बोले कटिहार: लोन के साथ स्थायी जगह मिले तो रोजगार हो आसान
कुम्हारों की मेहनत अब केवल कुछ पैसों में सिमट गई है। मिट्टी के बर्तनों की मांग घट रही है, और आधुनिक उपकरणों ने उनकी जगह ले ली है। कुम्हारों की आजीविका संकट में है, और बढ़ती मिट्टी की कीमतें उनके लिए...
कुम्हारों की पीड़ा प्रस्तुति: मोना कश्यप फ्रिज की ठंडक में घुली मिट्टी के बर्तनों की पहचान मिट्टी के बर्तन सिर्फ बर्तन नहीं, एक संस्कृति, एक परंपरा, और मेहनत से जुड़ी जिंदगियों की कहानी हैं। कभी हर घर की रसोई और आंगन में जगह पाने वाले ये बर्तन आज बाजार की भीड़ में गुम हो रहे हैं। फ्रीज और वाटर कूलर ने उनकी जगह ले ली, और कुम्हारों की मेहनत अब केवल कुछ पैसों में सिमट गई है। बढ़ती मिट्टी की कीमतें, सस्ते दर पर दुकान की कमी और घटती मांग ने उनके परिवार की दाल-रोटी तक को मुश्किल कर दिया है।
यह पुश्तैनी कला कहीं खो न जाए, यही उनकी सबसे बड़ी चिंता है। मिट्टी के बर्तनों का इतिहास सदियों पुराना है। इनका उपयोग न केवल भोजन पकाने और पानी ठंडा करने के लिए होता था, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों और सांस्कृतिक समारोहों में भी इनका अहम स्थान था। पुराने समय में हर घर में मिट्टी के घड़े और सुराही मिलते थे, जो गर्मियों में ठंडे पानी का एकमात्र साधन थे। लेकिन बदलते वक्त और आधुनिकता की चकाचौंध ने इनकी जगह फ्रीज और वाटर कूलर जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को दे दी है। कुम्हारों की आजीविका संकट में कटिहार के न्यू मार्केट, चालीसा हाट जैसे इलाकों में मिट्टी के बर्तन बेचने वाले कुम्हार आज भी इस पुश्तैनी काम को जिंदा रखे हुए हैं, लेकिन बदलते दौर और घटती मांग के चलते उनकी आजीविका संकट में है। गुलाब पंडित, जो पिछले कई दशकों से मिट्टी के बर्तन बेच रहे हैं, बताते हैं कि गर्मी के दिनों में कुछ बिक्री हो जाती है, लेकिन बाकी समय मुश्किल से 200-300 रुपये की कमाई हो पाती है। इतने से न घर चलता है और न ही बच्चों की पढ़ाई। सस्ते दर पर दुकान की कमी और बढ़ती लागत उनके लिए बड़ी समस्याएं हैं। संजय कुमार पंडित कहते हैं कि सड़क किनारे दुकान लगाना अब जोखिम भरा है। नगर निगम के अतिक्रमण अभियान और टूट-फूट की चिंता हमेशा रहती है। दो-चार बर्तन टूट जाएं तो पूरे दिन की कमाई चली जाती है।" मिट्टी की बढ़ती कीमतें बनी चिंता का विषय इसके अलावा, मिट्टी की बढ़ती कीमतें भी उनके लिए चिंता का विषय हैं। एक टेलर मिट्टी की कीमत 4-5 हजार रुपये तक पहुंच गई है, जो उनकी मुनाफे को बुरी तरह प्रभावित करती है। दुकानदारों का कहना है कि यदि नगर निगम सस्ते दर पर दुकान लगाने की जगह दे और मिट्टी के बढ़ते दामों पर रोक लगे, तो उनकी आजीविका बच सकती है। पहले जैसा अब कमाई नहीं लाली देवी, जो बचपन से इस काम में हैं, कहती हैं कि इस काम में अब पहले जैसी कमाई नहीं रही। जितनी पूंजी लगाते हैं, उसकी तुलना में मुनाफा बहुत कम होता है। मुश्किल से दाल-रोटी चल रही है। कुमारो की मांग सस्ते दर पर हो दुकान उपलब्ध कुम्हारों की मांग है कि उन्हें सस्ते दर पर दुकान लगाने की जगह मिले और सरकार उनकी सहायता के लिए विशेष योजनाएं लाए। वरना आने वाले समय में यह पारंपरिक कला केवल इतिहास के पन्नों तक सिमट जाएगी। 70 हजार से अधिक कुम्हारों के परिवार है जिले में 05 सौ के करीब मिट्टी के कलाकार बसते हैं निगम क्षेत्र में 200-300 रुपए तक आमदनी हो पाती है एक दिन में सुझाव 1. नगर निगम को सरकार निर्देशित करे कि दुकानों को न हटाया जाए। 