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कहानी अखाड़े की: भिक्षा नहीं मांगते आवाहन अखाड़ा के साधु, धर्म रक्षा के लिए लड़े हैं युद्ध

  • Mahakumbh 2025: अखाड़े के संतों की मान्यता है कि हाथ यदि फैलाना ही है तो सिर्फ ईश्वर के आगे फैलाएं। किसी मनुष्य के समक्ष हाथ फैलाना स्वाभिमान के विपरीत है। इस अखाड़े का यह सख्य नियम है कि यदि कोई स्वेच्छा से कुछ देता है तो ठीक है। ऐसा नहीं हुआ तो भूखे ही रह लेना स्वीकार है, किंतु कुछ मांग नहीं सकते।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, प्रयागराजThu, 9 Jan 2025 09:27 AM
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Mahakumbh 2025: यूपी के प्रयागराज में लगे महाकुंभ 2025 में करोड़ों लोग पहुंचने वाले हैं। इससे पहले वहां संतों के अखाड़ों का प्रवेश हो गया है। जूना अखाड़ा, आवाहन अखाड़ा समेत ऐसे कई अखाड़े महाकुंभ में पहुंच रहे हैं। इन अखाड़ों के साधुओं को देखने के लिए भी लोग आतुर रहते हैं। इन्हीं अखाड़ों में से एक श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा भी है, जिसकी कहानी बहुत दिलचस्प है। इस अखाड़े की स्थापना 547 ई. में हुई थी। महंत रत्ना गिरि, श्रीमहंत हंस दीनानाथ गिरि, श्रीमहंत मारिच गिरि समेत कई संतों ने मिलकर इसकी नींव रखी थी। यह अखाड़ा मुगल काल से लेकर अंग्रेजों तक के दौर मे धर्म रक्षा के लिए लड़ता रहा है। इस अखाड़े के संत धर्म रक्षा के लिए संघर्ष का आह्वान करते थे। इसी के चलते इसका नाम आह्वान अखाड़ा पड़ा है। शुरुआती दौर में तो इसका नाम आह्वान सरकार था।

भिक्षा नहीं मांगते साधु, ईश्वर के आगे ही फैलाते हैं हाथ

श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़े के साधु कभी भिक्षा नहीं मांगते। इस अखाड़े की यह परंपरा है और यदि कोई इसे तोड़कर भिक्षा या दान की मांग करता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाती है। इस अखाड़े के संतों की मान्यता है कि हाथ यदि फैलाना ही है तो सिर्फ ईश्वर के आगे फैलाएं। किसी मनुष्य के समक्ष हाथ फैलाना स्वाभिमान के विपरीत है। इस अखाड़े का यह सख्य नियम है कि यदि कोई स्वेच्छा से कुछ देता है तो ठीक है। ऐसा नहीं हुआ तो भूखे ही रह लेना स्वीकार है, किंतु कुछ मांग नहीं सकते। 547 ई. में जब अखाड़े की स्थापना हुई थी तो करीब 400 साधु जुड़े थे, लेकिन धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया।

सनातन के शत्रुओं के खिलाफ करते हैं संघर्ष का आह्वान

श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़े की शाखाएं प्रयागराज, वाराणसी, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार जैसे धार्मिक नगरों में है। भगवा रंग की ध्वज पताका लेकर चलने वाले इस अखाड़े के साधुओं ने वर्तमान में धर्मांतरण के खिलाफ भी अभियान छेड़ रखा है। इस अखाड़े से जुड़े साधुओं को भाला, त्रिशूल, फरसा जैसे शस्त्र चलाने की शिक्षा भी दी जाती है। फिलहाल कई हजार साधु इस अखाड़े से जुड़े हुए हैं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रवास करते हैं। अपनी स्थापना के काल से ही यह अखाड़ा आक्रामक रहा है। देश विरोधी और धर्म के खिलाफ आने वाले शत्रुओं के खिलाफ अकसर ही आह्वान किया है। यही नहीं कहा जाता है कि अखाड़े ने गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, बंगाल और बिहार जैसे राज्यों में अपने साधुओं के जत्थे भेजे थे। इसका उद्देश्य यह था कि धर्म का प्रचार किया जाए और मतांतरण को रोका जाए।

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भिक्षा मांगने पर कई संतों के खिलाफ हुआ ऐक्शन

इस अखाड़े के संतों ने मुगलों के समय भी कई बार युद्ध लड़े थे। बता दें कि अंग्रेजों के खिलाफ शुरुआती संघर्षों में से एक संन्यासी विद्रोह ही था, जिसमें बड़ी संख्या में साधु और संतों ने भी हथियार उठा लिए थे। आवाहन अखाड़ा उसी परंपरा से जुड़ा है, जो मानता है कि सनातन की रक्षा के लिए शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत होना जरूरी है। इस अखाड़े में भिक्षा मांगने वाले साधुओं के लिए जगह नहीं है। ऐसे कई साधु हैं, जिन्होंने भिक्षा मांग ली थी तो उन्हें सभी दायित्वों से मुक्त कर दिया गया। इनमें श्रीमहंत कौशल गिरि, श्रीमहंत हरिश्वरानंद पुरी, श्रीमहंत रत्नानंद गिरि, जयपुर के श्रीमहंत शंकर भारती आदि शामिल हैं। इस अखाड़े के कर्ताधर्ता श्रीमहंत होते हैं। इनके बाद अष्ट कौशल, थानापति व दो पंच होते हैं। इनके अलावा पांच सरदारों की नियुक्ति की जाती है। इसमें कोतवाल, भंडारी, कोठारी, कारोबारी और पुजारी शामिल होते हैं।

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