बोले एटा: बिचौलियों के जाल में पिसकर टमाटर की बन रही ‘चटनी
Etah News - मारहरा क्षेत्र के किसान हर साल टमाटर की खेती से नुकसान झेल रहे हैं। फसल तैयार होने से पहले ही कीमतें गिर जाती हैं, जिससे मजदूरी और लागत भी नहीं निकल पाती। किसानों का कहना है कि सरकार को टमाटर खरीदने...
सैकडों बीघा जमीन पर लाल सोना कहे जाने वाले टमाटर की खेती हर वर्ष किसानों को नुकसान दे रही है। पौध लगाते समय उम्मीद होती है कि इस बार यह फसल बारे न्यारे कर देगी, लेकिन फसल तैयार होने से पहले आसमान पर रहने वाले भाव ऐसे हो जाते हैं कि लेबर का खर्चा भी नहीं मिल पाता। किसानों को पट्टे के दाम भी नहीं मिल पाते। हिन्दुस्तान के बोले एटा के तहत किसानों से जब इस मुद्दे पर बात की तो वह बोले सरकार की ओर से टमाटर की फसल खरीदने के लिए कोई सेंटर बनाना चाहिए। इससे किसानों को फसल का सही दाम मिल सके।
मंडी में सही दाम ना मिलने के बाद खड़ी फसल को जुतवाना पड़ता है। मारहरा क्षेत्र के 100 से अधिक गांव ऐसे हैं, जिनमें टमाटर की फसल होती है। किसान इस फसल के सहारे ही अपना काम शुरू करते है। टमाटर की सीजन के समय लगता है कि यह फसल अच्छे भाव देकर जाएगा। पिछले पंद्रह दिनों में टमाटर के भाव इतने नीचे गिरे कि किसानों ने मजबूर होकर अपनी खड़ी फसल ट्रैक्टर से जुतवा दी। मंडियों में एक क्रेट टमाटर मात्र 100 से 120 रुपये में बिक रही है। जबकि किसान को प्रति बीघा लगभग 20 से 25 हजार रुपये की लागत आती है। आमतौर पर एक बीघा में 90 से 100 क्रेट टमाटर मिलते हैं। इस बार पूर्वी हवा और झुलसा रोग ने पैदावार को 60-70 क्रेट तक सीमित कर दिया। खेती में काम करने के लिए पुरूषों के अलावा महिलाओं की भी बड़ी भूमिका रहती है। मेहनत करने के बाद भी किसानों को अच्छे रेट ना मिलने पर किसान मायूस हो जाते है। जब सभी भाव नहीं मिलता तो किसान टमाटर को खेत में जुतवाने में भी लाभ दिखता है। लेवर लगाकर टमाटर तुडवानें में अधिक खर्चा आता है। ऐसे में फसल को नष्ट कराना ही बेहतर होता है। टमाटर को एक दिन भी रोक नहीं सकते है।
अगर रोक लिया तो दूसरे दिन खराब हो जाता है। किसान की मजबूरियों का हर कोई फायदा उठाता है। “लागत भी नहीं निकली, अब खेत का किराया चुकाना भी मुश्किल”:क्षेत्र के किसानों का कहना है कि टमाटर की खेती तैयार करने में बहुत पैसा लगता है। लगात के हिसाब से आधा भी पैसा हाथ में नहीं आ पाता। किसानों के लिए यह फसल अब बेकार होती जा रही है। जिले में टमाटर से जुडी हुई कोई फैक्ट्री नहीं है। यहां पर कोई खरीददार ही नहीं आता है। किसानों को बाहर की मंडियों में बेचना पड़ता हैं। बाहर से जो एजेंट आते है वह मनमाने तरीके से टमाटर की खरीद करते है। जो रेट होता है वह किसानों को नहीं मिल पाता है। इसमें या बिचौलिए सही भाव नहीं मिलने दिया जाता है। यहां पर कोई फैक्ट्री हो तो किसानों की खपत यहीं पर हो जाए। इससे किसानों को सही पैसा भी मिल जाए।
किसानों का कहना है कि अगर यही हाल रहा तो किसान टमाटर की खेती को छोड़कर दूसरी फसलें करने लगेंगे। दिन रात काम करने के बाद भी वह पैसा नहीं मिल पाता जो मिलना चाहिए। किसानों का कहना है कि टमाटर की खेती के लिए मजदूरी का काफी लागत आती है, क्योंकि जब टमाटर टूटता है वह मजदूरों को एक क्रेट टमाटर तोड़ने के हिसाब से पैसा दिया जाता है। मार्च-अप्रैल में सरकार खुद कहती रही कि खुदरा महंगाई दर में गिरावट आई है, लेकिन किसानों की हालत सुधरने की बजाय और बिगड़ती चली जा रही है। टमाटर के गिरते दाम ने जहां आम उपभोक्ताओं को थोड़ी राहत तो है लेकिन, किसानों की कमर टूट रही है।
