कांग्रेस की नाक में दम कर देगी दिल्ली की हार! दक्षिण के राज्यों में भी दिखेगा बड़ा असर
- दिल्ली में कांग्रेस लगातार तीसरी बार खाता भी नहीं खोल पाई। वहीं इतना बुरा प्रदर्शन कांग्रेस का रुतबा दक्षिण में भी कम कर देगा। आने वाले दिनों में इसका असर दक्षिण के राज्यों में दिखाई देगा।
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दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीरो की हैट्रिक मार दी है। उत्तर भारत में कांग्रेस के पास केवल हिमाचल प्रदेश ही बचा है। ऐसे में अब कांग्रेस दक्षिण के राज्यों तक ही सीमित हो गई है। एक तरह से कह सकते हैं कि कांग्रेस के भविष्य की जिम्मेदारी अब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पर टिकी है। ऐसे में जानकारों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी में दक्षिण के नेताओं का दबदबा बढ़ सकता है। दक्षिणी राज्यों में कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों, स्थानीय नेताओं और अपने वादों की वजह से जीत हासिल की थी।
हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद कांग्रेस के दिल्ली में तीसरा तगड़ा झटका लगा है। वहीं दिल्ली की हार के बाद अब कांग्रेस का पावर शिफ्ट साउथ की तरफ हो सकता है। नैतिक तौर पर अब कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व दक्षिण के नेताओं पर शिकंजा नहीं कस सकता है। अब उसे चुनाव जीतने या फिर राज्यों के प्रशासन को लेकर सीख देने का भी अधिकार नहीं है। वहीं दक्षिण में कांग्रेस का अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन भी है। ऐसे में सहयोगी दल भी कांग्रेस पर हावी हो सकते हैं।
केरल में यूनियन मुस्लिम लीग और तमिलनाडु में डीएमके के साथ कांग्रेस का गठबंधन है। वहीं इन दोनों ही राज्यों में अगले साल विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। जाहिर सी बात है कि उत्तर में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब होना दक्षिण में भी उसके लिए नुकसानदेह साबित होगा और रीजनल पार्टी सीट शेयिरिंग को लेकर कोई नरमी नहीं बरतेंगी। वहीं कांग्रेस को भी दक्षिण की पार्टियों की बात मजबूरन माननी पड़ेगी।
कर्नाटक ही सबसे बड़ा राज्य है जहां कांग्रेस की सरकार है। उपचुनाव में भी यहां कांग्रेस ने तीनों सीटों पर जीत दर्ज की। ऐसे में सिद्धारमैया का कद बढ़ गया है। एक तरफ दिल्ली में कांग्रेस को झटका लगा तो दूसरी तरफ सिद्दारमैया का गुट मजबूत हो गया है।
दूसरी तरफ पंजाब को लेकर भी कांग्रेस अब कमर कस रही है। फिलहाल पंजाब में कांग्रेस ही दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में 92 सीटे आम आदमी पार्टी के पास हैं। वहीं कांग्रेस के पास केवल 18 सीटें हैं। शिरोमणि अकाली दल चार और बीजेपी दो पर ही जीत हासिल कर पाई थी। ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी की वर्चस्व कम होता है तो कांग्रेस को मौका मिल सकता है। हालांकि इस मौके को का इस्तेमाल कैसे करना है इसके लिए कांग्रेस के रणनीति तैयार करने की जरूरत है।