खीरी में तैयार हो रहे रेशम की बंगाल और वाराणसी तक सप्लाई, बन रहीं रेशमी साड़ियां
Lakhimpur-khiri News - लखीमपुर खीरी जिले में रेशम की मांग तेजी से बढ़ रही है। यहां के रेशम से बनी साड़ियां पश्चिम बंगाल से लेकर वाराणसी तक लोकप्रिय हैं। लगभग 3800 किसान रेशम कीट उत्पादन में जुड़े हैं, और सैदापुर देवकली का...

लखीमपुर। खीरी जिले में बन रहे रेशम की मांग पश्चिम बंगाल से लेकर वाराणसी तक है। यहां के बने रेशम से साड़ियां बन रही हैं और रेशम कीट उत्पादन में खीरी पांचवे स्थान पर पहुंच गया है। जिले में 3800 किसान रेशम कीट उत्पादन से जुड़े हैं। लखीमपुर के सैदापुर देवकली में स्थित कीट पालन केंद्र, राजकीय रेशम फार्म लगभग 24 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। यह केंद्र मुख्य रूप से रेशम की उपज के लिए आवश्यक शहतूत के पौधों के चारे के उत्पादन में अहम भूमिका निभा रहा है। सैदापुर की तरह जिले के मितौली, मोहम्मदी, तेंदुआ और मैगलगंज में भी रेशम उत्पादन के केंद्र स्थापित हैं लेकिन सैदापुर देवकली का यह केंद्र सबसे पुराना और बड़ा माना जाता है।
यहां काम करने वाले कर्मचारी बताते हैं कि यह केंद्र शुरू से ही रेशम उत्पादन में लगा हुआ है। रामचंद्र और ओमप्रकाश जैसे पुराने कर्मचारी बताते हैं कि उन्होंने इस केंद्र में 1983 के आसपास काम करना शुरू किया था और तब से यह उद्योग लगातार चल रहा है। रेशम उत्पादन की प्रक्रिया की शुरुआत रेशम के कीड़ों को शहतूत की पत्तियों के साथ विशेष दवा (आरके) मिलाकर रखने से होती है। यह कीड़े मालदा व मेरठ जैसी जगहों से लाए जाते हैं। सैदापुर देवकली के अलावा, यह कार्य मितौली, सायपुर जागीर मोहम्मदी, तेंदुआ, धर्मखेड़ा व मैगलगंज आदि इलाकों में भी किया जाता है। छोटे अंडों से लेकर कीड़ों को बड़ा करने तक इस प्रक्रिया में करीब एक माह का समय लग जाता है। सबसे पहले बाहर से आए कीड़ों को 10 दिनों तक सेटर पर शहतूत की पत्तियों के साथ रखा जाता है। लगभग 20 दिनों के अंतराल में कीड़े बड़े होकर अपने चारों ओर रेशम का गोला (कोकून) बना लेते हैं। इसके बाद किसान कोकून को विभाग को वापस सौंपते हैं। विभाग के कर्मचारी कोकून को सुखाने की प्रक्रिया में डालते हैं, जिससे कीड़ा अंदर मर जाता है और रेशम तैयार हो जाता है। फिर इस तैयार कोकून को व्यापारी या सरकारी विभाग को बेचा जाता है। किसानों को उनकी उपज की गुणवत्ता के आधार पर भुगतान किया जाता है। तैयार रेशम की बाजार में भारी मांग अच्छी क्वालिटी का रेशम कोकून 300 से 400 रुपये प्रति किलो, मध्यम क्वालिटी का रेशम कोकून 200 से 250 रुपये प्रति किलो बिकता है। यहां काम करने वाले लोग बताते है कि सैदापुर राजकीय रेशम कीट पालन पर पीले और सफेद, दोनों प्रकार के रेशम का उत्पादन किया जाता है। यहां तैयार होने वाला रेशम न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि अन्य स्थानों पर भी साड़ियों और कपड़ों के निर्माण में उपयोग किए जाते हैं। सैदापुर देवकली का यह केंद्र आज भी अपनी मेहनत और गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। साल में रेशम की लगभग चार फसलें होती है। जिले में कई प्रदेशों से व्यापारी रेशम लेने आते है। इन व्यापारियों में पश्चिम बंगाल के मालदा, मुर्शिदाबाद और बनारस के व्यापारियों की संख्या अधिक है। वहीं, रेशम कीट उत्पादन में खीरी जिला प्रदेश में पांचवें स्थान पर है। जिले में पांच स्थानों पर रेशम कीट के भोजन के लिए लगभग 70 एकड़ में शहतूत के पेड़ों की खेती की जाती है। - अरविन्द कुमार, उप निदेशक (रेशम)
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