चीन बना रहा परमाणु शक्ति का खुफिया किला, बिना धमाके के बढ़ेगी न्यूक्लियर ताकत! पीछे छूट रहा भारत?
- यह सुविधा चीन को अपने परमाणु हथियारों के डिजाइन को एडवांस करने में मदद करेगी, जिससे वह बिना किसी पारंपरिक परमाणु परीक्षण के अपने हथियारों को अधिक प्रभावी बना सकेगा।
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चीन दक्षिण-पश्चिमी शहर मियानयांग में एक बड़े पैमाने पर लेजर-इग्नाइटेड न्यूक्लियर फ्यूजन रिसर्च केंद्र का निर्माण कर रहा है। विशेषज्ञ इसे सैन्य और ऊर्जा दोनों क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति के रूप में देख रहे हैं। सैटेलाइट तस्वीरों से इस विशालकाय खुफिया किले का खुलासा हुआ है, जिसमें चार बाहरी शाखाएं और एक केंद्रीय प्रयोगात्मक कक्ष है, जहां ड्यूटेरियम और ट्रिटियम जैसे हाइड्रोजन आइसोटोप को तीव्र लेजर किरणों के माध्यम से फ्यूजन प्रतिक्रियाओं के लिए तैयार किया जाएगा। बता दें कि न्यूक्लियर फ्यूजन (Nuclear Fusion) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो हल्के परमाणु नाभिक आपस में मिलकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं, जिससे बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह वही प्रक्रिया है जो सूर्य और अन्य सितारों में ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए होती है।
परमाणु हथियार विकास में संभावित इस्तेमाल
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, विशेषज्ञों का मानना है कि यह रिसर्च सेंटर चीन को अपने परमाणु हथियारों के डिजाइन को एडवांस करने में मदद करेगा, जिससे वह बिना किसी पारंपरिक परमाणु परीक्षण के अपने हथियारों को अधिक प्रभावी बना सकेगा। पारंपरिक परमाणु संयंत्रों की तुलना में फ्यूजन रिएक्टर अधिक सुरक्षित होते हैं। परमाणु नीति विशेषज्ञ विलियम अल्बरके ने कहा, "ऐसी किसी भी सुविधा का इस्तेमाल परमाणु हथियार डिजाइनों को अधिक परिष्कृत करने के लिए किया जा सकता है, वो भी बिना किसी खुले परीक्षण के।" यह चीन को परमाणु अप्रसार संधियों का पालन करते हुए अपनी परमाणु क्षमता को गुप्त रूप से मजबूत करने की अनुमति देगा।
ऊर्जा उत्पादन में बड़ी छलांग
इस परियोजना का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में चीन की अग्रणी भूमिका को मजबूत करना हो सकता है। न्यूक्लियर फ्यूजन को ऊर्जा उत्पादन का "पवित्र प्याला" (Holy Grail) माना जाता है, क्योंकि यह अनंत ऊर्जा स्रोत प्रदान कर सकता है, जिसमें न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव होगा। यदि यह रिसर्च सफल रहती है, तो चीन वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में एक प्रमुख खिलाड़ी बन सकता है।
भारत के लिए रणनीतिक चिंता
इस परियोजना का सबसे बड़ा प्रभाव क्षेत्रीय सुरक्षा पर पड़ेगा, विशेष रूप से भारत के लिए। चीन की परमाणु क्षमता तेजी से बढ़ रही है, जिसका प्रमाण जनवरी 2023 में 410 परमाणु हथियारों से बढ़कर जनवरी 2024 में 500 हथियारों तक पहुंचना है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो इस दशक के अंत तक चीन अमेरिका और रूस के अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) क्षमता के बराबर पहुंच सकता है।
इसके मुकाबले, भारत के पास अनुमानित 172 परमाणु हथियार हैं, जो पाकिस्तान के 170 से थोड़ा अधिक हैं, लेकिन चीन से काफी पीछे हैं। हालांकि, भारत ने अग्नि बैलिस्टिक मिसाइलों जैसी आधुनिक परमाणु डिलीवरी प्रणालियों पर ध्यान दिया है, लेकिन उसके कुल हथियार भंडार की वृद्धि धीमी रही है।
न्यूक्लियर पावर उत्पादन में भी चीन की बढ़त
चीन न केवल परमाणु हथियारों में बल्कि परमाणु ऊर्जा उत्पादन में भी भारत से आगे है। वर्तमान में भारत 23 परमाणु रिएक्टरों का संचालन कर रहा है, जो उसकी कुल बिजली आपूर्ति का लगभग 6% प्रदान करते हैं। इसके विपरीत, चीन के पास 55 सक्रिय रिएक्टर हैं और वह अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को तीव्र गति से बढ़ा रहा है। चीन ने तीसरी पीढ़ी के रिएक्टरों को व्यावसायिक रूप से संचालित करने में दुनिया में पहला स्थान हासिल किया है और अब वह चौथी पीढ़ी के शिदाओवान-1 जैसे एडवांस गैस-कूल्ड रिएक्टरों का संचालन कर रहा है।
भविष्य की रणनीतिक दिशा
विशेषज्ञों का मानना है कि मियानयांग में इस अत्याधुनिक न्यूक्लियर फ्यूजन अनुसंधान सुविधा के निर्माण से चीन की परमाणु और ऊर्जा क्षमताओं में व्यापक वृद्धि होगी। यह परियोजना चीन को सैन्य और ऊर्जा दोनों क्षेत्रों में एक बड़ी बढ़त दिला सकती है, जिससे भारत और चीन के बीच परमाणु क्षमता की खाई और अधिक चौड़ी हो सकती है।
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