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Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Mulayam Singh Yadav Death Anniversary Netaji was an expert creating equations politics used defeat his opponents with help Charkha wager

राजनीति का समीकरण रचने में माहिर थे मुलायम सिंह यादव, चरखा दांव से विरोधियों को देते थे पटकनी

समाजवादी पार्टी के संरक्षक और पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव भले अब इस दुनिया में न हों, लेकिन उनके राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन को हमेशा याद रखा जाएगा।

Dinesh Rathour लाइव हिंदुस्तान, लखनऊMon, 9 Oct 2023 11:29 AM
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Mulayam Singh Yadav Death Anniversary: समाजवादी पार्टी के संरक्षक और पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव भले अब इस दुनिया में न हों, लेकिन उनके राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन को हमेशा याद रखा जाएगा। मुलायम एक ऐसी शख्सियत थे जिनके दांव-पेच को राजनीति में आज भी लोग फॉलो करते हैं। अखाड़ा छोड़कर राजनीति में आए मुलायम सिंह यादव का चरखा दांव बहुत मशहूर था। इतना ही नहीं मुलायम के कई ऐसे किस्से हैं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। मुलायम सिंह यादव की 10 अक्टूबर को पहली पुण्यतिथि मनाई जाएगी। मुलायम की पुण्यतिथि पर पूरे प्रदेश में कार्यक्रम होंगे। जगह-जगह श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित की जाएंगी। मुलायम की पहली पुण्यतिथि पर हम आपको उनके कई ऐसे किस्से बताएंगे जिनके लिए वह जाने जाते रहे हैं।

मुलायम के आगे फीके पड़ जाते थे राजनीति के सभी दांव

आजाद भारत में उत्तर प्रदेश की राजनीति ने जिस मोड़ से अपना रास्ता बदला मुलायम सिंह यादव हमें वहीं खड़े दिखाई देते हैं। वे पिछड़े वर्गों की आकांक्षाओं के प्रतीक बने, साथ ही मुलायम सिंह को राजनीति का एक ऐसा समीकरण रचने का श्रेय भी जाता है, जिसके आगे पुराने सारे समीकरण फीके पड़ गए। इसमें चाहे जनता पार्टी को तोड़ना हो या सरकार बनाने के लिए बहुजन समाज पार्टी को साथ जोड़ना हो। अखाड़े की मिट्टी में बड़े हुए मुलायम सिंह ने अपने पसंदीदा ‘चरखा’ दांव का राजनीति में भी खूब इस्तेमाल किया।  

क्या है चरखा दांव, जिसके लिए मशहूर रहे मुलायम

लोगों के लिए हमेशा से नेताजी रहे मुलायम सिंह यादव पहलवानी में भी माहिर थे। जानकार बताते हैं कि चरखा दांव में कोई भी पहलवान अपने विपक्षी की गर्दन और पैर, दोनों एक ही वक्त में काबू में कर लेता है, इसके बाद एक हाथ से गर्दन को उल्टा दबाया जाता, जबकि दूसरे हाथ से पैर गर्दन की तरफ खींचे जाते हैं। इससे विपक्षी पहलवान सूत कातने वाले चरखे के बड़े पहिए जैसा गोल हो जाता है। फिर पहलवान चरखे की पोजिशन में विपक्षी को लॉक कर लेता है। इसके बाद उसे हार माननी पड़ जाती है। मुलायम सिंह यादव भी पहलवानी के दिनों में भी इसी दांव के लिए फेमस थे। मुलायम जब राजनीति में आए तो भी इस दांव के जरिए बड़े से बड़े शूरमाओं को चित कर दिया।

बचपन से मुलायम सिंह का एक शौक था पहलवानी

कुश्ती के अखाड़े में नाटे कद के मुलायम सिंह की खासियत यह थी कि वे अपने से बड़े पहलवानों को आसानी से चित कर देते थे। सैफई के पास ही करहल में एक दिन कुश्ती का उनका मुकाबला इलाके के बड़े पहलवान सरयूदीन त्रिपाठी से हुआ। सरयूदीन कद में उनसे काफी लंबे थे, लेकिन मुलायम ने उन्हें भी चित कर दिया। प्रतियोगिता के दौरान वहां जसवंत नगर के विधायक नत्थू सिंह भी मौजूद थे। कुश्ती के बाद नत्थू सिंह मुलायम से मिले और उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। अब वे ‘संयुक्त समाजवादी पार्टी’ के कार्यक्रमों में सक्रिय हो चुके थे। कहा जाता है कि पहलवानी के दौर में अखाड़े के अंदर मुलायम सिंह का प्रिय दांव होता था-‘चरखा’। तब किसने सोचा था कि धोबी पछाड़ का यही दांव वे राजनीति में अपनाएंगे। बाद में उन्होंने आगरा से एमए की डिग्री ली और कुछ समय के लिए अध्यापक हो गए।

