1980 में पाकिस्तान के दबाव में रोका था काम, अब मौका है; CM अब्दुल्ला का केंद्र को इशारा
तुलबुल नेविगेशन परियोजना का फिर से शुरू होना जम्मू-कश्मीर के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है, जो न केवल बुनियादी ढांचे को मजबूत करेगा, बल्कि क्षेत्र की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में भी सुधार लाएगा।

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक वीडियो शेयर करते हुए तुलबुल नेविगेशन परियोजना को फिर से शुरू करने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि ये काम 45 साल पहले पाकिस्तान के दबाव में ये काम रोक दिया गया था, लेकिन अब मौका है कि इसे फिर से शुरू किया जाए ताकि हमें झेलम का पानी नेविगेट करने में भी मदद मिले।
हेलीकॉप्टर से लिए गए वीडियो को शेयर करते हुए अब्दुल्ला ने लिखा, "यह उत्तरी कश्मीर की वुलर झील है। वीडियो में आप जो सिविल कार्य देख रहे हैं, वह तुलबुल नेविगेशन बैराज है। इसे 1980 के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया था, लेकिन सिंधु जल संधि का हवाला देते हुए पाकिस्तान के दबाव में इसे छोड़ना पड़ा। अब जब IWT (सिंधु जल समझौता) "अस्थायी रूप से निलंबित" कर दिया गया है, तो मुझे आश्चर्य है कि क्या हम इस परियोजना को फिर से शुरू कर पाएंगे।" इस बयान के साथ ही उन्होंने परियोजना के लाभों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस परियोजना से झेलम नदी में नेविगेशन की सुविधा मिलेगी, साथ ही डाउनस्ट्रीम पावर प्रोजेक्ट्स, विशेषकर सर्दियों में बिजली उत्पादन में सुधार होगा।
क्या है पूरा मामला?
तुलबुल नेविगेशन परियोजना को वुलर बैराज के नाम से भी जाना जाता है। तुलबुल नेविगेशन बैराज जम्मू और कश्मीर के वुलर झील के मुहाने पर झेलम नदी पर स्थित एक निर्माणाधीन परियोजना है। इसका उद्देश्य वुलर झील के मुहाने पर एक नेविगेशन लॉक-कम-कंट्रोल संरचना बनाकर नौवहन को सुगम बनाना, जल स्तर को नियंत्रित करना, और बिजली उत्पादन के लिए पानी को मैनेज करना है। इसकी परियोजना की शुरुआत 1984 में हुई थी, लेकिन 1987 में पाकिस्तान के विरोध के कारण काम रोक दिया गया, क्योंकि पाकिस्तान इसे सिंधु जल संधि का उल्लंघन मानता है। पाकिस्तान का दावा है कि यह बैराज युद्ध की स्थिति में पानी छोड़कर उसके इलाकों में बाढ़ पैदा कर सकता है।
वुलर झील
वुलर झील भारत की सबसे बड़ी ताजे पानी की झील है, जो जम्मू और कश्मीर के बांदीपोरा जिले में स्थित है। यह एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झीलों में से एक है। इसका आकार मौसम के अनुसार 30 से 260 वर्ग किलोमीटर तक बदलता रहता है, और इसे झेलम नदी द्वारा पोषित किया जाता है। यह झील टेक्टोनिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप बनी है और कश्मीर घाटी की हाइड्रोग्राफिक प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, खासकर बाढ़ नियंत्रण में। प्राचीन काल में इसे 'महापद्मसर' कहा जाता था, और इसका नाम संस्कृत शब्द 'उल्लोल' (ऊंची लहरें) से विकसित हुआ है, क्योंकि दोपहर में इसकी लहरें उग्र हो जाती हैं। झील में जैव विविधता प्रचुर है, जिसमें कई मछलियां और प्रवासी पक्षी शामिल हैं, और इसे रामसर साइट के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसमें एक कृत्रिम द्वीप जैनुल लंक भी है जिसे 15वीं सदी में सुलतान जैन-उल-अबदीन ने नाविकों के लिए आश्रय के रूप में बनवाया था।
सिंधु जल संधि का निलंबन
हाल ही में, भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के जवाब में सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है। यह कदम 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद लिया गया। इस संधि के निलंबन के बाद तुलबुल परियोजना को फिर से शुरू करने का रास्ता खुल सकता है।
क्या हैं परियोजना के लाभ?
तुलबुल नेविगेशन परियोजना के फिर से शुरू होने से न केवल नेविगेशन में सुधार होगा, बल्कि डाउनस्ट्रीम हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स जैसे लोअर झेलम (105 एमडब्ल्यू), उरी (720 एमडब्ल्यू), और अन्य प्रस्तावित प्रोजेक्ट्स में भी बिजली उत्पादन बढ़ेगा। विशेषकर सर्दियों में, जब जल स्तर कम हो जाता है, तब यह परियोजना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
जम्मू-कश्मीर में बिजली उत्पादन में सर्दियों के दौरान 65% तक की कमी देखी गई है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ डालती है। तुलबुल परियोजना के फिर से शुरू होने से न केवल बिजली की आपूर्ति में सुधार होगा, बल्कि क्षेत्रीय व्यापार और नेविगेशन में भी वृद्धि होगी।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सिंधु जल समझौते के निलंबन पर खुशी का इजहार किया था। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग कभी भी इस संधि के पक्ष में नहीं रहे। उन्होंने इसे राज्य के लोगों के लिए "सबसे अनुचित दस्तावेज" करार देते हुए केंद्र सरकार के फैसले का समर्थन किया। अब मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के इशारे के बाद, यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस परियोजना को फिर से शुरू करने के लिए क्या कदम उठाती है।
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