Hindi Newsदेश न्यूज़how manmohan singh tackle difficult demand by says decision will take by madam sonia

आखिरी फैसला तो मैडम ही करेंगी; कैसे मनमोहन सिंह ने इस वाक्य को बनाया था रामबाण

  • संजय बारू लिखते हैं, 'डॉ. मनमोहन सिंह ने कभी इस सच्चाई को खारिज नहीं किया। सरकार में शामिल सहयोगी दल जब भी अलग तक की मांग रखते तो वह कहते थे कि इस मामले में मेरी राय ही अंतिम नहीं होगी। वह तो एक ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर हैं और आखिरी फैसला मैडम ही लेंगी। उन्हें हाईकमान की शक्ति का अंदाजा था।'

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 27 Dec 2024 03:03 PM
share Share
Follow Us on

पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के निधन पर देश भर में शोक घोषित किया गया है और नेताओं से लेकर आम जन तक उन्हें अपने तरीके से याद कर रहे हैं। मनमोहन सिंह की पहचान एक अर्थशास्त्री के रूप में थी तो वहीं प्रधानमंत्री रहने के दौरान वह एक निर्णायक नेता न होने के नाम पर आलोचना झेलते रहे। 2004 में कांग्रेस और उसके साथी दलों को चुनाव नतीजों में बढ़त मिली तो चारों तरफ सोनिया गांधी के पीएम बनने की चर्चा थी। इस बीच विदेशी मूल का मुद्दा उठा तो सोनिया गांधी ने ट्रंप कार्ड चलते हुए मनमोहन सिंह को पीएम के तौर पर आगे कर दिया। माना गया था कि उन्हें इसलिए कमान दी गई है ताकि पद पर रहे बिना ही गांधी फैमिली फैसले कर सके और सिख दंगों के दाग भी कांग्रेस से हटाए जा सकें। इसलिए एक अर्थशास्त्री सिख लीडर को पीएम बना दिया गया।

कांग्रेस हाईकमान के लिए भले ही मनमोहन सिंह को पीएम बनाना एक रणनीति का हिस्सा था, लेकिन खुद सिंह इसके चलते आलोचना झेलते रहे। हालांकि उन्होंने इस कथित कमजोरी को ही अपनी ताकत बना लिया था। डॉ. मनमोहन सिंह पर उनके सलाहकार रहे संजय बारू ने एक पुस्तक लिखी थी- द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर। इस पुस्तक में संजय बारू बताते हैं कि कैसे हाईकमान की ही चलने वाली बात को मनमोहन सिंह ने अपनी ताकत बना लिया था और इसके जरिए वह जटिल मुद्दों को टाल देते थे या फिर उनसे बच निकलते थे। संजय बारू लिखते हैं, 'यूपीए-1 की स्थिति यह थी कि सभी अच्छे कामों का श्रेय सोनिया गांधी को मिलता था तो वहीं किसी भी तरह की असफलता के लिए पीएम के तौर पर डॉ. मनमोहन सिंह जिम्मेदार ठहराए गए।'

संजय बारू लिखते हैं, 'डॉ. मनमोहन सिंह ने कभी इस सच्चाई को खारिज नहीं किया। सरकार में शामिल सहयोगी दल जब भी अलग तक की मांग रखते तो वह कहते थे कि इस मामले में मेरी राय ही अंतिम नहीं होगी। वह तो एक ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर हैं और आखिरी फैसला मैडम सोनिया गांधी ही लेंगी। उन्हें हाईकमान की शक्ति का अंदाजा था।' इस तरह आखिरी फैसला सोनिया गांधी ही लेंगी कहकर वह अकसर जटिल और कठिन मसलों को टाल देते थे। यानी जिसे उनकी कमजोरी माना गया था, वही चीज उनकी ताकत बन चुकी थी। संजय बारू लिखते हैं कि गवर्नेंस के अलग-अलग मामलों में उनके हाथ बंधे थे। इसलिए उन्होंने विदेश नीति को चुना और वहां नटवर सिंह के माध्यम से अपनी नीतियों को आगे बढ़ाया था।

ये भी पढ़ें:मनमोहन सिंह की नीली रंग की पगड़ी के पीछे क्या था राज; खुद बताई थी कहानी
ये भी पढ़ें:कैसी थी मनमोहन सिंह की मारुति 800, जिसके सामने BMW भी नजर आती थी फीकी?
ये भी पढ़ें:जब नवजोत सिंह सिद्धू ने मनमोहन सिंह से मांगी माफी, हंसते नजर आए पूर्व पीएम

गौरतलब है कि मनमोहन सिंह अपने 10 सालों के कार्यकाल के दौरान 'रिमोट से चलने वाली सरकार' का तमगा पाते रहे थे। उन्होंने कभी खुलकर जवाब नहीं दिया, लेकिन पीएम के तौर पर अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपना दर्द जाहिर किया था। मनमोहन सिंह का कहना था कि भले ही विपक्ष और मीडिया मेरे प्रति निर्मम रहे हैं, लेकिन उम्मीद है कि इतिहास मेरे साथ उदारता दिखाएगा।

अगला लेखऐप पर पढ़ें