रातों रात हुए शिफ्ट, अंग्रेजों की हवाई पट्टी पर लगी ड्यूटी
रातों रात हुए शिफ्ट, अंग्रेजों की हवाई पट्टी पर लगी ड्यूटी रातों रात हुए शिफ्ट, अंग्रेजों की हवाई पट्टी पर लगी ड्यूटीरातों रात हुए शिफ्ट, अंग्रेजों की

कटिहार, वरीय संवाददाता 1965 और 1971 के युद्ध में शामिल कटिहार के मनतोष मित्रा 80 की दहलीज पर है। मगर अभी भी वे खुद को फिट मानते है और कहते है कि सिपाही युद्ध के लिए हमेशा तैयार है। उन्होंने कहा कि सरकार के द्वारा कराया गया मॉक ड्रिल को अभ्यास में लाने की जरूरत है। इस दौरान प्रशासन ही नहीं हरेक देशवासियों का कर्त्तव्य है कि वे मॉक ड्रिल के दौरान बिजली बंद रखे। एक की लापरवाही सबों पर भारी पड़ सकती है। अपने 1965 के युद्ध को याद करते हुए मनतोष मित्रा बताते है कि एयरफोर्स उन्हें लद्दाख में ड्यूटी दी गयी है।
इस दौरान शाम होते ही ब्लैक आउट हो जाता था। जो भी काम करना होता था वह टॉर्च की काफी कम रोशनी में होती थी। उस समय के सिविलियन भी ब्लैक आउट से लेकर सिपाहियों की मदद किया करते थे। हालांकि 17 दिन ही यह युद्ध चला था। मगर उसके बाद भी मैं 12 माह के करीब वहां पर रहा और एक बेहतर अनुभव अपने साथ लेकर आया। रातों-रात यूपी के एक एयरपट्टी पर लगी ड्यूटी 1971 में 13 दिन चली युद्ध चली। युद्ध के शुरू होने से दो दिन पहले ही अचानक से एयरफोर्स ने रातों-रात यूपी के एक ऐसी जगह पर ड्यूटी लगा दी। जहां पर अंग्रेज जमाने का हवाई पट्टी थी। हमारा काम सेना के हवाई जहाज में गोला-बारुद से लेकर राशन तक को सही से भरना होता था। ताकि युद्ध में शामिल जवानों तक सही से राशन पहुंच जाए। उन्होंने कहा कि युद्ध की समाप्ति के बाद पाकिस्तान के कुछ बंदी सिपाही और उनके परिवार वालों को कुछ दिनों के लिए वहां पर रखा गया था। फिर वहां से उन्हें पाकिस्तान शिफ्ट कर दिया गया था। प्रिजन ऑफ वार का लगा था सिंबल 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को भारत सरकार ने पूरे इज्जत के साथ जगह-जगह रखा था। वहां से उन्हें धीरे-धीरे पाकिस्तान भेज रहे थे। इस दौरान उनके पीठ पर क्रास का साइन था। जिस पर लिखा हुआ था पीओडब्ल्यू (प्रिजन ऑफ वार)। यानि यह बंदी युद्ध के दौरान की पहचान थी।
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