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Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़फतेहपुरImportance of Crows in Pitra Paksha Amidst Declining Population in Doaba

दोआबा में नहीं दिखाई देते यमलोक के दूत ‘कौवे

फतेहपुर में पितृ पक्ष के दौरान कौवों का विशेष महत्व है। श्राद्ध और पिंड दान के दौरान कौवों को भोजन कराया जाता है, जिससे पितरों की आत्मा को मुक्ति मिलती है। लेकिन दोआबा क्षेत्र में कौवों की संख्या कम...

Newswrap हिन्दुस्तान, फतेहपुरThu, 19 Sep 2024 06:12 PM
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फतेहपुर, संवाददाता आम दिनों में कौवों की कांव-कांव को लोग खराब मानते हैं लेकिन पितृ पक्ष में कौवों का विशेष महत्व माना जाता है। बताते हैं कि पितृ पक्ष में अपने पित्रों की आत्मा की मुक्ति के लिए श्राद, पिंड दान व जल देने का सिलसिला चलता है। साथ की कौवों को भी भोजन कराया जाता है। लेकिन दोआबा में कौवों की संख्या कम होने के कारण इस क्रिया को करने में खासी परेशानियां हो रही हैं।

यमलोक के माने जाते दूत

पितृपक्ष में कौवों का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता के अनुसार इनको यमलोक का दूत माना जाता है। जिससे पितृ पक्ष में इनके लिए भोजन रखने व कराने का भी महत्व है। बताते हैं कि कौवों को खिलाया जाने वाले भोजन से न केवल खिलाने वाले पुण्य मिलता है बल्कि पित्रों की आत्मा को भी मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि इनके आसपास होने के पीछे पित्रों के आसपास होने का संकेत मिलता है।

पितरों के निमित्त कराया जाता भोजन

आचार्य पं.कृष्णदत्त अवस्थी ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में मृत पूर्वज अपनों के साथ पृथ्वी पर 15 दिन का समय बिताने आते हैं। इस अवधि में उनका तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है, जिससे वे प्रसन्न होकर सम्पन्नता और खुशहाली का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। बताया कि पितरों को खुश करने के लिए कौवों को भोजन कराया जाता है जो सीधे पितरों को प्राप्त होता है। जिससे वह आर्शीवाद प्रदान करते हैं।

बढ़ते कंक्रीट के जंगल भी हैं कारण

दिनों दिन आबादी के साथ बढ़ते कंक्रीट के जंगल व कम होती हरियाली के कारण कौवों के प्राकृतिक आवास दिनों दिन समाप्त होते चले गए। जिससे कभी बहुतायत संख्या में दिखने वाले इलाकों से कौवे पलायन कर चुके हैं। दोआबा में कौवों की कमी इस कदर हेा चुकी है कि शहर में तो यदाकदा ही यह पक्षी दिखाई देता है जबकि ग्रामीण इलाकों में भी इनकी संख्या न के बराबर पहुंच चुकी है।

कोट...

कम होते जंगल व खेतों में रासायनिक प्रयोग के साथ ही बढ़ते नेटवर्क व बिजली की बढ़ती अद्रश्य तरंगो के कारण पक्षियों की संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है। कौवे दोआबा में काफी कम मात्रा में बचे हैं।

रुपसिंह, रेंजर प्रथम

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