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बटर चिकन और दाल मखनी किसकी खोज, HC में दो मशहूर रेस्तरां की लड़ाई; पाकिस्तान में क्या दावा

  • यह मुकदमा दिल्ली के दो मशहूर रेस्तरां चेन मोती महल और दरियागंज के बीच है। इसके तहत मोती महल ने हाई कोर्ट में केस किया था कि बटर चिकन की खोज उसके रेस्तरां में हुई थी। मोती महल के संस्थापक कुंदनलाल गुजराल ने 1920 में इसकी खोज की थी। इस बीच पाकिस्तान में भी इस पर हक को लेकर दावे किए जा रहे हैं।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 12 Sep 2024 05:02 AM
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शाकाहारी खाने वालों के लिए दाल मखनी और नॉनवेज के शौकीनों के लिए बटर चिकन एक खास डिश रही हैं। पंजाब, दिल्ली, हरियाणा समेत उत्तर भारत के बड़े हिस्से में इनका खूब प्रचलन है। यही नहीं पाकिस्तान के भी कई प्रांतों में इनके दीवाने बहुत हैं। लेकिन इन दोनों डिशों की चर्चा फिलहाल दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहे एक केस के चलते है। आज फिर से इस मामले में सुनवाई होनी है। यह मुकदमा दिल्ली के दो मशहूर रेस्तरां चेन मोती महल और दरियागंज के बीच है। इसके तहत मोती महल ने हाई कोर्ट में केस किया था कि बटर चिकन की खोज उसके रेस्तरां में हुई थी। मोती महल के संस्थापक कुंदनलाल गुजराल ने 1920 में इसकी खोज की थी।

तब वह पेशावर में रेस्तरां चलाते थे। वहीं दरियागंज रेस्तरां चेन का तर्क है कि बटर चिकन की खोज तो उनके रेस्तरां के संस्थापक रहे कुंदनलाल जग्गी ने की थी। वह आजादी के बाद दिल्ली आ गए थे और यहीं पर रेस्तरां चलाया। दरियागंज रेस्तरां चेन का कहना है कि तब जग्गी और गुजरात दोस्त थे और पार्टनर भी थे। लेकिन पेशावर के रहने वाले गुजराल इस बिजनेस में मार्केटिंग का ही काम देखते थे। ऐसे में बटर चिकन जैसी डिश सिर्फ जग्गी ने ही तैयार की थी और उस आधार पर दरियागंज रेस्तरां का ही दावा बनता है। दिलचस्प बात है कि अब दोनों दोस्त नहीं रहे हैं। गुजराल की 1997 और जग्गी की 2018 में मौत हो गई थी।

इस बीच पाकिस्तानी टीवी चैनल जियो न्यूज की वेबसाइट में प्रकाशित एक लेख में अलग ही दलील दी गई है। इसमें कहा गया है कि मोती महल या दरियागंज में बटर चिकन का आविष्कार नहीं हुआ था बल्कि पेशावर में हुआ था। इस तरह यह पाकिस्तान से भी जुड़ा है। मोती महल रेस्तरां का दावा है कि बटर चिकन, दाल मखनी और तंदूरी चिकन का आविष्कार उसके संस्थापक कुंदनलाल गुजराल ने किया था। यह जानकारी मोती महल की ओर से अपनी वेबसाइट पर भी दी गई है।

मोती महल का दावा है कि बटर चिकन की खोजन के बाद से नॉन-वेज फूड की दुनिया ने एक नया स्वाद पाया। इससे लोगों की खाने की हैबिट बदली और पूरी दुनिया में भारत की इस डिश की चर्चा शुरू हुई। पेशावर के जिस रेस्तरां में उन्होंने इन डिशेज को तैयार किया था, उसका नाम मोती महल था। ऐसे में विभाजन के बाद जब भारत में उन्होंने अपना कारोबार शुरू किया तो उसका नाम भी मोती महल ही रखा। गौरतलब है कि दो मशहूर रेस्तरां चेनों के बीच यह मुकदमा जनवरी 2024 में शुरू हुआ था। दोनों पक्षों की ओर से इस मामले में कुछ तस्वीरें हाई कोर्ट में सौंपी गई हैं। मोती महल ने दरियागंज रेस्तरां से करीब ढाई लाख डॉलर के हर्जाने की डिमांड की है।

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