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बोले रांची : बांग्ला की पढ़ाई बंद, समाज के लिए गठित हो बोर्ड

झारखंड में बंगाली समुदाय अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। सरकारी स्कूलों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई बंद होने से नई पीढ़ी पलायन कर रही है। समुदाय बांग्ला भाषा बोर्ड के गठन और...

Newswrap हिन्दुस्तान, रांचीMon, 24 Feb 2025 05:17 AM
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बोले रांची : बांग्ला की पढ़ाई बंद, समाज के लिए गठित हो बोर्ड

रांची, संवाददाता। झारखंड अलग राज्य बनने के समय यहां बंगाली समाज की आबादी एक करोड़ 22 लाख से अधिक थी। वहीं, 2011 में हुई जनगणना के अनुसार रांची में इस समाज की कुल आबादी 42% थी। यहां के स्कूलों में बांग्ला भाषा की शिक्षा बंद होने से ये लोग चिंतित हैं। आज स्थिति यह है कि इस समाज की नई पीढ़ी शिक्षा और रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करने को विवश है। यह समाज बांग्ला भाषा बोर्ड गठन की लगातार मांग कर रहा है, लेकिन अब तक इनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया। अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए बंगाली समुदाय के लोग लगातार संघर्ष कर रहे हैं। इसके लिए वे समय-समय पर अपनी मांगों को अलग-अलग समितियों के माध्यम से सरकार के समक्ष रखते भी आ रहे हैं। बंगाली समुदाय के सदस्यों का कहना है कि संयुक्त बिहार के समय में सरकारी विद्यालयों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई कराई जाती थी, लेकिन अब यह पूरी तरह से बंद हो गई है।

बांग्ला भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए झारखंड के बंगाली बहुल क्षेत्रों के सरकारी विद्यालयों और आंगनबाड़ी केंद्रों में बालवाड़ी की शिक्षा बांग्ला भाषा में देने की मांग की है। इसके साथ ही, उन्होंने झारखंड के सभी जिलों में रवींद्र सदन सह बांग्ला पुस्तकालय का निर्माण करने की भी मांग की है। रांची में बन रहे रवींद्र सदन में कमरा और इसके संचालन की जिम्मेदारी बंगाली समुदाय को देने की भी बात कही गई है, ताकि वे बांग्ला संस्कृति से सभी समुदाय को जोड़ने का कार्य कर सकें। उनका मानना है कि बंगाली समाज झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर है और इस समाज ने राज्य के सभी जिलों में झारखंडी संस्कृति को बचाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बंगाली समाज के लोग बौद्धिक होते हैं और वे अपने आसपास के लोगों को शिक्षित करते हैं।

इन इलाकों में बंगाली समुदाय की संख्या थी अधिक : समाज के लोग की मानें तो एक समय था, जब रांची के वर्धमान कंपाउंड, थड़पखना, साउथ ऑफिस पाड़ा, नॉर्थ ऑफिस पाड़ा, हिनू में बंगाली समुदाय के लोगों की संख्या बहुत अधिक थी, लेकिन समय के साथ इसमें भी कमी आई है। बंगाली समुदाय के लोगों के अनुसार, रांची में इस समुदाय की जनसंख्या 42 प्रतिशत से घटकर 28 से 30 प्रतिशत रह गई है। युवा पीढ़ी झारखंड से पलायन कर रही है, क्योंकि यहां रोजगार के साधन नहीं हैं। अगर झारखंड में नए उद्योग लगाए जाएं और शिक्षा के क्षेत्र में विकास किया जाए, तो पलायन को कम किया जा सकता है। झारखंड में बंगाली समुदाय अपनी भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को लेकर चिंतित है। झारखंड की आधिकारिक भाषा हिंदी है और स्कूलों व सरकारी कार्यालयों में हिंदी का ही इस्तेमाल होता है। ऐसे में बंगाली भाषा बोलने वाले लोगों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। झारखंड में बंगाली समुदाय के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सीमित हैं। राज्य में उद्योगों और व्यवसायों की कमी के कारण युवाओं को नौकरी के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है। झारखंड की राजनीति में बंगाली समुदाय का प्रतिनिधित्व काफी कम है, जिसके कारण समुदाय की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने में दिक्कत होती है। झारखंड में बंगाली समुदाय की स्थिति कई चुनौतियों से भरी है। अपनी भाषा और संस्कृति को बचाए रखने के साथ-साथ उन्हें रोजगार और शिक्षा के अवसरों की भी तलाश है।

