पारिवारिक संपत्ति विवाद में बनारस की अदालत ने दी बांग्लादेशी रूलिंग की नजीर
छोटी अदालतों में अक्सर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को नजीर के रूप में पेश किया जाता है, लेकिन बनारस की कोर्ट में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। सिटी मजिस्ट्रेट ने एक आदेश में इलाहाबाद...
छोटी अदालतों में अक्सर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को नजीर के रूप में पेश किया जाता है, लेकिन बनारस की कोर्ट में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है। सिटी मजिस्ट्रेट ने एक आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जिस फैसले को दर्शाया है, वह दरअसल बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट का है। इस फैसले के खिलाफ जिजा जज की अदालत में निगरानी याचिका दाखिल हुई है, जिसपर तीन अक्तूबर को सुनवाई होनी है।
घसियारी टोला (आदमपुर) निवासी नारायणदत्त त्रिपाठी ने जिला जज की कोर्ट में निगरानी याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि संयुक्त परिवार में संपत्ति पर कब्जे पर नगर मजिस्ट्रेट ने अपने क्षेत्राधिकार के बाहर जाकर वाद का निस्तारण किया है, जबकि यह प्रकरण पहले से दीवानी न्यायालय में लंबित है। पीड़ित ने आरोप लगाया है कि सिटी मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में धारा 145 के तहत पुलिस की आख्या के आधार पर मामले का निस्तारण कर दिया है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की विधि व्यवस्था को दर्शाया गया है। साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का हवाला दिया गया है। नारायणदत्त त्रिपाठी के अनुसार सिटी मजिस्ट्रेट ने जिस फैसले का हवाला दिया है, वह इलाहाबाद हाईकोर्ट का नहीं बल्कि बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट का है।
यह है मामला
घसियारी टोला (आदमपुर) निवासी नारायणदत्त त्रिपाठी का संयुक्त परिवार है। इसका बंटवारा करने के लिए भतीजे पंकज त्रिपाठी ने एडीजे कोर्ट में केस किया। साथ ही सिटी मजिस्ट्रेट के यहां भी संपत्ति में हिस्सा अलग करके कब्जा कराने की अर्जी दाखिल की। इसी मामले में सिटी मजिस्ट्रेट ने फैसला दिया है।
क्या कहते हैं वादी के अधिवक्ता
सेंट्रल बार के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राम अवतार पांडेय का कहना है कि पारिवारिक विवाद से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट ने कई फैसले दिये हैं। इसके बावजूद सिटी मजिस्ट्रेट ने बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाकर पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे का आदेश दिया है। यह पूरी तरह से गलत है और जिला जज की कोर्ट में इसका जवाब देना होगा। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में साफ कहा है कि संयुक्त परिवार में यदि संपत्ति के बंटवारे का मामला है तो वह दो बराबर की अदालतों में नहीं चल सकता।
यह है नजीर
अधिवक्ता डॉ. राम अवतार पांडेय के अनुसार बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने किसी मामले में कहा है कि धारा 145 व 144 में अगर पीड़ित आदेश से संतुष्ट नहीं है तो दीवानी न्यायालय में आदेश को चुनौती दे सकता है लेकिन यह आदेश भी पारिवारिक संपत्ति को लेकर नहीं है। उक्त मामले में यही नजीर दिया गया है।
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