जिसने 20 साल सेना में गुजारे, उसे कोर्ट में क्यों घसीटा; कुछ तो लिहाज रखते: केंद्र पर भनभनाए SC जज
पीठ ने कहा कि हमारा मानना है कि केंद्र सरकार को एक नीति बनानी चाहिए। सशस्त्र बलों के सदस्यों को उच्चतम न्यायालय में आने के लिए मजबूर करने का निर्णय लेने से पहले कुछ सोचना-समझना चाहिए था।
सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त कर्मियों को अदालत में ‘घसीटने’ पर ऐतराज जताते हुए बृहस्पतिवार को केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की और इस मुद्दे पर एक स्पष्ट नीति बनाने का निर्देश दिया। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि सशस्त्र सेना न्यायाधिकरण (Armed Forces Tribunals) से दिव्यांगता पेंशन पाने वाले सशस्त्र बलों के हर सदस्य को शीर्ष अदालत में घसीटने की आवश्यकता नहीं थी। कोर्ट ने ये भी कहा कि केंद्र सरकार को ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने में लोक-लाज का ख्याल रखना चाहिए था और कुछ विवेक का उपयोग करना चाहिए था।
पीठ ने पूछा, "इसमें कुछ व्यावहारिक दृष्टिकोण होना चाहिए। एक सैन्यकर्मी 15, 20 साल तक काम करता है और मान लीजिए कि वह दिव्यांगता का शिकार हो जाता है और सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के आदेश में विकलांगता पेंशन के भुगतान का निर्देश दिया गया है। तो ऐसे लोगों को सुप्रीम कोर्ट में क्यों घसीटा जाना चाहिए?" पीठ ने कहा, "हमारा मानना है कि केंद्र सरकार को एक नीति बनानी चाहिए। सशस्त्र बलों के सदस्यों को उच्चतम न्यायालय में आने के लिए मजबूर करने का निर्णय लेने से पहले कुछ सोचना-समझना चाहिए था।”
न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा "मनगढ़ंत अपील" दायर की जा रही हैं और ऐसी याचिकाएं दायर करके सशस्त्र बलों का मनोबल नहीं गिराया जा सकता। पीठ ने केंद्र सरकार के वकील को आगाह करते हुए कहा, “आप बताएं कि क्या आप नीति बनाने के लिए तैयार हैं। और यदि आप न कहते हैं तो जब भी हमें लगेगा कि अपील मनगढ़ंत है, तब हम भारी जुर्माना लगाना शुरू कर देंगे।”
शीर्ष अदालत केंद्र द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। अपील में न्यायाधिकरण के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसके तहत एक सेवानिवृत्त रेडियो फिटर को दिव्यांगता पेंशन प्रदान की गई थी।