मरे हुए लोगों को 'जिंदा' कर रहा चीन, मौत के बाद भी हो रहीं अपनों से बातें
पड़ोसी देश चीन में एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है और लोग मरे हुए लोगों से AI के जरिए बातें कर रहे हैं और उनके डिजिटल अवतार तैयार कर रहे हैं। इस तरह के डिजिटल अवतार्स का मार्केट तेजी से बढ़ रहा है।
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कई तरीकों से हो रहा है लेकिन पड़ोसी देश चीन ने मरे हुए लोगों से बात करने के लिए AI का जरिया बनाया है। सुनकर बेशक थोड़ा अजीब लगे लेकिन यह सच है कि AI मरे हुए लोगों को जिंदा कर रहा है और यह ट्रेंड चीन में खासा जोर पकड़ रहा है। यहां मनाए जाने वाले पारंपरिक टोंब-स्वीपिंग फेस्टिवल के दौरान ढेरों लोग ऐसा कर रहे हैं।
समाचार एजेंसी The Guardian ने बताया है कि किस तरह चीन में मरे हुए लोगों के डिजिटल अवतार तैयार करवाए जा रहे हैं। इस तरह किसी की मौत के बाद भी उससे बातें की जा सकती हैं। चीन में टोंब-स्वीपिंग फेस्टिवल के दौरान मरे हुए लोगों को याद किया जाता है और परिवार के लोग और दोस्त उनकी कब्र पर जाकर सेलिब्रेट करते हैं। इस मौके पर लोग अब मृत परिजनों के अवतार तैयार करवा रहे हैं।
पहचान और आवाज का होता है इस्तेमाल
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस तरह की कोशिशों और टूल्स इस्तेमाल करने में महज 20 युआन (करीब 235 रुपये) का शुरुआती खर्च आता है। AI टेक्नोलॉजी पर आधारित टूल्स मृत इंसान की पहचान, फोटोज, वीडियोज और ऑडियो रिकॉर्डिंग इस्तेमाल करते हुए उसका डिजिटल अवतार तैयार कर देते हैं। इस तरह ना सिर्फ चेहरा और हाव-भाव देखे जा सकते हैं बल्कि वह अवतार अपनी आवाज में बात भी करता है।
बढ़ रहा है डिजिटल अवतारों का मार्केट
चीन में डिजिटल क्लोन्स में लोगों की रुचि बढ़ने के साथ ही इसका मार्केट भी तेजी से बढ़ रहा है। इसके अलावा इंसानों जैसे अवतार तैयार करने वाली टेक्नोलॉजी भी कहीं बेहतर हुई है। सामने आया था कि साल 2022 में चीन में डिजिटल ह्यूमन्स की मार्केट वैल्यू करीब 12 अरब युआन (भारतीय मुद्रा में करीब 13,842 करोड़ रुपये) थी और साल 2025 तक इसमें चार गुना तक बढ़त देखने को मिल सकती है।
AI टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल यूजर्स के डिजिटल अवतार बनाने के लिए करने को लेकर कई तरह के सवाल और विवाद भी सामने आए हैं। ढेरों एक्सपर्ट्स ने इसे अनैतिक और गलत बताया है, वहीं बाकी इसे अपनों से जुड़े रहने का अच्छा तरीका मान रहे हैं और कुछ का मानना है कि यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर हो सकता है।
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