Challenges Faced by Newspaper Distributors A Glimpse into Their Lives बोले कानपुर : दुश्वारियों की बारिश झेल रहे हैं सरकार, छत की दरकार, Kanpur Hindi News - Hindustan
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बोले कानपुर : दुश्वारियों की बारिश झेल रहे हैं सरकार, छत की दरकार

Kanpur News - अखबार वितरक शहर के हर घर से जुड़े होते हैं, जो सुबह जल्दी ताजा समाचार पहुंचाते हैं। उनकी समस्याएं जैसे स्वास्थ्य सेवा, आवास और बुनियादी सुविधाओं की कमी है। अखबार वितरकों की जिंदगी रात 2 बजे से शुरू...

Newswrap हिन्दुस्तान, कानपुरThu, 27 Feb 2025 02:03 AM
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बोले कानपुर : दुश्वारियों की बारिश झेल रहे हैं सरकार, छत की दरकार

अखबार वितरकों का कमोबेश शहर के हर घर से एक रिश्ता होता है। यह सुबह ‘भइया जी पेपर के साथ शुरू होता है। सर्दी, गर्मी या बरसात में ताजा खबरों को सुबह की चाय के समय जरूर पहुंचाते हैं। आम से लेकर खास के दरवाजे यह जरूर पहुंचते हैं। वितरक वर्ग खुद को समाज में दोयम दर्जे का मानता है। उनकी आर्थिक क्षमता इतनी नहीं है कि वह एक आशियाना तक बना सकें। शहर के वितरकों ने अपना यह दर्द आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान के साथ साझा किया। कभी आपने उन समाचार पत्र वितरकों का दर्द जानने की कोशिश की है जो आपको सारे जहां का समाचार अहले सुबह ही दे जाते हैं? जब 99.9 प्रतिशत शहर सो रहा होता है तो हॉकर आपके घरों तक अखबार पहुंचाने को बेताब दिखते हैं। चाहे भीषण गर्मी हो या कड़ाके की सर्दी। बरसात हो या घना कोहरा। इन्होंने कभी मौसम की परवाह नहीं की। जैसे-जैसे रात गहरी होती है, लोग गहरी निद्रा में गोते लगाने लगते हैं। कोई ऐसे में उनसे कह दे कि रात में दो बजे आपको ड्यूटी पर जाना है तो हो सकता है उनके होश उड़ जाएं। रोज-रोज कह दें तो हो सकता है ऐसा काम ही छोड़ दें। मगर समाचार पत्र वितरकों की जिंदगी हर रात दो बजे से ही शुरू होती है। ढाई बजे तक वह अपने नजदीकी सेंटरों पर होते हैं। सुबह छह या सात बजे जब लोग सोकर उठते हैं तो किसी के गेट के नीचे से अखबार आ चुका होता है तो किसी को बालकनी में पड़ा मिल जाता है। वितरक ऐसा रोज कैसे कर लेते हैं? उनके भी परिवार हैं...बच्चे हैं...मां-बाप भी होंगे, वो भी कभी बीमार पड़ते होंगे....उनके भी बच्चे किसी स्कूल में जाते होंगे...। आखिर किस तरह वह सारा प्रबंध करते होंगे? उनकी समस्याएं क्या हैं...उनका दर्द क्या है? यही सब बातें विस्तार से जानने के लिए आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान की टीम समाचार पत्र विक्रेताओं से बात करने पहुंची तो उन्होंने अपने दर्द को साझा किया। बताते वक्त किसी आंखों से आंसू छलक पड़े तो किसी के रोंगटे खड़े हो गए। समाचार पत्र विक्रेता संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष सुरेंद्र यादव कहते हैं कि जिले के आला अधिकारी हमें हाशिए पर खड़ा देखते हैं। अगर हमारा आयुष्मान कार्ड ही बन जाता तो कम से कम इलाज का खर्च तो नहीं झेलना पड़ता।

