यूक्रेन युद्ध में किम जोंग की एंट्री ने यूरोप से US तक की उड़ाई नींद, भारत के मित्र देश को क्यों टेंशन
NATO के महासचिव जनरल मार्क रूट ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में उत्तर कोरियाई सैनिकों की तैनाती और भागीदारी से एक तरफ हिन्द-प्रशांत महासागर तो दूसरी तरफ यूरोपीय-अटलांटिक क्षेत्र में सुरक्षा खतरों को बढ़ावा मिल सकता है।
यूक्रेन-रूस जंग में अब सनकी तानाशाह किम जोंग उन के शासनवाले उत्तर कोरिया के भी कूदने की खबर है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा है कि उत्तर कोरिया ने इस युद्ध में रूस की मदद करने के लिए करीब 10 हजार सैनिकों को भेजा है, जो यूक्रेन के मुंहाने पर खड़े हैं। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि उत्तर कोरियाई सैनिक यूक्रेन सीमा से कुछ ही मील की दूरी पर डटे हुए हैं। NATO प्रमुख ने जहां इस कदम को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में एक अहम मोड़ करार दिया है, वहीं अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने इस बात पर चिंता जताई है कि रूस इन सैनिकों का इस्तेमाल कुर्स्क क्षेत्र में कर सकता है, जहां यूक्रेनी सैनिकों ने अगस्त में भारी आक्रमण और कब्जा किया था।
NATO के महासचिव जनरल मार्क रूट ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में उत्तर कोरियाई सैनिकों की तैनाती और भागीदारी से एक तरफ हिन्द-प्रशांत महासागर तो दूसरी तरफ यूरोपीय-अटलांटिक क्षेत्र में सुरक्षा खतरों को बढ़ावा मिल सकता है और इससे क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता खड़ी हो सकती है। इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक बाऱ फिर से यूक्रेन के साथ खड़े रहने का आश्वासन दिया है और कहा है कि अगर उत्तरी कोरियाई सेना यूक्रेन की धरती पर कदम रखती है तो वोलोडिमीर जेलेंस्की सरकार को उसका मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए।
दो देशों की लड़ाई में पहली बार किसी देश की सेना की सीधी एंट्री
अगर उत्तर कोरियाई सैनिक यूक्रेन में प्रवेश करते हैं तो ऐसा पहली बार होगा, जब रूस-यूक्रेन जंग में किसी तीसरे देश का सीधे तौर पर हस्तक्षेप होगा। हालांकि, भाड़े के सैनिक दोनों ही तरफ से लड़ रहे हैं और कई देश दोनों ही तरफ से भारी मात्रा में हथियार उपलब्ध करा रहे हैं लेकिन सीधे तौर पर युद्ध में कूदने से अभी तक देश बचते रहे हैं। हालांकि, रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय ने अमेरिका और नाटो के इस दावे और आशंकाओं को खारिज किया है कि उत्तर कोरियाई सैनिक इस जंग में उसका साथ देने उतरे हैं। बता दें कि उत्तर कोरिया पिछले करीब तीन साल से रूस को सैन्य रूप से सहयोग करता रहा है। रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि करीब तीन साल के युद्ध में रूस के करीब 71000 सैनिक मारे जा चुके हैं, जबकि कुल हताहत रूसी सैनिकों की संख्या करीब 6.5 लाख है।
भारत के दूसरे मित्र देश को क्यों टेंशन
रूस भारत को घनिष्ठ मित्र है। इस युद्ध में उत्तर कोरिया के उतरने से जहां रूस पश्चिमी गठजोड़ के सामने मजबूत होगा, वहीं भारत का दूसरा मित्र देश जापान संकट में फंस सकता है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में व्याख्याता एडवर्ड हॉवेल के हवाले से अल जजीरा ने लिखा है कि उत्तर कोरिया के इस कदम से कोरियाई प्रायद्वीप और पूर्वी एशिया की राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर बुरा असर पड़ सकता है। हॉवेल के मुताबिक, यह घटनाक्रम तब हो रहा है, जब उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में तनाव गहराता जा रहा है। इसी महीने 15 अक्टूबर को कोरियाई प्रायद्वीप पर तनाव तब बढ़ गया, जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया को जोड़ने वाली सड़कों को डायनामाइट से विस्फोट कर उड़ा दिया था।
हॉवेल ने आशंका जताई कि उत्तर कोरिया द्वारा रूस का सैन्य साथ देने के बदले रूस उत्तर कोरिया को सैन्य तकनीक मुहैया करा सकता है, जिसकी बदौलत उत्तर कोरिया दक्षिण कोरिया के खिलाफ किसी भी उकसावे को अंजाम दे सकता है। ऐसी स्थिति में यह तनाव सिर्फ दक्षिण कोरिया तक ही सीमित नहीं रहकर पड़ोसी जापान को भी चपेट में ले सकता है क्योंकि जापान भी दक्षिण कोरिया की तरह अमेरिका का सहयोगी है। संयोग से जापा भारत का अहम मित्र देश है, जो उत्तर कोरिया के हालिया कदम से टेंशन में है। जापान और चीन के बीच भी इस क्षेत्र में टकराव होता रहा है। कुल मिलाकर देखें तो पूर्वी एशिया में वाशिंगटन के दो सहयोगियों दक्षिण कोरिया और जापान के लिए किम जोंग उन ने रूस का साथ देकर खतरे की घंटी बजा दी है।
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