इजरायल के खिलाफ सऊदी अरब में पहली बार दो दिवसीय महामंथन; क्यों बना रहा 90 का मेगा अलायंस
दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक और इस्लाम के दो सबसे पवित्र स्थलों के संरक्षक सऊदी अरब ने पिछले साल फिलिस्तीनी उग्रवादियों हमास और इजरायल के बीच गाजा युद्ध छिड़ने के बाद इजरायल को मान्यता देने पर अमेरिका की मध्यस्थता वाली वार्ता रोक दी थी।
मध्य-पूर्व में व्याप्त तनाव और गाजा पर इजरायली हमलों के बीच सऊदी अरब ने अब यहूदी देश इजरायल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सऊदी अरब ने बुधवार को फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना के लिए इजरायल पर दबाव बनाने के लिए रियाद में एक नए 'अंतर्राष्ट्रीय महागठबंधन' की पहली बैठक की मेजबानी की है। सऊदी विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल बिन फ़रहान ने कहा कि रियाद में हो रही दो दिवसीय बैठक में लगभग 90 "देश और अंतर्राष्ट्रीय संगठन" भाग ले रहे हैं।
पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान "दो-राज्य समाधान नीति को लागू करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन" बनाने का फैसला हुआ था। यह महागठबंधन मध्य पूर्व, यूरोप और दुनिया के अलग हिस्सों के देशों को एक साथ एक मंच पर लाता है। इनकी कोशिश है कि टू स्टेट पॉलिसी के तहत फिलिस्तीन का समाधान निकाला जाय और इजरायल पर अंतरराष्ट्रीय दबाव डालकर गाजा में सीजफायर कराया जाय।
सऊदी विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल बिन फ़रहान ने गाजा में मानवीय स्थिति को विनाशकारी बताया और उत्तरी गाजा की पूर्ण नाकाबंदी की निंदा की। उन्होंने कहा, "फिलिस्तीनी लोगों को उनकी भूमि से बेदखल करने के उद्देश्य से वहां नरसंहार को अंजाम दिया जा रहा है, जिसे उनका देश यानी सऊदी अरब अस्वीकार करता है।" रियाद की बैठक में शामिल होने आए राजनयिकों ने कहा कि इस बैठक में फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की मानवीय पहुँच और दो-राज्य समाधान को आगे बढ़ाने के उपायों पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद है।
राजनयिकों ने बताया कि इस मेगा मीटिंग में यूरोपीय यूनियन का प्रतिनिधित्व मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया के लिए नियुक्त विशेष प्रतिनिधि स्वेन कूपमैन्स कर रहे हैं, जबकि इजरायल के सबसे महत्वपूर्ण सैन्य समर्थक संयुक्त राज्य अमेरिका ने फिलिस्तीनी मामलों के लिए विदेश विभाग के विशेष प्रतिनिधि हैडी अमर को भेजा है। पिछले एक साल में जब से इजरायल ने गाजा पर हमले शुरू किए हैं, तब से गाजा युद्ध ने "दो-राज्य समाधान" की चर्चा को फिर से जिंदा कर दिया है। इसके तहत इजरायल और फिलिस्तीन दोनों राज्य एक साथ शांति से रहेंगे। हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि यह लक्ष्य पहले से कहीं अधिक मुश्किल लगता है क्योंकि इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की कट्टर-दक्षिणपंथी इजरायली सरकार फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने के सख्त खिलाफ है।
दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक और इस्लाम के दो सबसे पवित्र स्थलों के संरक्षक सऊदी अरब ने पिछले साल फिलिस्तीनी उग्रवादियों हमास और इजरायल के बीच गाजा युद्ध छिड़ने के बाद इजरायल को मान्यता देने पर अमेरिका की मध्यस्थता वाली वार्ता रोक दी थी। इसके बाद इस साल सितंबर में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने "स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य" की वकालत की थी। प्रिंस फैसल ने बुधवार को फिर से उसी स्थिति को दोहराया है। आयरलैंड, नॉर्वे और स्पेन ने भी मई में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की घोषणा की थी, जिसके बाद इजरायल ने उन पर नाराजगी जताई थी। बाद में स्लोवेनिया भी इस मुहिम में शामिल हो गया। इससे फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने वाले देशों की संख्या 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों में से 146 हो गई।
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