हम मांगें तो उठाते हैं मगर तरजीह नहीं मिलती : शहर में अखबारों के वितरण के कुल 16 सेंटर हैं, जहां सहयोगियों समेत 1,500पत्र वितरक हर रात ढाई बजे पहुंचते हैं। अखबारों की चार लाख प्रतियां लेकर शहर में घर-घर पहुंचते हैं। हैरानी की बात है सेंटरों पर वितरकों के लिए कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है। जबकि हर एक सेंटर पर 50 से 200 हॉकरों का आना-जाना रहता है। ऐसे में वितरक हर रोज बिजली, पानी और शौचालय की सुविधाओं से जूझते हैं। सेंटरों पर शेड न होने से गर्मी, जाड़ा और बरसात की सांसत झेलते हैं। समाचार पत्र विक्रेता संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष सुरेंद्र यादव का कहना है कि अपनी समस्याओं को लेकर हॉकर समाज प्रशासन के समक्ष अपनी मांगे उठाते हैं, लेकिन उनकी मांगों को तरजीह नहीं मिलती है। इससे वितरकों की समस्याओं का निराकरण नहीं हो पा रहा है।

बोले वितरक

समाचार पत्र वितरकों को आयुष्मान की सुविधा का लाभ दिया जाए ताकि, हॉकरों को इलाज के लिए रुपयों का मोहताज न होना पड़े और कर्ज न लेना पड़े।

रमाशंकर द्विवेदी

समचार पत्र वितरक आर्थिक रूप से कमजोर होता है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास के आवंटन में वितरकों को वरीयता मिलनी चाहिए।

भरत मिश्रा

अखबार के सेंटर पर सुबह तीन बजे हॉकर जाड़ा, गर्मी और बरसात में रहते हैं। सेंटर पर शेड, बिजली, पानी और शौचालय की सुविधा मिलनी चाहिए।

राजेश शुक्ला

सेंटर पर शेड की सुविधा नहीं होने से वितरकों को सड़क किनारे बैठना पड़ता है। बारिश में खुले आसमान के नीचे पॉलीथिन सीट ओढ़कर बैठना पड़ता है।

रमेश वाजपेई

वितरकों को आवास की सुविधा के साथ बच्चों को उच्च शिक्षा में निशुल्क प्रवेश की सुविधा मिलनी चाहिए। वितरक इतने रुपये नहीं कमा पाते हैं कि लाखों रुपये फीस दें।

प्रदीप त्रिपाठी

अखबार वितरकों के लिए स्वास्थ्य सेवा की अलग से सुविधा होनी चाहिए। आए दिन अखबार वितरण के समय वितरक दुर्घटना में चुटहिल हो जाते हैं।

सोमदत्त अग्निहोत्री

वितरक सुविधा संपन्न नहीं होते हैं। इसलिए वितरकों को आयुष्मान से इलाज और प्रधानमंत्री आवास योजना से आवास की सुविधा मिलनी चाहिए।

संतोष कुमार त्रिपाठी, समाचार पत्र विक्रेता सभा

वितरक अक्सर अखबार बांटते समय सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से जख्मी हो जाते हैं। घायल वितरकों को इलाज के लिए सरकारी मदद मिलनी चाहिए।

रामनरेश

65 साल उम्र है। बीमार रहता हूं। इलाज नहीं करा पा रहा हूं। आयुष्मान कार्ड 70 साल की उम्र में बनेगा। जब तक कार्ड बनेगा तब तक तो ऊपर चले जाएंगे।

लालजी वर्मा

पूरा परिवार समाचार पत्र बांटने का काम से जुड़ा है। परिवार के इलाज के लिए स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिए ताकि वितरकों को जीवनयापन करने में परेशानी न हो।

शिवम सिंह

बोले जिम्मेदार

समाचार पत्र विक्रेताओं की समस्याएं हिन्दुस्तान अखबार ने उठाई हंै। सेंटरों में टीम भेजकर गंदगी, शौचालय समेत अन्य मूलभूत सुविधाओं को दिखवाया जाएगा। समाचार पत्र विक्रेताओं की दिक्कतों को दूर कराया जाएगा।

- सुधीर कुमार, नगर आयुक्त

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