2. मिट्टी के बर्तन बेचने वालों को भी कारोबार के लिए मिले स्थाई जगह 3. सरकार मिट्टी बर्तन कारीगरों को प्रशिक्षण देकर नवाचार को बढ़ावा दे 4. बैंक से आसान शर्तों पर मिले लोन की सुविधा तो आगे बढ़ सके कारोबार शिकायतें 1. मिट्टी के बर्तनों की बिक्री न होने से पूंजी फंसी रहती है, नुकसान होता है। 2. सड़क किनारे दुकान लगाने पर अक्सर नगर निगम की टीम हटा देती है। 3. बैंक से लोन या सरकारी मदद नहीं मिलती, जिससे कारोबार को नया स्वरूप नहीं दे पाते। 4. ग्राहक काफी मोल-भाव करते हैं, जबकि यही सामान मॉल में महंगे दाम पर बिकते हैं। इनकी भी सुनें इस काम में अब पहले जैसी आमदनी नहीं रही। जितनी पूंजी लगाती है उसकी तुलना में कमाई बेहद कम होती है। मुश्किल से दाल-रोटी चल रही है। हालात बेहद खराब हैं लेकिन उसी में खुश रहने का प्रयास करते हैं। अब गर्मियों में भी मिट्टी के बर्तन के कम ही खरीदार मिलते हैं। फोटो 01 संजय कुमार पंडित पूरा जीवन इसी काम में लगा दिया है। हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है। सरकार का हम जैसे लोगों पर कोई ध्यान नहीं है। हमारे लिए भी योजनाएं आनी चाहिए ताकि ये काम चलता रहे वरना आने वाले दिनों में ये कारोबार समाप्त हो जाएगा फोटो 02 केदार पंडित ये कारोबार सड़क के किनारे ही चल सकता है। हम लोगों के पास इतनी पूंजी नहीं कि दुकान ले सकें। किराये के दुकान में सामान बेचने पर इसका खर्च बढ़ जाएगा। यहां लोग मिट्टी के नाम पर बर्तन की कीमत नहीं देना चाहते हैं। दुकान में जाने पर तो ये बिक्री और भी कम हो जाएगी। फोटो 03 गुलाब पंडित एक दैनिक मजदूर भी रोजाना 400-500 रुपये कमा लेता है लेकिन हम लोगों के लिए उसपर भी आफत है। गर्मी के समय तो काम चलता है लेकिन बाकी दिनों में बेहद कठिनाई होती है। अगर आमदनी का कोई और रास्ता नहीं है तो भरन-पोषण तक की समस्या से जूझना पड़ता है। फोटो 04 श्याम सुंदर पंडित आज बड़े-बड़े मॉल और दुकानों समेत ऑनलाइन माध्यम से मिट्टी के बर्तन बिक रहे हैं, लेकिन ये आर्थिक रूप से संपन्न लोग ही खरीद सकते हैं। आम लोगों के लिए हम जैसे दुकानदारों की जरूरत है लेकिन पूंजी की कमी होने के कारण ये काम सिमटता जा रहा है। फोटो 05 मानती देवी आर्थिक तंगी के कारण बच्चों को भी पढ़ा-लिखा नहीं सके। नई पीढ़ी इस काम में नहीं आना चाहती है। सभी दूसरे क्षेत्र में निजी काम की तरफ भाग रहे हैं। इतनी आमदनी नहीं होती है कि खर्च के अलावा कुछ भी बचत हो सके। हर समय भविष्य की चिंता सताती रहती है फोटो 06 फकीर पंडित गर्मियों के मौसम में 3-4 महीने पानी रखने के लिए मिट्टी के घड़े, सुराही, जग आदि की खरीदारी करने वाले ग्राहकों की तादाद बढ़ जाती है। इस समय ठीक-ठाक कमाई होती है लेकिन बाकी के समय काफी कम मुनाफे पर सामान बेचना पड़ता है फोटो 07 सिकंदर पंडित गर्मियों के अलावा दशहरा, दीपावली जैसे त्योहारी सीजन में लोग कलश, दीये आदि खरीदते हैं। शादी-विवाह समेत अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए मिट्टी के बर्तन खरीदे जाते हैं। इससे किसी तरह भरन पोषण चलता है। फोटो 08 सुकदेव पंडित यह हमारा पुश्तैनी काम है। इस कारोबार में हमारी तीसरी पीढ़ी चल रही है। पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाना चाहते हैं लेकिन आमदनी कम होने से चिंता होती है। इसके अलावा कमाई के दूसरे विकल्प की भी तलाश करेंग ताकि गुजारा से हो सके। फोटो 09 सुमन पंडित गर्मी के सीजन में मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ने से कमाई बढ़ती है लेकिन ये ज्यादा दिनों तक नहीं चलता है। बाकी दिनों में आमदनी काफी कम होती