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आईपीएस हिमांशु कुमार की मुश्किलें बढ़ीं, डीजीपी ऑफिस अटैच; किस मामले में फंसे पुलिस अधिकारी

आईपीएस अधिकारी हिमांशु कुमार की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई हैं। विजिलेंस कोर्ट ने उनके खिलाफ 10 दिन पहले ही फिर से जांच के निर्देश दिए थे। इसके बाद उन्हें चार्ज से हटा दिया गया है।

Sneha Baluni हिन्दुस्तान, नोएडाFri, 26 Jan 2024 01:23 AM
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ट्रांसफर पोस्टिंग के नाम पर लाखों रुपये के लेनदेन की वार्ता में फंसे आईपीएस अधिकारी हिमांशु कुमार की मुश्किलें फिर से बढ़ गई हैं। विजिलेंस कोर्ट ने उनके खिलाफ 10 दिन पहले ही फिर से जांच के निर्देश दिए थे। इसके बाद उन्हें चार्ज से हटा दिया गया। इस मामले में गौतमबुद्ध नगर के पूर्व एसएसपी वैभव कृष्ण द्वारा तैयार की गई गोपनीय रिपोर्ट के बाद केस दर्ज हुआ था। 

हिमांशु कुमार वर्तमान में 23वीं वाहिनी पीएसी मुरादाबाद में तैनात थे और विशेष ड्यूटी के लिए मणिपुर में बनी एसआईटी में भेजे गए थे, लेकिन अब हिमांशु कुमार को चार्ज से हटा कर डीजीपी ऑफिस से संबंद्ध कर दिया गया है। हिमांशु कुमार के खिलाफ दर्ज हुए मुकदमे में विजिलेंस के इंस्पेक्टर ने अंतिम रिपोर्ट लगाकर न्यायालय में रिपोर्ट दी थी, लेकिन न्यायालय ने रिपोर्ट को खारिज कर दिया। 

न्यायालय ने इस प्रकरण में विजिलेंस को फिर से जांच करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि मुख्यमंत्री के आदेश के बाद भी इस मामले की जांच को गंभीरता से नहीं लिया गया और एसपी स्तर के अधिकारी की जांच एक निरीक्षक से करा दी गई। न्यायालय ने इस मामले की जांच पुलिस अधीक्षक रैंक से ऊपर के अधिकारी से कराकर रिपोर्ट देने के निर्देश दिए।

विजिलेंस ने जुटाए थे साक्ष्य

रिपोर्ट में हिमांशु कुमार के संबंध में कहा गया था कि उन्होंने मनचाही तैनाती के सिलसिले में छह जुलाई 2019 को लखनऊ के फन मॉल में अन्य आरोपियों से मुलाकात की। इसके बाद तैनाती और लेनदेन को लेकर अतुल शुक्ला और हिमांशु कुमार के बीच व्हाट्सऐप पर चैट हुई। इस चैट में भी मॉल में हुई मुलाकात का जिक्र है। विजिलेंस ने मुकदमा दर्ज करने से पहले सभी साक्ष्य जुटाए और आरोपियों के बयान भी दर्ज किए। हालांकि, दोनों आईपीएस अधिकारी पहले ही इन आरोपों का खंडन कर चुके हैं और कह चुके हैं कि उन्हें बदनाम करने के उद्देश्य से यह गलत आरोप लगाए गए।

लंबी जांच के बाद केस दर्ज हुआ था

हिमांशु कुमार के खिलाफ चली लंबी जांच के बाद केस दर्ज हुआ था। वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार डीजी विजिलेंस ने करीब 200 पन्नों की जांच रिपोर्ट शासन को भेजी थी, जिसमें गोपनीय रिपोर्ट के एक-एक बिंदु पर विस्तृत जांच की गई थी। एसआईटी और विजिलेंस ने जांच रिपोर्ट में गंभीर आरोप लगाए थे। एसआईटी ने व्हाट्सऐप चैट तथा कॉल रिकॉर्ड को अपनी जांच में सबूत बनाया था। इसके लिए नौ मोबाइल रिकॉर्डिंग की जांच की गई, जिसमें से पांच मनचाहे स्थान पर पोस्टिंग को लेकर हुई बातचीत के संबंध में थीं।

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