इतने दिन से सो रहे थे क्या, कॉलेजों में किस भेदभाव पर तमतमाया सुप्रीम कोर्ट; UGC को फटकार
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला ने 17 जनवरी, 2016 को खुदकुशी की थी, जबकि टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज की छात्रा पायल तड़वी ने 22 मई, 2019 को फांसी लगातर आत्महत्या कर ली थी।
कॉलेजों में जातीय भेदभाव को संवेदनशील मुद्दा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह देश भर के शैक्षणिक संस्थानों में इस भेदभाव से निपटने के लिए एक प्रभावी तंत्र विकसित करेगा। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को निर्देश दिया कि वह केंद्रीय, राज्य, निजी और डीम्ड विश्वविद्यालयों में छात्रों के साथ कोई जाति आधारित भेदभाव न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए एक रेगुलेशन ड्राफ्ट कर सभी को सूचित करे। कोर्ट ने यूजीसी को इस मामले में कड़ी फटकार भी लगाई कि मामले में पांच साल से कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
पीठ ने यूजीसी को निर्देश दिया कि वह उन संस्थानों की संख्या के बारे में डेटा प्रस्तुत करे, जिन्होंने यूजीसी (उच्च शैक्षणिक संस्थानों में समानता को बढ़ावा देने के नियम) 2012 के अनुपालन में समान अवसर प्रकोष्ठ स्थापित किए हैं, जिसे "यूजीसी समानता विनियमन" कहा जाता है।
पीठ ने जातीय भेदभाव पर कहा, "हम इस संवेदनशील मुद्दे के प्रति समान रूप से सचेत हैं। हम चुप नहीं बैठेंगे। कुछ करेंगे। हमें यह देखने के लिए कुछ प्रभावी तंत्र और तौर-तरीके खोजने होंगे कि 2012 के नियम वास्तविकता में कैसे लागू हो सकें।" पीठ ने इस मुद्दे पर केंद्र से जवाब मांगा और यूजीसी से सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों के बीच इस तरह के भेदभाव की शिकायतों के साथ-साथ उन पर क्या कार्रवाई की गई, उस पर छह सप्ताह के भीतर डेटा पेश करने को कहा।
छात्र रोहित वेमुला और पायल तड़वी, जिन्होंने कथित तौर पर जाति आधारित भेदभाव का सामना करने के बाद आत्महत्या कर ली थी, की माताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि 2004 से अब तक 50 से अधिक छात्रों (ज्यादातर एससी/एसटी) ने इस तरह के भेदभाव का सामना करने के बाद आईआईटी और अन्य संस्थानों में आत्महत्या की है।
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला ने 17 जनवरी, 2016 को खुदकुशी की थी, जबकि टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज की छात्रा पायल तड़वी ने 22 मई, 2019 को अपने कमरे में फांसी लगातर आत्महत्या कर ली थी, जब वह कॉलेज के तीन साथी डॉक्टरों द्वारा कथित तौर पर जातीय भेदभाव से तंग हो गई थी। पीठ ने कहा कि 2019 में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, लेकिन इस मुद्दे पर अब तक कोई ठोस सुनवाई नहीं हुई है।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "अब से हम इस याचिका को समय-समय पर सूचीबद्ध करेंगे ताकि मामले में कोई प्रभावी समाधान निकाला जा सके, क्योंकि 2019 से अब तक कुछ खास नहीं हुआ है।" यूजीसी के वकील ने कहा कि उसके द्वारा गठित समिति ने सिफारिशें दी हैं और आयोग ने जाति आधारित भेदभाव को रोकने के लिए नए नियमों का मसौदा तैयार किया है। उन्होंने कहा, "एक महीने के भीतर जनता से आपत्तियां और सुझाव आमंत्रित करने के लिए मसौदा नियमों को वेबसाइट पर डालने की जरूरत है और उसके बाद इसे अधिसूचित किया जाएगा।"
पीठ ने देरी के लिए यूजीसी को फटकार लगाते हुए पूछा कि क्या वह इतने समय से सो रहा था और नए नियम नहीं बना पाया। पीठ ने इसके साथ यह भी पूछा, "नए नियमों को अधिसूचित करने के लिए कितना समय चाहिए? आप इसे एक महीने में करें और रिकॉर्ड में दर्ज करें।" इसके बाद पीठ ने इस मामले को छह सप्ताह बाद सूचीबद्ध करकने का निर्देश दिया। कोर्ट ने मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से भी सहायता मांगी और यूजीसी के तहत एक स्वायत्त संस्था राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) से भी प्रतिक्रिया मांगी है, जो उच्च शिक्षा संस्थानों का मूल्यांकन मान्यता करती है और ग्रेडिंग देती है।