समाज के युवाओं में खेलो के प्रति रुझान कम : आजकल के बंगाली युवाओं में खेलकूद के प्रति रुझान घटता जा रहा है। इसकी कई वजहें हैं। एक तो यह कि आजकल पढ़ाई का बहुत ज्यादा दबाव है। बच्चों को स्कूल के बाद कोचिंग क्लास भी जाना होता है, जिससे उनके पास खेलने का समय ही नहीं बचता। दूसरा कारण यह है कि आजकल मोबाइल और इंटरनेट का जमाना है। बच्चे घरों में बैठकर ही ऑनलाइन गेम्स खेलते रहते हैं। बाहर जाकर दोस्तों के साथ खेलने का उनका मन ही नहीं करता। साथ ही कुछ लोगों ने कहा की आजकल के परिवार में सिंगल चाइल्ड का चलन हो गया है। जिस कारण अभिवावक बच्चों के पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देते है। पहले का समय समाप्त हो गया जब स्कूल से आते ही बच्चे मैदान की ओर भागते थें। खेल के मैदान भी समाप्त हो गए हैं।

बंगाली भाषा, साहित्य और संस्कृति को मिले बढ़ावा

बंगाली समाज के लोगों ने रवींद्र भवन में विभिन्न पदों पर नियुक्ति और बंगाली समुदाय के लिए एक अलग बोर्ड के गठन की मांग की है। रांची में रवींद्र भवन का निर्माण किया जा रहा है। इसमें में कई महत्वपूर्ण पद खाली पड़े हैं। इन पदों पर योग्य बंगाली समाज के व्यक्तियों की नियुक्ति की मांग की जा रही है। उनका मानना है कि इस भवन से समाज के अन्य लोगों को वे अच्छे तरीके से जोड़ सकेंगे।

बंगाली समुदाय के लिए अलग बोर्ड की मांग: बंगाली समुदाय के लिए एक अलग बोर्ड के गठन की मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि इससे बंगाली भाषा, साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। उनका यह भी कहना है कि बंगाली समुदाय के लोगों को अपनी बात रखने के लिए एक मंच मिलेगा। हर समुदाय की अपनी विशिष्ट आवश्यकताएं होती हैं, जो सामान्य नीतियों और योजनाओं से पूरी नहीं हो पातीं। बोर्ड के माध्यम से समुदाय अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप योजनाओं और कार्यक्रमों की मांग कर सकता है और उन्हें लागू करवा सकता है। बोर्ड समुदाय की संस्कृति, भाषा, और परंपराओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम कर सकता है।

सांस्कृतिक पहचान के लिए कई चुनौतियां

झारखंड में बंगाली समुदाय अपनी भाषा और सांस्कृतिक पहचान को लेकर चुनौतियों का सामना कर रहा है। राज्य में बांग्ला भाषा को दूसरी राजभाषा का दर्जा प्राप्त है, लेकिन इसके बावजूद स्कूलों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। कुछ स्कूलों में मीडिल स्कूल तक बंग्ला भाषा की पढ़ाई होती है।

आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने की जरूरत

झारखंड में बंगाली समुदाय को आर्थिक और सामाजिक रूप से सुदृढ़ करने की जरूरत है। समुदाय के कई लोग गरीबी हैं, जिन्हें बुनियादी सुविधा तक नहीं मिल रही है। बंगाली समुदाय के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए विशेष कार्यक्रम चलाए जाएं। जिससे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को रोजगार अवसर मिल सके।

अपनी ही परंपरा को भूल रही नई पीढ़ी

बांग्ला भाषा की पढ़ाई बंद होने से बंगाली समुदाय की ही नई पीढ़ी बांग्ला संस्कृति को भूलती जा रही है। घरों में भी यह वर्ग हिन्दी या अंग्रेजी में बातें करते हैं। बांग्ला किताबों के प्रति उनका रूझान कम होने लगा है। बंगाली समुदाय के लोग सांस्कृतिक परंपराओं को संजोए रखने के लिए बंग्ला कल्ब के जरिए लगातार कार्यक्रम करते रहते हैं।

राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी

झारखंड में बंगाली समुदाय का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी कम है। समुदाय के लोग राज्य विधानसभा और लोकसभा में पर्याप्त संख्या में प्रतिनिधित्व नहीं कर पा रहे हैं। इसके कारण, समुदाय की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने में मुश्किल होती है। इसके लिए समाज से जुड़े लोगों को राजनीतिक दलों और सरकार के विभिन्न आयोगो में भी उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। समुदाय के लोगों को चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जिससे उनकी बातों को सबसे समझ लाने और समुदाय के समस्याओं का समाधान करने में मदद मिलेगी।

बांग्ला भाषी किताबों की कमी

रांची के स्कूलों में बंग्ला भाषी पढ़ाई लगभग समाप्त हो गई है। साथ ही राज्य में बंग्ला भाषा में किताबें भी कम मिलती हैं। पहले के समय रांची में बंगाली समाज की 42 प्रतिशत जनसंख्या थी। जो अब घटने लगी है। झारखंड में रोजगार की कमी, अच्छे शिक्षण संस्थानों का कम होना पलायन का कारण बन रहा है।

-शवतांक सेन

बंगाली समुदाय के लोग अपनी मातृ भाषा को भूल रहे हैं। राज्य में बंगाली स्कूल समाप्त हो गए हैं। अन्य विद्यालयों में बंग्ला भाषा सिखाया नहीं जाता है। पहले सभी सरकारी, सार्वजनिक स्थानों पर बंग्ला भाषा में साइन बोर्ड होते थे, जो वर्तमान में समाप्त हो गए है। बंग्ला किताबों के प्रति युवाओं का रूझान कम हो रहा है।

