दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा, आप और कांग्रेस तीनों पूरी ताकत से लगी हुई हैं। मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच है, जबकि कांग्रेस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटी है। "आप" मुफ्त बिजली-पानी जैसी योजनाओं पर भरोसा कर रही है, वहीं बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्र की योजनाओं के सहारे मैदान में उतरी है। कांग्रेस मतदाताओं को शीला दीक्षित के शासनकाल में हुए विकास कार्यों की याद दिला रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कुछ सीटें, जिनपर सबकी नजरें होंगी उनमें नई दिल्ली और कालकाजी प्रमुख हैं। नई दिल्ली में पर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी ने प्रवेश वर्मा और कांग्रेस ने संदीप दीक्षित को खड़ा किया है, जबकि कालकाजी में आप की आतिशी का मुकाबला बीजेपी के रमेश बिधूड़ी और कांग्रेस की अलका लांबा से है। मतदान के बाद एग्जिट पोल्स 5 फरवरी को शाम छह बजे से आने शुरू हों जाएंगे, जो राजनीतिक रुझानों का संकेत देंगे। 8 फरवरी के नतीजे दिल्ली के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीति के समीकरणों को भी प्रभावित करेंगे।और पढ़ें
कांग्रेस ने 2018 में तीनों ही राज्यों से भाजपा को बेदखल कर दिया था। हालांकि एक साल से कुछ ज्यादा वक्त तक ही वह मध्य प्रदेश में सरकार बरकरार रख सकी थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते कांग्रेस की सरकार ही गिर गई थी और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा वापस लौट आई थी। अब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए उतर रही है। वहीं राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसकी कोशिश सरकार को बदलने की होगी। राजस्थान विधानसभा चुनाव का आमतौर पर रिवाज रहा है कि हर 5 साल में सरकार बदल जाती है। इस बार कांग्रेस रिवाज ही बदलने को मैदान में उतरेगी, जबकि भाजपा हर बार की तरह राज बदलना चाहेगी। अब बात तेलंगाना विधानसभा चुनाव की करें तो वहां मुकाबला त्रिकोणीय होगा। पहली बार के. चंद्रशेखर राव की पार्टी बदले हुए नाम भारत राष्ट्र समिति के तौर पर उतरेगी। वहीं कांग्रेस भी इस राज्य में मजबूत है, जबकि भाजपा ने भी कई जिलों में मजबूत पकड़ बना रखी है। यहां असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी एक फैक्टर है। दरअसल कर्नाटक में हार के बाद से भाजपा दक्षिण भारत से बेदखल है। ऐसे में तेलंगाना में शानदार प्रदर्शन करके वह दक्षिण भारत में अपनी ताकत दिखाना चाहेगी।और पढ़ें