मेरे ड्राइवर की सिर्फ एक बेटी, दुनिया बदल रही है; समलैंगिक केस में CJI ने क्यों किया जिक्र
समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के मामले में सुनवाई के दौरान गुरुवार को रोचक बहस हुई। इस बीच चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने ड्राइवर का जिक्र किया और कहा कि उसकी एक ही बेटी है।
समलैंगिक शादियों को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान गुरुवार को दिलचस्प बहस हुई। यही नहीं चीफ जस्टिस ने बहस के बीच में अपने ड्राइवर का भी जिक्र किया। समलैंगिक शादियों को मान्यता देने पर उठे ऐतराजों को लेकर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि दुनिया बदल रही है। उन्होंने अपने ड्राइवर का जिक्र करते हुए कहा, 'चीन जैसे देशों में आबादी बढ़ने की रफ्तार कम हो रही है। इसकी वजह यह है कि लोग ज्यादा बच्चे नहीं पैदा कर रहे हैं। अपने आसपास के लोगों से भी बात करके देखिए, जो आपके लिए काम करते हैं।'
चीफ जस्टिस ने कहा, 'आप लोगों से बात करेंगे तो वे एक बच्चे की ही बात करेंगे। मेरे ड्राइवर की भी सिर्फ एक बेटी है। अब बेटे की चाहत जैसी चीजें भी कम हो रही हैं। लोग अब शिक्षित हो रहे हैं।' यह कहने के बाद चीफ जस्टिस ने बेंच के दूसरे जजों की ओर संकेत करते हुए कहा कि आप मेरे ड्राइवर को जानते ही हैं। यही नहीं समलैंगिक पेरेंट्स के द्वारा बच्चों की परवरिश का सवाल उठा तो उस पर भी चीफ जस्टिस ने जवाब दिया। उन्होंने कहा कि जब विपरीत लिंग वाले कपल्स के बीच घरेलू हिंसा होती है तो उस पर क्या कहेंगे?
उन्होंने कहा कि यदि किसी बच्चे का पिता शराब पीकर शाम को आता है और उसकी मां पर हमला करता है। शराब पीने के लिए पैसे मांगता है तो क्या कहेंगे? उन्होंने समलैंगिक शादियों के विरोध में उठाए जा रहे तर्कों को भी ट्रोल्स जैसी बातें करार दिया। यही नहीं इस दौरान समलैंगिक शादियों को मान्यता देने की मांग वाली अर्जियों का पक्ष रख रहे सीनियर वकील विश्वनाथन ने कहा कि शादी तो दो आत्माओं का मिलन होती है। उन्होंने कहा कि शादियां दो आत्माओं का मिलन होती हैं। शादी का एकमात्र मकसद बच्चे पैदा करना ही नहीं होता। यह पूरी तरह से गलत है।
CJI बोले- शादियों की परिभाषा पर फिर से सोचना होगा
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम बीच रास्ते में आ गए हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि समलैंगिक कपल्स साथ में रह सकते हैं और रिलेशनशिप में आ सकते हैं। अब हमने जब एक बार पुल पार ही कर लिया है तो यह सवाल उठता है कि शादियों को मंजूरी देने पर विचार किया जाए। उन्होंने कहा कि यह हमारे ऊपर है कि शादियों की मौजूदा परिभाषा को फिर से तय किया जाए। हमें यह सोचना होगा कि क्या शादी का मतलब महिला और पुरुष का संबंध ही होता है।
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