-ए चौधरी

पलायन रोकने के लिए उद्योग और शिक्षा पर ध्यान दिया जाए

झारखंड में बंगाली समुदाय का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी कम है। समुदाय के लोग राज्य विधानसभा और लोकसभा में पर्याप्त संख्या में प्रतिनिधित्व नहीं कर पा रहे हैं।

-मलय कुमार बनर्जी

रवींद्र भवन में विभिन्न पदों पर नियुक्ति और बंगाली समुदाय के लिए एक अलग बोर्ड का गठन किया जाए। बोर्ड समुदाय की संस्कृति, भाषा, और परंपराओं के संरक्षण व संवर्धन के लिए काम करेगा।-अमित रॉय

झारखंड में बांग्ला भाषा की पढ़ाई बंद होने से बंगाली समुदाय की ही नई पीढ़ी बांग्ला संस्कृति को भूल रही है। बांग्ला भाषी किताबों के प्रति उनका रूझान कम होने लगा है।

-सुब्बिर लहरी

झारखंड में रोजगार की कमी है। इस कारण यहां के युवा दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं और यहां पर बंगाली समाज की जनसंख्या कम हो रही है।

-बिनोद कुमार उपाध्याय

झारखंड में उच्च शिक्षा के लिए अच्छे संस्थानों की कमी है, जिस कारण पढ़ाई के लिए यूवा दूसरे राज्यों का रूख कर रहे हैं। साथ ही रोजगार की स्थिति भी यहां अच्छी नहीं है। -गौतम भट्टाचार्या

राज्य के सभी स्कूलों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई दोबारा शरू कराई जाए। इससे समुदाय के लोगों के लिए नए रोजगार के अवसर मिलेंगे। साथ ही बांग्ला भाषा और सांस्कृतिक पहचान को बचाने में मदद मिलेगी।-पंपा सेन

बांग्ला भाषा को आगे लाने के लिए इस भाषा में पठन-पाठन को बढ़ावा देना चाहिए। वर्तमान में बांग्ला भाषा झारखंड से विलुप्त होती जा रही है। इसकी ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए। -स्वयांता कंडु

झारखंड में बंगाली समुदाय को आर्थिक और सामाजिक रूप से सुदृढ़ करने की जरूरत है। समुदाय के कई लोग गरीब हैं, उन्हें बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल रही है।

-जयंत मंडल

बंगाली समाज के लोग पढ़ने के काफी शौकीन होते हैं। बंगाल में लगने वाले पुस्तक मेले की भीड़ इसके सबूत हैं। लेकिन, झारखंड में समाज के लोगों में किताबों के प्रति कम रूझान है।-मानस मुखर्जी

झारखंड में बंगाली समुदाय का राजनीतिक प्रतिनिधित्व हो, जो उनकी समस्याओं को उठाए। साथ ही झारखंड में रोजगार के कम अवसर हैं, इसलिए सामाज के युवा पलायन कर रहे हैं।-सोलिन चटर्जी

मातृभाषा और बांग्ला संस्कृति को बचाने के लिए कार्यक्रम चलाकर युवाओं को जोड़े जाने की जरूरत है। इससे युवाओं को उनकी संस्कृति के बारे में जानने का मौका मिलेगा और वो उससे जुड़ेंगे। -भाष्कर गुप्ता

समाज के लोगों में कल्चरल कार्यक्रम कम हो गया है। खेलों में भी युवाओं की भागीदारी कम हो गई है। पहले समय-समय पर खेल के आयोजन से लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे। -श्यामल मित्रा

समस्याएं

1. झारखंड के कई स्कूलों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई की व्यवस्था नहीं

2. झारखंड में बंगाली समुदाय का राजनीतिक क्षेत्र में प्रतिनिधित्व की कमी

3. झारखंड में रोजगार के नहीं हैं विकल्प, इसलिए सामाज के युवा कर रहे पलायन

4. झारखंड में उच्च शिक्षा के लिए अच्छे संस्थानों की कमी, पढ़ाई के लिए युवा जा रहे दूसरे राज्य

5. मातृ भाषा, बंग्ला संस्कृति को भूलती जा रही है झारखंड में रहने वाली समाज की नई पीढ़ी

सुझाव

1. झारखंड के विद्यालयों में बांग्ला भाषा के पढ़ाई की दोबारा शुरुआत की जाए

2. झारखंड में बंगाली समुदाय का राजनीतिक प्रतिनिधित्व हो, जो उनकी समस्याओं को उठाए

3. झारखंड में बंगाली समुदाय का पलायन रोकने के लिए रोजगार की व्यवस्था की जाए

4. राज्य में उच्च शिक्षा के लिए अच्छे शिक्षण संस्थानों का निर्माण किया जाए

5. मातृ भाषा और बांग्ला संस्कृति को बचाने के लिए कार्यक्रम चलाकर युवाओं को जोड़ा जाए

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