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अजित पवार से बागी छगन भुजबल भाजपा में आएंगे! चर्चाओं के बीच फडणवीस से मिले; भतीजा भी साथ

  • छगन भुजबल को उम्मीद थी कि उन्हें कम से कम कैबिनेट में जरूरी शामिल किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा था कि मैं किसी के हाथ का खिलौना नहीं हूं कि जब चाहा खेला और जब चाहा रख दिया। बागी रुख के चलते ही उनके भाजपा में जाने की चर्चाएं तेज हैं।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, मुंबईMon, 23 Dec 2024 01:02 PM
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महाराष्ट्र सरकार का हिस्सा न बनाए जाने से नाराज छगन भुजबल ने सोमवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की है। छगन भुजबल और फडणवीस की बातचीत करीब 40 मिनट तक चली। इस दौरान छगन भुजबल के बेटे समीर भुजबल भी मौजूद थे। इस मीटिंग के बाद से चर्चे तेज हैं कि आखिर छगन भुजबल का अगला कदम क्या होगा। इस चर्चा की वजह है कि भुजबल के कई समर्थक लगातार कहते रहे हैं कि उन्हें भाजपा में चले जाना चाहिए। छगन भुजबल को उम्मीद थी कि उन्हें कम से कम कैबिनेट में जरूरी शामिल किया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा था कि मैं किसी के हाथ का खिलौना नहीं हूं कि जब चाहा खेला और जब चाहा रख दिया।

यही नहीं देवेंद्र फडणवीस की उन्होंने तारीफ की थी और कहा था कि सीएम तो उन्हें कैबिनेट में देखना चाहते थे। ऐसी स्थिति में फडणवीस से होने वाली मुलाकात ने इन कयासों को तेज कर दिया है कि क्या छगन भुजबल भाजपा में जाने की सोच रहे हैं। छगन भुजबल ने मंत्री पद न मिलने के बाद से कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है। ओबीसी समाज के प्रतिनिधियों से भी मुलाकात की है। उनके कई समर्थकों का कहना है कि छगन भुजबल को सम्मान मिलने से ओबीसी वर्ग में नाराजगी रहेगी। इसे दूर किए जाने की जरूरत है। उनके साथियों का कहना है कि अजित पवार ने पिछड़ा वोटों के लिए छगन भुजबल को साथ बनाए रखा, लेकिन नतीजों के बाद उनका रुख बदल गया।

वहीं मुंबई में बहुजन अघाड़ी की मीटिंग भी हुई, जिसमें विचार हुआ कि क्यों न छगन भुजबल को समर्थन दे दिया जाए क्योंकि उन्होंने हमारी मांगों को उठाया है। इन लोगों का कहना है कि छगन भुजबल प्रदेश के बड़े ओबीसी नेता हैं और समाज में भी उन्हें मान्यता हासिल है। इसलिए वह चाहते हैं कि छगन भुजबल भाजपा के साथ चले जाएं, जहां ओबीसी नेताओं का अच्छा सम्मान हुआ है।

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छगन भुजबल का कहना है कि आखिर उनकी क्या गलती है, जिसके चलते हटाया गया। लेकिन अजित पवार के नेतृत्व वाले दल के पास ही ज्यादातर मंत्रालयों की कमान सौंपने से भी संकट की स्थिति होती। ऐसे में सभी दलों से लगभग एक तिहाई से भी कम विधायकों को मंत्री पद दिया गया है। बता दें कि छगन भुजबल खुद को ओबीसी नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करते रहे हैं। मंत्रालय न मिलने के बाद उनकी कई ओबीसी संगठनों के नेताओं से मुलाकात हुई है। वह चुके हैं कि अपने समर्थकों से मुलाकात के बाद ही कोई फैसला लेंगे।

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