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मकर संक्रांति 14 जनवरी को, 8 घंटे 43 मिनट का रहेगा पुण्यकाल

  • सूर्यदेव 14 जनवरी मंगलवार को मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसी दिन मकर संक्रांति पर्व मनाया जाएगा और प्रयागराज के विश्व प्रसिद्ध कुम्भ स्नान का पुण्य क्रम शुरु हो जाएगा। इस बार मकर संक्रांति की तिथि को लेकर असमंजस की स्थिति नहीं है।

Yogesh Joshi लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीThu, 9 Jan 2025 07:12 PM
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Makar Sankranti 2025 : सूर्यदेव 14 जनवरी मंगलवार को मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसी दिन मकर संक्रांति पर्व मनाया जाएगा और प्रयागराज के विश्व प्रसिद्ध कुम्भ स्नान का पुण्य क्रम शुरु हो जाएगा। इस बार मकर संक्रांति की तिथि को लेकर असमंजस की स्थिति नहीं है। ज्योतिष विशेषज्ञ पं उमेश शास्त्री दैवज्ञ के अनुसार पीले वस्त्र पहने सूर्यदेव शेर पर सवार होकर दक्षिणायन से उत्तरायण होंगे। यह दिन न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशेष माना जाता है। इस दिन सूर्य उपासना के साथ त्रिवेणी संगम और गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति पर खरमास की भी समाप्ति हो जाएगी और फिर से शुभ और मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे। मकर संक्रांति पर क्षेत्र के मंदिरों सहित प्रयागराज के संगम की रेती में विशेष आयोजन होंगे, जिसकी तैयारियां पूरी हो रही हैं।

ज्योतिष विशेषज्ञ पं उमेश शास्त्री दैवज्ञ ने बताया कि सूर्यदेव का धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश सुबह 8.54 बजे पुष्य नक्षत्र में होगा। इसके साथ ही खरमास के कारण रुके हुए विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत संस्कार जैसे मांगलिक व शुभ कार्य पुनःशुरु हो जाएंगे। इस दिन कुम्भ स्नान,दान या धार्मिक कार्यों का सौ गुना फल मिलता है। मकर संक्रांति का पुण्य काल सुबह 9:03 से शाम 5:47 बजे तक रहेगा। इसका कुल समय 8 घंटे 43 मिनट रहेगा। वहीं महापुण्य काल में सुबह 9:03 से 10:50 बजे तक श्रेष्ठ समय रहेगा। इसकी कुल अवधि एक घंटा 47 मिनट होगी। दान-पुण्य पूरे दिन किया जा सकेगा।

लोहड़ी 13 जनवरी को

इस बार पौष पूर्णिमा के दिन मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर 13 जनवरी सोमवार को लोहड़ी पर्व मनाया जाएगा। इसी के साथ इस साल प्रयागराज में महाकुम्भ माघ स्नान की शुरूआत भी होगी। पारंपरिक तौर पर लोहड़ी का पर्व फसल की बुवाई और कटाई से जुड़ा हुआ है और इसे लोग संध्या के समय अग्नि के चारों तरफ परिक्रमा कर मनाते हैं। लोहड़ी की अग्नि में गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक आदि डालने के बाद इन्हें अपने परिवार एवं रिश्तेदारों के साथ बांटने की परंपरा प्राचीन है।

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