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क्यों गणेश नाइक और एकनाथ शिंदे की पुरानी अदावत फिर से उभरी, फायदे में सिर्फ भाजपा

  • भाजपा के लिए यह एक मौके की तरह है, जो शिंदे और गणेश नाइक की पुरानी अदावत के बहाने खुद को मजबूत करने में जुटी है। दरअसल एकनाथ शिंदे और गणेश नाइक के बीच 36 का आंकड़ा नई बात नहीं है। यह बात 1990 के दशक से शुरू होती है।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, मुंबईThu, 30 Jan 2025 03:42 PM
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क्यों गणेश नाइक और एकनाथ शिंदे की पुरानी अदावत फिर से उभरी, फायदे में सिर्फ भाजपा

महाराष्ट्र में सत्ताधारी महायुति गठबंधन में चल रही खींचतान में अब एक नया विवाद उभर आया है। एकनाथ शिंदे के गढ़ कहे जाने वाले ठाणे में जनता दरबार लगाने का ऐलान गणेश नाइक ने कर दिया है। भाजपा मंत्री के इस ऐलान से शिवसेना में नाराजगी है और उसका कहना है कि हमारे नेता भी भाजपा वालों के गढ़ में दरबार लगाएंगे। वहीं भाजपा के लिए यह एक मौके की तरह है, जो शिंदे और गणेश नाइक की पुरानी अदावत के बहाने खुद को मजबूत करने में जुटी है। दरअसल एकनाथ शिंदे और गणेश नाइक के बीच 36 का आंकड़ा नई बात नहीं है। यह बात 1990 के दशक से शुरू होती है। तब ठाणे जिले की राजनीति में आनंद दिघे का दबदबा था, जिन्हें एकनाथ शिंदे अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं। आनंद दिघे उस दौरान ठाणे में शिवसेना के जिलाध्यक्ष थे।

उनके निधन के बाद 1998 में शिवसेना छोड़ने वाले गणेश नाइक एनसीपी के मंत्री बन गए थे। फिर वह तीन बार ठाणे के प्रभारी मंत्री रहे। वह ठाणे में अपना जनाधार मानते रहे हैं। फिलहाल वह पालघर के प्रभारी मंत्री हैं, जो पड़ोस का जिला है, लेकिन अब भी वह ठाणे का मोह नहीं छोड़ पा रहे। वहीं ठाणे की राजनीति में अब एकनाथ शिंदे अपना एकछत्र राज मानते हैं। वह 2017-18 से ही ठाणे जिले की राजनीति में प्रमुख नेता हैं और तब से ही लगातार प्रभारी बने हुए हैं। वह बीते करीब दो दशकों से ठाणे की स्थानीय निकाय की राजनीति को भी कंट्रोल करते रहे हैं। आनंद दिघे की विरासत के वह वारिस कहलाते हैं और इसी के दम पर उन्होंने बालासाहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव तक को चैलेंज दे डाला। लेकिन अब उस गढ़ में ही भाजपा की गतिविधियों ने उनकी चिंताएं बढ़ा दी हैं।

यह सब ऐसे समय में हुआ है, जब भाजपा और एकनाथ शिंदे गुट के बीच मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर विवाद हुआ। यही नहीं चुनाव नतीजों में भाजपा को 132 सीटें मिलने के बाद भी एकनाथ शिंदे खुद को सीएम के तौर पर देखना चाहते थे। ऐसा नहीं हुआ तो फिर वह होम मिनिस्टर के पद के लिए अड़ गए थे। इसके बाद भी उन्हें संतोष करना पड़ा और वह डिप्टी सीएम के पद पर हैं। एकनाथ शिंदे और गणेश नाइक के बीच राजनीतिक अदावत यही नहीं थमती। ठाणे की लोकसभा सीट पर भी दोनों के बीच रस्साकशी रही है। यहां से नाइक अपने बेटे संजीव के लिए इस बार भाजपा से टिकट चाहते थे। वहीं एकनाथ शिंदे ने पूरा जोर लगाया और यह सीट अपने खाते में ही रखी। उनके करीबी नरेश म्हासके यहां से सांसद हैं।

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यही नहीं एकनाथ शिंदे ने नवी मुंबई में नाइक के प्रतिद्वंद्वी विजय चौगुले को उतारा था। यही नहीं नाइक के बेटे के खिलाफ एकनाथ शिंदे ने प्रचार के लिए अपने कई नेताओं को भेजा था। भाजपा की लीडरशिप के साथ कुछ महीने पहले तक नाइक के अच्छे संबंध नहीं थे। इसलिए विधानसभा इलेक्शन में उनके बेटे संदीप ने एनसीपी-एसपी जॉइन कर ली। संदीप ने भाजपा की विधायक मंदा म्हात्रे के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन महायुति की सत्ता के बाद गणेश नाइक को भाजपा ने मंत्री ही बना दिया। इसी से कयास लगने लगे थे कि एकनाथ शिंदे को कष्ट देने के लिए ही उनका प्रमोशन किया गया है। गणेश नाइक की ओर से जनता दरबार वाले ऐलान ने इस बात की पुष्टि भी कर दी है।

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