पांच बीघा खेत में टमाटर की फसल की थी। इसके लिए मैंने बंटाई पर खेत लिया था। लेकिन टमाटर के भाव ने बड़ा घाटा करा दिया। अब खेत मालिक को किराया देना भी भारी पड़ रहा है। फसल को छोड़ना पड़ा। इसके अलावा जुताई का खर्चा और बढ़ गया।
-पप्पू, किसान
टमाटर करने वाला किसान दोहरे संकट में फंसा रहता है। इस साल का नुकसान केवल एक सीजन की बात नहीं है, बल्कि इसका असर कम से कम दो साल तक सताएगा। अब तो गेहूं-धान जैसी फसलों की तरफ लौटने पर मजबूर होना पड़ेगा। इसमें नुकसान कम होता है।
-राजीव, किसान
सब्जी करने वाले किसानों के लिए सरकार की ओर से कोई योजना चलानी चाहिए, जिससे किसानों को लाभ मिल सके। जब रेट नीचे चला जाता है तो किसान कर्जे में डूब जाता है। बेचारा परेशान किसान को सिर्फ एक ही चारा दिखता है कि फसल को जुतवा दिया जाए।
-निर्देश कुमार
मारहरा के खेतों से उठती किसान की यह कराह केवल एक क्षेत्र की नहीं, बल्कि देशभर के उन लाखों किसानों की आवाज़ है जो आज भी मौसम, बाजार और व्यवस्था के भरोसे खेती कर रहे हैं। क्या अब भी किसान की लागत को न्याय मिलेगा, या हर साल यूं ही बर्बादी की फसल उगेगी।
-मुकेश कुमार
हमारे यहां पट्टा बहुत महंगा है। एक बीघा खेती सोलह हज़ार से अठारह हज़ार तक के रेट है। अब हम क्या करें लागत भी नहीं निकल पा रही है। हम लोग बाज़ार से ब्याज पर पैसे लेकर लागात लगाते हैं। पट्टे के अलावा लागत भी इतनी होती है कि फसल की कीमत भी ऊपर पहुंच जाती है।
-लाखन सिंह
टमाटर की खेती से अब दुखी हो गए है। समझ नहीं आता कि क्या करें। एक तो टमाटर का बीज बहुत महंगा आता है फिर खाद पानी तुड़ाई हमारे यहाँ जमीन बहुत महंगी है अब भाव भी नहीं मिल रहा है क्या करें। जब फसल तैयार हो जाती है टमाटर के भाव एकदम से नीचे गिर जाते है।
-हेमंत कुमार
भारत सरकार की कृषि नीति पर किसान सवाल उठा रहे है। किसान सरकार से पूछते हैं कि जब सब्जियों की खेती पर इतना जोखिम है, तो सरकार की ओर से कोई बीमा, समर्थन मूल्य या खरीद नीति क्यों नहीं बनती। क्या किसान को हर साल ऐसे ही छोड़ दिया जाएगा।
-हाकिम सिंह
सरकार का ध्यान किसानों की तरफ़ नहीं है। इस वजह से हमारे यहाँ टमाटर की फसल का उत्पादन तो बहुत है, पर भाव नहीं मिल पाता। किसान की कोई सुनने और देखने वाला नहीं है। सरकार की बातें सुनने में ही अच्छी लगती है। हकीकत में कुछ भी नहीं है।
-धनपाल सिंह
सब्जियों की फसल की भी एमएसपी होनी चाहिए। सरकार रेट तय कर स्वयं किसानों से टमाटर आदि जैसे सब्जियों की खरीद करें। इससे किसानों को नुकसान ना हो सके। टमाटर ऐसी फसल है जिसे अधिक दिनों तक रोक भी नहीं सकते है।
-भोजराज सिंह
मारहरा क्षेत्र के अलावा ब्लॉक शीतलपुर क्षेत्र के किसान भी बड़ी मात्रा में टमाटर की फसल करते है। इसकी पूरी एक बेल्ट है। जिस दिन स्थानीय मंडियों में अधिक टमाटर पहुंच जाता है उसी दिन रेट गिर जाते है। अब दूसरे देशों को जाने की कोई व्यवस्था नहीं है। पहले बाहर की बड़ी-बडी कंपनियां टमाटर को खेतों पर खरीद लेती थी। पिछले चार वर्षों से कोई कंपनी नहीं आ रही है।
-कपिल कुमार
जितने की क्रेट भर के टमाटर बिक पाते है उतनी ही तुड़ाई लेवर ले जाती है। ऐसे में टमाटर को तुड़वाने का कोई लाभ नहीं है। इसी लिए मजबूरी में किसानों को खेत की जुताई करानी पड़ती है। मारहरा क्षेत्र में लगभग पाँच हज़ार बीघा में टमाटर की फसल होती किसान खेती में क्या करेगा। व्यापार में पता होता है कि हमें कितने फीसदी लाभ होगा। लेकिन किसान की खेती का कुछ पता ही नहीं होता। जब फसल तैयार होगी तो क्या रेट बिकेगी। इससे हमेशा असमंजस की स्थिति रहती है। सरकार को रेट तय करने चाहिए।
-चन्द्रपाल सिंह
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