महाकुंभ में यूं प्रवाहित हुईं अदृश्य सरस्वती, करोड़ों श्रद्धालुओं के बीच विशिष्ट परंपरा हुई जीवंत
- पूरे मेला क्षेत्र में भोर होते ही कथा, प्रवचन, सत्संग का जो सिलसिला शुरू होता है तो आधी रात तक लाउडस्पीकर पर भगवत भजन सुना जा सकता है। करोड़ों श्रद्धालुओं के बीच मां सरस्वती यूं प्रवाहित हो रही हैं। शास्त्रार्थ की विशिष्ट परंपरा भी जीवंत हो उठी है।
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Maha Kumbh 2025: मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में डुबकी लगाने के लिए देश-दुनिया से करोड़ों श्रद्धालु प्रयागराज आ रहे हैं। वैसे तो सरस्वती अदृश्य हैं और उनका जिक्र वैदिक ग्रंथों में ही पढ़ने-सुनने को मिलता है लेकिन वर्तमान में संगम क्षेत्र में ज्ञान की देवी सरस्वती का प्रत्यक्ष स्वरूप देखने को मिल रहा है। पूरे मेला क्षेत्र में भोर होते ही कथा, प्रवचन, सत्संग का जो सिलसिला शुरू होता है तो आधी रात तक लाउडस्पीकर पर भगवत भजन सुना जा सकता है। करोड़ों श्रद्धालुओं के बीच मां सरस्वती यूं प्रवाहित हो रही हैं। यज्ञशालाओं में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पड़ रही आहुतियां एक अलग अनुभूति करा रही हैं। वहीं शास्त्रार्थ की विशिष्ट परंपरा भी जीवंत हो उठी है।
एक से बढ़कर एक विद्वानों, शंकराचार्यों, जगद्गुरुओं, देवाचार्यों, आचार्य महामंडलेश्वरों और कथावाचकों के मुखारबिन्दुओं से सरस्वती प्रवाहमान हैं। महाकुम्भ नगर में श्रद्धालुओं को वर्तमान में जितने सिद्धपुरुषों का सानिध्य और सत्संग मिल रहा है उतना कहीं अन्यत्र संभव नहीं है। देश-दुनिया से पधारे संतगण अपनी वाणी से लौकिक और अलौकिक दुनिया का जिस तरह साक्षात्कार करा रहे हैं उसमें यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मां सरस्वती का परोक्ष नहीं प्रत्यक्ष रूप में आशीष मिल रहा है। वसंत पंचमी पर परंपरागत रूप से मेला क्षेत्र में मां सरस्वती का विधिवत पूजन-अर्चन होगा।
महाकुम्भ में इन विद्वानों का मिला सान्निध्य
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती, शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती, शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और शंकराचार्य स्वामी विधुशेखर भारती के अलावा तुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य, जूना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि, निरंजनी पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि, देवाचार्य राजेन्द्रदास, स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, जगद्गुरु स्वामी डॉ. रामकमलदास वेदांती, चिदानंद मुनि, पद्भूषण साध्वी ऋतंधरा, देवकीनंदन ठाकुर, पुंडरीक गोस्वामी आदि के धार्मिक-आध्यात्मिक विचारों में सरस्वती स्वत प्रस्फुटित होती हैं।
कथावाचक मोरारी बापू, बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री, अनिरुद्धाचार्य, सुधांशुजी कथा कर चुके हैं। सद्गुरु जग्गी वासुदेव आकर जा चुके हैं जबकि आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर शनिवार को ही पांच दिनी दौरे पर पहुंचे हैं। इन मनीषियों के दर्शन और विचारों को आत्मसात करके लोग स्वयं को धन्य समझते हैं।