान है। संगम तट पर यह साधक अपनी सात पीढ़ियों का पिंडदान करते हैं। इसमें उनका खुद का भी पिंडदान शामिल है।
मौनी अमावस्या के दिन इन साधकों को जूना अखाड़ा प्रमुख अवधेशानंद गिरी गुरुमंत्र देकर नागा संन्यासी बनाएंगे।
नागा संन्यासी बनाने से पहले उनका मुंडन होता है और दाढ़ी भी साफ कर दी जाती है।
पहले नागा संन्यासी बनने के इच्छुक लोगों को स्नान के लिए ले जाया जाता है। कतारबद्ध होकर संगम पर स्नान करते जाती नागाओं की टोली।
नागा संन्यासियों को पहले चरण की शुरुआत में 24 घंटे का व्रत रहना पड़ता है। इसके बाद संगम तट पर लाकर बाकी प्रक्रिया होती है।
महाकुंभ 2025 में जूना अखाड़े में नागा संन्यासियों को दीक्षा का कार्यक्रम शुरू हुआ। पहले दिन करीब 800 नागा संन्यासियों ने पहला चरण शुरू किया।
नागा संन्यास की दीक्षा लेते हुए यह साधक जय-जयकार भी करते हैं।
गौरतलब है कि महाकुंभ 2025 में बड़ी संख्या में नागा संन्यासी आए हुए हैं। लोग इनका दर्शन करके आशीर्वाद ले रहे हैं।