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तिब्बत पर चीन की नई चाल से भारत के खड़े हुए कान; समझें- उत्तरी सरहद पर ड्रैगन के कदम से क्यों टेंशन?

निर्वासित तिब्बती सरकार के राष्ट्रपति ने चीन के इस नए प्रोपेगेंडा को तिब्बती लोगों को मौलिक मानवाधिकारों से वंचित करने और "तिब्बती पहचान और संस्कृति को खत्म करने" की कोशिश बताया है।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 13 Dec 2023 01:51 AM
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पड़ोसी देश चीन ने पिछले कुछ सालों में कई व्हाइट पेपर्स जारी किए हैं लेकिन हाल ही में तिब्बत पर जारी एक व्हाइट पेपर ने भारत के कान खड़े कर दिए हैं। बीजिंग ने इस नए व्हाइट पेपर में तिब्बत का उल्लेख 'जिजांग' के रूप में किया है। इसके बाद चीनी मीडिया ने तेजी से 'जिजांग' का उल्लेख करना शुरू कर दिया है। चीन ने ऐसा तब किया है, जब नई दिल्ली के सत्ता गलियारों में इस बात की चर्चा हो रही है कि हिमालय में भारत की उत्तरी सीमा को चीन के बजाय 'तिब्बत के साथ सीमा' कहा जाय।

'नए युग में ज़िज़ांग के शासन पर सीपीसी नीतियां: दृष्टिकोण और उपलब्धियां' शीर्षक से जारी व्हाइट पेपर में चीन ने तिब्बत में खुद को स्थापित करने के प्रयासों का उल्लेख किया है। यह व्हाइट पेपर 2013 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सत्ता संभालने के बाद से तिब्बत में विकास की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। बता दें कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) द्वारा गृहयुद्ध जीतने के एक साल बाद 1950 में  चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया था। दलाई लामा 1959 में भारत भाग गए और तब से निर्वासन में तिब्बत के आध्यात्मिक नेता बने हुए हैं।

भारत में चीनी पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि बीजिंग 1950 से तिब्बत पर दुष्प्रचार कर रहा है, जब उसकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने तिब्बत में मार्च किया था। उनका मानना ​​है कि तिब्बत की जगह ज़िज़ांग नाम का इस्तेमाल करके चीन इस क्षेत्र पर अपना ठप्पा लगा रहा है और तिब्बतियों की सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहा है।

यह सब तिब्बत में चीन की भविष्य की योजनाओं के अनुरूप देखा जा रहा है। नई दिल्ली स्थित एक पर्यवेक्षक ने कहा, "भारत के लिए भी इसके गंभीर सुरक्षा निहितार्थ हैं क्योंकि चीन अरुणाचल प्रदेश को ज़ंगनान कहता है, जो ज़िज़ांग का हिस्सा है।" 

अधिकारियों का दावा है कि चीन की स्टेट काउंसिल द्वारा 10 नवंबर को जारी तिब्बत पर नवीनतम 'श्वेत पत्र' आश्चर्यजनक रूप से तिब्बत की स्थिति की एक बेहद आकर्षक छवि प्रस्तुत करता है, जबकि शी जिनपिंग के शासनकाल के तहत तिब्बत में शोषण और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आंकड़ों की भरमार है लेकिन उनकी जगह तिब्बत में उपलब्धियों का दावा किया गया है। हालांकि, 'श्वेत पत्र' में औपनिवेशिक बोर्डिंग स्कूल प्रणाली और बड़े पैमाने पर स्थानांतरण कार्यक्रम जैसे मुद्दों पर पार्टी -राज्य के मुख्य एजेंडे पर चुपी साधी गई है, जबकि इसका तिब्बती लोगों और उनकी संस्कृति पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा है।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि तिब्बत पर चीन का 'श्वेत पत्र' 1950 के दशक में तिब्बत के प्रति माओत्से तुंग (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संस्थापक) के दृष्टिकोण के समान है। 1951 में, झांग जिंगवु और झांग गुओहुआ की अध्यक्षता वाली सीसीपी तिब्बत कार्य समिति ने रिपोर्ट दी थी कि "पूरे देश में समाजवादी परिवर्तन का उच्च ज्वार उभर आया है"। यह वैसा ही है जैसा कि तिब्बत के विकास पर अब लाए जा रहे कई श्वेत पत्रों में बताया जा रहा है और बताया गया है कि कैसे तिब्बती 'ज़िज़ांग' में समृद्धि का समंदर बह रहा है और लोग आनंद ले रहे हैं।

तिब्बत पर कब्जे के बाद चीन को जब ऐसा लगा था कि दलाई लामा भारत में शरण मांगेंगे, तो सीसीपी नेतृत्व ने उन्हें वापस बुलाने की कोशिश की। प्रीमियर झोउ एनलाई ने 1956-57 में भारत की यात्रा की थी और दलाई लामा से मुलाकात कर उन्हें ल्हासा लौटने के लिए मनाया था। उन बैठकों के दौरान, माओ की भावना से अवगत कराते हुए, झोउ एनलाई ने दलाई लामा से वादा किया था कि परामर्श के बिना तिब्बत (चामडो क्षेत्र सहित) में सुधार नहीं लाए जाएंगे। उन्होंने यह भी वादा किया था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान, यानी अगले छह वर्षों तक कोई सुधार नहीं किया जाएगा।

जैसा कि चीनी विद्वान चेन जियान ने जर्नल ऑफ कोल्ड वॉर स्टडीज के लिए अपने 2006 के लेख में लिखा है, माओ और उनके साथी सीसीपी नेताओं ने सैन्य अभियानों को परिष्कृत राजनयिक और 'संयुक्त मोर्चा' कार्य अभिजात वर्ग के साथ जोड़ना आवश्यक और प्राप्त करने योग्य पाया था।

मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी माओ की तरह ही राजनीतिक आख्यानों का इस्तेमाल करते दिख रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि कुछ चीनी हैंडल, दुनिया भर के मीडिया संगठनों के साथ, सीसीपी द्वारा निर्देशित चीनी प्रचार को अपनाते हैं, जबकि कई निर्वासित तिब्बती शी जिनपिंग पर धार्मिक दमन और उनकी संस्कृति को नष्ट करने का आरोप लगाते रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, आत्मदाह सहित कई विरोध प्रदर्शन हुए, जिससे तिब्बत का मुद्दा बीजिंग के लिए बहुत संवेदनशील हो गया। 

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