भारत में क्रिकेटरों की तरह फुटबॉलर क्यों नहीं पैदा होते
हाल ही में भारत की फुटबॉल टीम ने 40 साल के सुनील छेत्री को रिटायरमेंट के बाद वापस बुलाया है। वहीं, 14 साल के वैभव सूर्यवंशी ने क्रिकेट में रिकॉर्ड तोड़ते हुए शतक बनाया। फुटबॉल में रोल मॉडल की कमी और...

हाल ही में भारत की फुटबॉल टीम ने अपने 40 साल के खिलाड़ी को रिटायरमेंट के बावजूद वापस बुलाया लिया.जबकि, क्रिकेट को 14 साल का एक नया हीरो मिल गया है.क्रिकेट भारत में बहुत लोकप्रिय खेल है, लेकिन फुटबॉल इतना पीछे क्यों है?2008 में शुरू हुई इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में दुनिया के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं.ऐसे में 14 साल के वैभव सूर्यवंशी ने केवल 35 गेंदों में शतक लगाकर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा.इसके साथ उन्होंने सबसे कम उम्र में शतक बनाने वाले खिलाड़ी का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया.31 गेंद में शतक लगाने वाले एबी डिविलियर्स के बाद, सूर्यवंशी, क्रिकेट के इतिहास में दूसरे सबसे तेज शतक लगाने वाले खिलाड़ी भी बन गए हैं.उनकी उम्र भले ही अविश्वसनीय हो लेकिन भारतीय क्रिकेट के खेल में ऐसे हुनरमंद युवाओं की कोई कमी नहीं है.हालांकि 1.4 अरब की आबादी वाले इस देश में सब खेलों का हाल क्रिकेट जैसा नहीं है.खासकर फुटबॉल के लिए हालात काफी अलग नजर आते है.जयपुर में जहां एक ओर वैभव चर्चा का विषय बने हुए थे कि वह भारतीय क्रिकेट टीम में कब चुने जाएंगे.वहीं दूसरी ओर, भारत की फुटबॉल टीम के कोच 40 साल के स्ट्राइकर, सुनील छेत्री को अंतरराष्ट्रीय रिटायरमेंट से वापस बुलाया जा रहा था.छेत्री ने अब तक 95 अंतरराष्ट्रीय गोल किए हैं.जो वर्तमान में खेल रहे खिलाड़ियों में केवल क्रिस्टियानो रोनाल्डो और लियोनेल मेसी के नीचे है. यह फैसला मीडिया से लेकर फैंस तक एक बड़ी बहस की वजह बना.रोलमॉडल की जरूरतइंडियन सुपर लीग (आईएसएल) क्लब मुंबई सिटी की पूर्व सीओओ, अरुणव चौधरी ने डीडब्ल्यू को बताया, "सुनील छेत्री को इसलिए वापस बुलाया गया क्योंकि हमारे पास गोल करने वाले स्ट्राइकरों की कमी है.फिलहाल हमारे पास बेहतरीन युवा खिलाड़ियों की कमी है.खिलाड़ी लगभग 25 साल की उम्र के बाद ही सिस्टम में जम पाते है"क्रिकेट की दुनिया में भारत फिलहाल एक मजबूत ताकत है, लेकिन फुटबॉल की दुनिया में वह बहुत पीछे है.2023 में भारत की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम फीफा रैंकिंग में टॉप 100 में आ गई थी, जो कि 2018 के बाद पहली बार हुआ था.हालांकि उसके बाद यह रैंकिंग में दोबारा गिरकर 127 नंबर पर आ गई.2024 के एशिया कप में भारत तीनों मैच हार गया और पूरे साल में एक भी जीत अपने नाम नहीं कर पाया.इस दबाव के कारण ही शायद छेत्री को दोबारा बुलाने का फैसला लिया गया होगा.क्रिकेट की तुलना में फुटबॉल में युवा खिलाड़ी काफी कम नजर आते हैं.ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) के पूर्व महासचिव, शाजी प्रभाकरन ने डीडब्लू से कहा, "फुटबॉल में कोई रोल मॉडल नहीं है, लगभग सभी रोल मॉडल भारत के बाहर के हैं.जबकि क्रिकेट में लगातार नए सितारे सामने आते रहते हैं जिससे प्रभावित होकर युवा अपने रोलमॉडल के रास्ते पर ही चलने की कोशिश करते हैं"एक नई राहक्रिकेट में ढेरों रोलमॉडल हैं और खिलाड़ियों के आगे बढ़ने का रास्ता भी स्पष्ट है.लेकिन फुटबॉल में ऐसा सिस्टम अभी तक विकसित नहीं हो पाया है.शाजी प्रभाकरन कहते हैं, "फुटबॉल का ढांचा कमजोर है, और ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जो सही समय पर टैलेंट को पहचान सके और उन्हें सही तरह से ट्रेन कर सके.वहीं क्रिकेट का सिस्टम काफी मजबूत है, जहां युवा खिलाड़ियों को खोजने और उन्हें आगे बढ़ाने के भरपूर मौके मिलते हैं"एशियाई फुटबॉल में युवाओं के विकास के लिए सबसे प्रभावशाली आवाजों में से एक माने जाने वाले, टॉम बायर, को चीन के शिक्षा मंत्रालय ने 2013 में नियुक्त किया था ताकि फुटबॉल को वहां की विशाल आबादी तक पहुंचाया जा सके. वह भारत को भी कुछ हद तक वैसी ही स्थिति में देखते हैं.उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "भारत में 18 करोड़ से ज्यादा बच्चे सात साल से कम उम्र के हैं लेकिन इस शुरुआती उम्र में उनको सही राह दिखाने के लिए कोई राष्ट्रीय रणनीति नहीं है.यही सबसे बड़ी कमी है, लेकिन यही सबसे बड़ा अवसर भी है.अगर भारत फुटबॉल के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहता है, तो उसे फुटबॉल की संस्कृति को अपनाना होगा और इसकी शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी ना कि किसी विदेशी तरीके से"जमीन-आसमान का अंतर यह अंतर केवल राष्ट्रीय टीमों या छोटे बच्चों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि घरेलू लीग भी युवाओं को प्रभावित करने में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं.भारत में इन दोनों खेलों की घरेलू लीग में भी एक बड़ा अंतर है.आईपीएल, दुनिया में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली टॉप पांच घरेलू स्पोर्ट्स लीग में शामिल है.दिसंबर 2024 में अमेरिकी इनवेंस्टमेंट बैंकर, होलिहान लोकी ने बताया कि आईपीएल का बिजनेस वैल्यूएशन करीब 16 अरब डॉलर का है.दूसरी तरफ इंडियन सुपर लीग की शुरुआत 2014 में केवल आठ टीमों के साथ हुई थी.2022 तक यह भारतीय फुटबॉल की टॉप लीग बन गई.इसकी शुरुआत बहुत जोर-शोर के साथ हुई थी और इसमें एलेसांद्रो डेल पिएरो, डेविड ट्रेजेगेट और डेविड जेम्स जैसे मशहूर विदेशी सितारों ने भी भाग लिया.शुरुआत में यह टूर्नामेंट बस कुछ हफ्तों तक ही चलता था लेकिन अब इसमें 13 टीमें हैं और यह सात महीने तक चलता है.इसके बावजूद इस खेल का पूर्ण विकास अभी काफी दूर नजर आता है.प्रभाकरन का कहना है, "आईएसएल की सीनियर टीमें साल में सिर्फ 30 मैच खेलती हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर से काफी कम है और युवाओं के मैच तो उससे भी कम होते हैं.हमें और ज्यादा मैच खेलने की जरूरत है"इंग्लिश प्रीमियर लीग के कोच रह चुके, ओवेन कॉयले, अब आईएसएल की चेन्नईयन टीम के कोच हैं. उन्होंने दिसंबर में कहा था, "हमें बड़े निवेशकों की आवश्यकता है ताकि पैसों को नींव की स्तर पर लगाया जा सके.बच्चों को 18-19 की उम्र में पकड़ने के बजाय अगर हम उनकी प्रतिभा को ग्यारह साल की उम्र से ही तराशें? इससे हमारी राष्ट्रीय टीम को बेहतर खिलाड़ी मिल सकते हैं"पैसा बोलता हैभारत में फुटबॉल क्लबों के पास पैसा कमाने के साधन उस प्रकार से नहीं हैं, जैसे आईपीएल टीमों के पास हैं.2022 में आईपीएल ने अपने ब्रॉडकास्ट राइट्स को पांच अरब डॉलर से ज्यादा में बेचा था.जबकि 2023 में आईएसएल के लिए ऐसे किसी सौदे की आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई.यह जरूर बताया गया कि इसका रिजर्व प्राइस लगभग 6.4 करोड़ डॉलर था.कभी जूते खरीदने के पैसे नहीं थे, अब क्रिकेट से मिला 10 लाख का चेकशाजी प्रभाकरन बताते हैं, "क्रिकेट व्यावसायिक रूप से काफी सफल है और आईपीएल की कीमत लगातार बढ़ रही है" एशिया के टॉप फुटबॉल लीग, जापान में क्लबों ने युवा प्रतिभा को पहचानने और उन्हें विकसित करने में अहम भूमिका निभाई है.भारत में आर्थिक संसाधनों की कमी एक बड़ी चुनौती है.उन्होंने आगे कहा, "आईएसएल क्लब युवा खिलाड़ियों के विकास में निवेश नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि इस खेल का व्यावसायिक पक्ष काफी कमजोर है.वह युवा टैलेंट को खोज नहीं कर पा रहे है.क्योंकि हमारे पास निवेश करने के लिए पर्याप्त पैसा ही नहीं है"एक फुटबॉल सुपरस्टारदुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश को अब भी उम्मीद है कि वह दुनिया के सबसे पसंदीदा खेल, फुटबॉल, में सफलता पा सकता है और फुटबॉल जगत में भी वह कभी अपना "वैभव सूर्यवंशी" खोज लेगा.प्रभाकरन कहते हैं, "अगर कोई 14 साल का बच्चा एक बड़ा टैलेंट साबित होता है, और उसे भारत नहीं, बल्कि दुनिया के बड़े फुटबॉल क्लब ये कहें कि "हमें एक हीरा मिला है", तो यह क्रिकेट वाले 14 साल के खिलाड़ी के मुकाबले काफी बड़ी बात होगी"उन्होंने आगे कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि तब पूरी पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत का ध्यान भी सिक्के के दूसरी तरफ जाएगा.तब यह सचमुच असरदार होगा और देश में तेजी से यह खेल आगे बढ़ेगा.