लोहिया के आंदोलन में पहली बार बार जेल गए थे मुलायम

इटावा के सैफई गांव में जन्मे मुलायम सिंह यादव का शुरुआती जीवन इसी जिले के आसपास गुजरा। यहीं उनकी शुरुआती पढ़ाई हुई और इटावा के केके कॉलेज से बीए और बीटी की डिग्री ली। यहीं पर वे लोहिया की समाजवादी विचारधारा के संपर्क में आए और यहीं वे ‘छात्र संघ’ के अध्यक्ष भी बने। बताते हैं कि जब वे महज 14 साल के थे तो लोहिया ने सिंचाई शुल्क में बढ़ोतरी के खिलाफ आंदोलन चलाया था और मुलायम उस आंदोलन के लिए पहली बार जेल गए। हालांकि उनकी राजनीति का आगाज इतने भर से नहीं हुआ। 

समाजवाद के लिए उर्वर बनाई थी यूपी की सियासी जमीन

समाजवादी पार्टी के संस्थापक रहे मुलायम सिंह यादव का पिछले साल 10 अक्टूबर को निधन हो गया था। उनके निधन के साथ ही प्रदेश और देश की राजनीति में एक युग का अवसान हो गया। बात उन दिनों की है जब राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण से लेकर चौधरी चरण सिंह तक के साथ काम करने वाले मुलायम सिंह यादव ने यूपी की सियासी जमीन को समाजवाद के लिए उर्वर बनाया था। जवानी के दिनों में अखाड़े में पहलवानी करने वाले मुलायम सिंह यादव सियासत में भी अपने चरखा दांव के लिए मशहूर थे। तीन बार यूपी के सीएम रहे मुलायम के सियासी जीवन में उतार-चढ़ाव जरूर आए, लेकिन वह अपने समर्थकों के लिए हमेशा नेताजी बने रहे। 

अर्जुन सिंह भदौरिया ने सिखाया समाजवाद का ककहरा

इटावा के मशहूर समाजवादी नेता अर्जुन सिंह भदौरिया ‘कमांडर’ ने उन्हें समाजवाद के पूरे ककहरे से परिचित कराया। 1967 का विधानसभा चुनाव हुआ तो जसवंत नगर से नत्थू सिंह को टिकट दिया गया, लेकिन अपनी उम्र की दुहाई देकर नत्थू सिंह ने अपनी जगह मुलायम सिंह को टिकट देने को कहा। अपना पहला ही विधानसभा चुनाव मुलायम सिंह जीत गए और उसके बाद आठ बार उस क्षेत्र के विधायक बने। इस पहली जीत का जब उनके गांव सैफई में जश्न मनाया जा रहा था तो वहां गोली चल गई। 

2012 के चुनाव के बाद बेटे को सौंप दी बागडोर

आखिरकार 2003 में मुलायम सिंह बसपा को तोड़ने और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब हो गए। वे उस समय लोकसभा सदस्य थे और जब उन्होंने गुन्नौर से विधानसभा चुनाव लड़ा तो वे रिकॉर्ड मतों से जीते। यह उनका सबसे लंबा कार्यकाल था, जो साढ़े तीन साल तक चला। इसके बाद 2012 के चुनाव में जब उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला तो उन्होंने बागडोर अपने बेटे अखिलेश को सौंप दी। अखिलेश ने जल्द ही सरकार ही नहीं पार्टी पर भी पूरी पकड़ बना ली। उनके कार्यकाल के आखिर में जब पार्टी और परिवार दोनों में विभाजन रेखाएं उभरीं तो अखिलेश अपने पिता को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाकर खुद अध्यक्ष बन गए। हालांकि बाद में मुलायम सिंह सबको साथ जोड़ने में कामयाब रहे।  

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