प्रेग्नेंसी में मोटापा मां और बच्चे दोनों के लिए हो सकता है खतरनाक, जानें इस समस्या से कैसे निपटें
गर्भावस्था के दौरान मोटापा न सिर्फ गर्भवती महिला बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे की सेहत पर भी दूरगामी प्रभाव डाल सकता है। क्यों जरूरी है गर्भधारण से पहले वजन को नियंत्रित करना, बता रही हैं शमीम खान।
वर्ष 2014 में दुनिया भर में तीन करोड़, 89 लाख गर्भवती महिलाएं मोटापे से पीड़ित थीं। इनमें लगभग 11.1 प्रतिशत यानी 43 लाख भारतीय महिलाएं थीं। यह एक दशक पुराना आंकड़ा है, पर स्थिति अब भी बेहतर नहीं हुई है। 2022 में भारत में मोटापे की शिकार महिलाओं की संख्या 4.4 करोड़ पहुंच गई है, जिसमें एक बड़ा हिस्सा गर्भवती महिलाओं का है। गर्भावस्था के दौरान मोटापा एक ग्लोबल समस्या बन गई है, जो न केवल मां बल्कि गर्भस्थ शिशु को भी प्रभावित करती है। गर्भवती महिलाओं में मोटापे की समस्या को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों में चिंताएं बढ़ती जा रही हैं क्योंकि इससे न सिर्फ मां बल्कि उसके उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की सेहत पर कई दूरगामी प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं।
मां के मोटोपे का असर
जेस्टेशनल हाइपरटेंशन: मोटापे की शिकार महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है, जिसके कारण प्रीक्लेम्पसिया और दिल की सेहत से जुड़ी जटिलताओं का खतरा भी बढ़ जाता है।
पोस्टपार्टम हेमरेज: जिन महिलाओं का वजन गर्भावस्था के दौरान ज्यादा होता है, उनमें पोस्टपार्टम हेमरेज का खतरा बढ़ जाता है। पोस्टपार्टम हेमरेज यानी बच्चे के जन्म के बाद वजाइना से अत्यधिक ब्र्लींडग होना। अगर ठीक से प्रबंधन न किया जाए तो यह जीवन के लिए घातक साबित हो सकती है।
थ्रोम्बोम्बोलिज्म: मोटापा ब्लड क्लॉट यानी खून का थक्का विकसित होने का एक प्रमुख कारण माना जाता है। जो गंभीर स्थितियों में कई और परेशानियों का कारण बन सकता है।
मैक्रोसोमिया: मैक्रोसोमिया यानी बच्चे का आकार सामान्य से काफी बड़ा होना। मोटी महिलाओं से जन्मे शिशु का आकार जन्म के वक्त औसत से ज्यादा होने की आशंका अधिक होती है, जिससे प्रसव के समय जटिलताओं का खतरा काफी ज्यादा बढ़ जाता है।
बचपन का मोटापा: ज्यादा वजन वाली महिलाओं से जन्म लेने वाले बच्चों में मोटापा विकसित होने का खतरा अधिक होता है। एनल्स ऑफ न्युट्रीशन एंड मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि जो महिलाएं गर्भावस्था के पहले मोटी होती हैं उनके बच्चों में मोटापे का शिकार होने की आशंका दुबली-पतली महिलाओं से जन्मे बच्चों से तीन गुना ज्यादा होती है।
मेटाबॉलिक डिसॉर्डर: मां का मोटापा बच्चों में मेटाबॉलिक डिसॉर्डर का खतरा बढ़ा देती है, जिससे उन्हें टाइप 2 डायबिटीज और इंसुलिन रेजिस्टेंस जैसी समस्याएं होने का खतरा बढ़ जाता है।
कैसे निपटें इस समस्या से
-किसी चीज के बारे में जागरूकता फैलाना उसे रोकने की दिशा में हमेशा प्रभावी साबित होता है। जो महिलाएं गर्भधारण की उम्र में हैं, उन्हें गर्भावस्था के पहले और उसके दौरान स्वस्थ्य वजन बनाए रखने के महत्व के बारे में शिक्षित करना मोटापे से संबंधित जटिलताओं को कम करने में सहायता कर सकता है।
-गर्भवती महिलाओं की गहन देखभाल, पोषण संबंधी जरूरतों के बारे में उनका मार्गदर्शन और गर्भावस्था के दौरान जरूरी जांच व उचित उपचार उनमें मोटापे के जोखिम को कम कर मां और बच्चे दोनों के लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरों को कम करता है।
-नियमित रूप से व्यायाम करने के लिए गर्भवती महिलाओं को प्रोत्साहित करना, संतुलित भोजन का सेवन करना और तनाव का प्रबंधन करना जैसी स्वस्थ्य जीवनशैली संबंधी आदतों को बढ़ावा देना गर्भवती महिला और उसके गर्भस्थ शिशु के लिए फायदेमंद होता है।
-प्रसूति विशेषज्ञ, नर्सों, डाइटीशियन और एक्सरसाइज विशेषज्ञों की सेवाएं लेना ताकि मोटापे और उससे संबंधित जटिलताओं से निपटा जा सके।
-स्वास्थ्य केंद्रों में ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करना, जो गर्भावस्था के समय वजन के प्रबंधन को बढ़ावा देते हैं।
गर्भधारण करने से पहले
आप गर्भावस्था के दौरान वजन नहीं घटा सकतीं और न ही आपको इसका प्रयास करना चाहिए। अगर वजन अधिक है तो कम-से-कम एक साल पहले अपनी प्रेग्नेंसी प्लान करें और इस दौरान अपना वजन घटाएं। नियमित रूप से व्यायाम करें, अपनी डाइट में प्रतिदिन 100 कैलोरी का सेवन कम कर दें। इन बदलावों से आप साल में 5 किलो वजन कम कर लेंगी।
(डॉ. अंजलि कुमार, डायरेक्टर, ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनेकोलॉजी, सी.के.बिड़ला हॉस्पिटल, गुरूग्राम से बातचीत पर आधारित)
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