है। बाजार में ग्राहक कम हैं। ऊपर से कंपटीशन का बाजार है। मजबूरन कम दाम में भी सामान बेचना पड़ता है। फोटो 10 सुजीत पंडित कम आमदनी के कारण मिट्टी के बर्तन बेचने वाले दुकानदारों को पूंजी की कमी हो जाती है। सरकार ऐसे दुकानदारों के लिए भी कुछ करे। उन्हें बैंक से लोन आदि की सुविधा मिले ताकी उनका जीवन चल सके। फोटो 11 रवीश पंडित सरकार का हम जैसे सड़क किनारे मिट्टी के बर्तन बेचने वाले लोगों पर कोई ध्यान नहीं है। इस काम में पूंजीपति लोग उतर चुके हैं। हमारे लिए भी सरकारी योजनाएं आनी चाहिए ताकि ये काम चलता रहे। हमलोगों का काम खत्म होने के कागार पर है। फोटो 12 पार्वती देवी दूसरे फुटपाथी दुकानदारों की तरह मिट्टी के बर्चन बेचने वाले दुकानदारों को भी सरकार स्थायी जगह दे। इससे सड़क किनारे दुकान लगाने की परेशानी से मुक्ति के साथ उन्हें सुरक्षित कारोबार करने में आसानी होगी। फोटो 13 राखी पाल मिट्टी के बर्तन शहरी क्षेत्र में कम ही मिल पाते हैं। ये ज्यादातर ग्रामीण इलाके से आते हैं। ये पूरा काम नकदी होता है जबकि दुकानदारों को बिक्री के बाद ही पैसे मिलते हैं। ऐसे में पूंजी की कमी हो जाती है। फोटो 14 रानी देवी पूंजी के अभाव में हमलोगों को काफी परेशानी होती है। इसके लिए सरकार ऐसी व्यवस्था करे कि बैंक से आसान शर्तों पर लोन की सुविधा मिल सके। इससे हमलोगों को कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी। फोटो 15 सत्यवती देवी मिट्टी के बर्तन बेचने वालों के लिए भी सरकारी स्तर पर कोई योजना होनी चाहिए। सरकारी सहयोग के अभाव में मिट्टी के बर्तन का कारोबार सिमटता जा रहा है। इस काम में पूंजी काफी फंस जाता है फोटो 16 सिया मौसमात इस काम से अब गुजारा बेहद मुश्किल हो गया है। मिट्टी के बर्तन के कारोबार में जितनी मेहनत है उसकी तुलना में मुनाफे का प्रतिशत काफी कम है। अब गर्मियों में भी मिट्टी के बर्तन के खरीदार नहीं मिलते हैं। फोटो 17 बिजली देवी मिट्टी के बर्तनों के निर्माण को सरकारी तौर पर प्रोत्साहन मिलेने की जरूरत है। मिट्टी की आसानी से उपलब्धता होने से बर्तनों की लागत में कमी आएगी। इससे बर्तन बेचने वालों को सस्ता माल उपलब्ध हो सकेगा फोटो 18 अनीता देवी निगम की ओर से अतिक्रमण हटाओ अभियान से परेशानी होती है। मिट्टी का सामान टूटने-फूटने वाला होता है। ऐसे में इसे हटाने और सजाने में काफी परेशानी होती है। सामान का नुकसान हो जाता है। फोटो 19 संजुला देवी जिले के कई कुम्हार को इलेक्ट्रिक चाक तो मिला है लेकिन बिजली के दर से हम लोग परेशान हैं। सस्ते दर पर बिजली मुहैया कराए या महीने का 500 यूनिट बिजली मुफ्त में सरकार दे। तब कारोबार हमलोगों का बढ़ेगा फोटो 20 लाली देवी बोले जिम्मेदार कुम्हार समाज के लिए उद्योग विभाग दो योजनाओं का संचालन कर रहा है। विश्वकर्मा योजना, बिहार लघु उद्यमी योजना के माध्यम से मिट्टी के बर्तन निर्माता वर्ग के लोगों को लाभ दिया जा रहा है। योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। विश्वकर्मा योजना की ट्रेनिंग और लोन दोनों की सुविधा दी जाती है। बिहार लघु उद्यमी योजना के तहत सस्ते दर पर लोन के साथ सब्सिडी भी दी जाती है। पात्र कुम्हारों को मुफ्त में इलेक्ट्रिक चाक दी जाती है। फोटो -24- डॉ सोनाली शीतल, महाप्रबंधक, जिला उद्योग केन्द्र, कटिहार ---------------- फोटो 21 ग्रुप -अपनी परेशानी और पीड़ा बयान करते कुम्हार फोटो 22 -मिट्टी के बर्तन की सजी दुकानें फोटो 23 -ग्राहक के आस में बैठी महिला दुकानदार दुकानदार
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।