Suicide Attempt and Publicly Defaming Husband Is Mental Cruelty Gujarat High Court बदनाम करने को बांटीं लापता वाला पोस्टर, सुसाइड की कोशिश; HC ने कहा- पत्नी को साथ रहने का हक नहीं, Gujarat Hindi News - Hindustan
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बदनाम करने को बांटीं लापता वाला पोस्टर, सुसाइड की कोशिश; HC ने कहा- पत्नी को साथ रहने का हक नहीं

गुजरात हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और अपीलीय न्यायालय के फैसलों के खिलाफ दायर एक पत्नी की याचिका खारिज कर दी। पत्नी ने अपनी याचिका में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की थी।

Subodh Kumar Mishra लाइव हिन्दुस्तान, अहमदाबादThu, 15 May 2025 03:03 PM
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बदनाम करने को बांटीं लापता वाला पोस्टर, सुसाइड की कोशिश; HC ने कहा- पत्नी को साथ रहने का हक नहीं

गुजरात हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और अपीलीय न्यायालय के फैसलों के खिलाफ दायर एक पत्नी की याचिका खारिज कर दी। पत्नी ने अपनी याचिका में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की थी।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात हाई कोर्ट ने पाया कि पत्नी द्वारा आत्महत्या का प्रयास और पति के लापता होने वाले पोस्टर बांटना, पति के खिलाफ किया गया बलपूर्वक व्यवहार के बराबर है। पत्नी ने आत्महत्या का प्रयास किया। उसने सार्वजनिक रूप से पोस्टर वितरित किए, जिसमें दावा किया गया कि पति लापता है। उसने पति के खिलाफ क्रूरता के कई आरोप भी लगाए। जस्टिस संजीव ठाकर की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिकाओं पर निर्णय लेते समय अदालतों को दोनों पक्षों के समग्र आचरण और वैवाहिक कलह से जुड़ी परिस्थितियों का मूल्यांकन करना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने आत्महत्या का प्रयास करने की बात स्वीकार की है, जो भावनात्मक रूप से दबाव बनाने के लिए किया गया कार्य है। कोर्ट ने कहा, "इसके अलावा, वैवाहिक अधिकारों की बहाली प्रदान करते समय न्यायालय को पति-पत्नी के आचरण को भी ध्यान में रखना होगा। साथ ही वैवाहिक अधिकारों की बहाली से इनकार करने के आधारों को भी ध्यान में रखना होगा। वर्तमान मामले में अपीलकर्ता ने स्वीकार किया है कि उसने आत्महत्या करने की कोशिश की थी। यह स्वाभाविक रूप से प्रतिवादी को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने और मानसिक रूप से परेशान करने के इरादे से किया गया बलपूर्वक व्यवहार है।

पत्नी ने निचली अदालतों के फैसलों को चुनौती दी थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि उसे उसके वैवाहिक अधिकारों और उसके वैवाहिक घर में प्रवेश से वंचित किया गया था। उसने यह भी कहा कि शादी के बाद पति के साथ रहने का अनुरोध करने के बाद जब उसने इनकार कर दिया तो उसे मजबूर होकर शिकायत दर्ज कराना पड़ा।

हालांकि, पति ने दलील दी कि आत्महत्या करने की उसकी कोशिश और पोस्टरों के जरिए उसकी सार्वजनिक बदनामी ने अब फिजिकल रिलेशन को असंभव बना दिया है। कोर्ट ने आगे कहा कि वैवाहिक रिश्ते में दोनों भागीदारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे असहमति के दौरान भी अपने रिश्ते को करुणा और समझदारी के साथ बनाए रखें।

कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह के व्यवहार का असर पीड़ित पति या पत्नी के मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्थिरता पर गहरा असर डालता है। साथ ही सार्वजनिक अपमान भी होता है, जैसा कि पति के पोस्टर छापने के वर्तमान मामले में देखा गया है। इस तरह के कृत्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इस तरह की धमकियां दबाव बनाने का साधन बन जाती हैं और प्रतिवादी को निरंतर चिंता में रहने के लिए मजबूर करती हैं। इस तरह का आचरण व्यक्तिगत संघर्ष की सीमाओं को पार करता है। पति के लिए शांतिपूर्ण और सम्मानजनक वैवाहिक जीवन जीना असंभव बना देता है।

कोर्ट ने इस बात को खारिज कर दिया कि पति ने अपनी पत्नी के आचरण को माफ कर दिया था। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि आत्महत्या के प्रयासों को लापरवाही से नहीं लिया जा सकता है या यह नहीं माना जा सकता है कि उन्हें माफ कर दिया गया है। इसके अलावा, आत्महत्या के प्रयासों की प्रकृति में क्रूरता ऐसी चीज है जिसके बारे में यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि इसे किसी भी तरह से माफ किया गया है। आत्महत्या के प्रयासों से उत्पन्न मानसिक क्रूरता को किसी अन्य कथित मानसिक क्रूरता के समान नहीं माना जा सकता है।

इन सभी चीजों को एक साथ लिया जाए तो यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि पति के पास पत्नी से अलग होने का उचित कारण था, जैसा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत प्रावधान किया गया है। हाई कोर्ट ने निचली अदालतों के निष्कर्षों से सहमति जताते हुए माना कि पत्नी की अपील में कानून का कोई महत्वपूर्ण सवाल नहीं उठाया गया था। कोर्ट ने पत्नी की याचिका खारिज कर दिया।

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