2025 में मेष राशि पर शुरू होगी शनि की साढ़ेसाती, जानें इसका प्रभाव
- शनि के राशि परिवर्तन को ज्योतिष में बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। शनिदेव 2025 में राशि परिवर्तन करेंगे। शनिदेव के राशि परिवर्तन करने से मेष राशि पर शनि की साढ़ेसाती शुरू हो जाएगी।
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Shani Sade Sati : ज्योतिषशास्त्र में शनिदेव को विशेष स्थान प्राप्त है। शनि को पापी और क्रूर ग्रह कहा जाता है। शनि के राशि परिवर्तन को ज्योतिष में बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। शनिदेव 2025 में राशि परिवर्तन करेंगे। शनिदेव के राशि परिवर्तन करने से मेष राशि पर शनि की साढ़ेसाती शुरू हो जाएगी। शनि ढाई साल में एक बार राशि परिवर्तन करते हैं। मेष राशि पर 2032 तक शनि की साढ़ेसाती रहेगी। 2032 में शनि के राशि परिवर्तन करते ही मेष राशि वालों को साढ़ेसाती से मुक्ति मिल जाएगी। शनि के राशि परिवर्तन से किसी राशि पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या शुरू हो जाती है तो किसी राशि से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव खत्म हो जाता है। शनि की साढ़ेसाती की वजह से व्यक्ति का जीवन प्रभावित हो जाता है। व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आइए जानते हैं, शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव-
धन का खर्च बढ़ सकता है।
स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
मानसिक, शारीरिक, और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
कार्यों में रुकावटें आती हैं।
नौकरी में अड़चनें आ सकती हैं।
व्यापार में हानि हो सकती है।
शारीरिक कमज़ोरी, थकान, आलस्य, और रोगों का प्रकोप झेलना पड़ सकता है।
शनि की साढ़ेसाती से बचने के लिए रोजाना ये उपाय करें-
शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति के लिए दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ जरूर करें। दशरथ कृत शनि स्तोत्र की रचना भगवान श्री राम के पिताजी राजा दशरथ ने की थी। दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है। आगे पढ़ें दशरथ कृत शनि स्तोत्र....
दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।
सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥
याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।
एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥
प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।
पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥
दशरथकृत शनि स्तोत्र:
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥
दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।
अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥
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