Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़does your child snore while sleeping at night be careful can be a victim of this infection in ear

क्‍या आपका बच्‍चा रात में लेता है खर्राटे? हो जाएं सावधान; इस संक्रमण का हो सकता है शिकार

  • आमतौर पर 8 से 10 वर्ष की अवस्था तक आते-आते इसके संकेत बहुत स्पष्ट हो जाते हैं। ऐसे बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता। उन्हें क्लॉस में शिक्षक की बातें सुनाई नहीं देती। एक ही बात बार-बार कहनी पड़ती है। सबसे ज्यादा उन बच्चों को दिक्कत होती है, जिनमें 5 वर्ष से कम अवस्था में यह बीमारी विकसित हो जाती है।

Ajay Singh हिन्दुस्तान, मनीष मिश्रा, गोरखपुरMon, 3 March 2025 05:45 AM
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क्‍या आपका बच्‍चा रात में लेता है खर्राटे? हो जाएं सावधान; इस संक्रमण का हो सकता है शिकार

अगर आपका बच्‍चा रात में खर्राटे ले, बार-बार करवट बदले और मुंह से लार टपकाए तो सावधान हो जाएं! वह संक्रमण का शिकार है और उसकी सुनने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है। करीब दो फीसदी मासूमों में यह समस्या देखने को मिल रही है। ऐसा एडनॉयड ग्रंथि बढ़ने के कारण होता है। एडनॉयड नाक के पीछे मांस का टुकड़ा होता है। सामान्यत: सर्दी-जुकाम और टॉन्सिल होने के कारण एडनॉयड में सूजन और संक्रमण हो जाता है। यह कान के पर्दे के पास तक फैल जाता है।

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नाक कान गला रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. आरएन यादव के अनुसार एडनॉयड में सूजन के कई संकेत हैं। बचपन में होने वाली इस बीमारी से किशोरावस्था या फिर युवावस्था में भी सुनने की क्षमता गंवा सकते हैं। यह बच्चे के व्यक्तित्व, शारीरिक और मानसिक विकास को भी प्रभावित करता है।

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पर्दे के पीछे जम जाता है पानी

उन्होंने बताया कि एडनॉयड से होते हुए संक्रमण कान के पर्दे तक पहुंच जाता है। कान में पर्दे के पीछे पानी जम जाता है। इससे कोलेस्टेटोमा भी हो सकता है। इस बीमारी में कान की हड्डियों में गलन शुरू हो जाती है। मासूम के सुनने की क्षमता कम हो जाती है। किशोरावस्था और व्यस्क होने तक सुनने की क्षमता जा सकती है।

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पढ़ाई में नहीं लगता मन

डॉ. यादव ने बताया कि आमतौर पर 8 से 10 वर्ष की अवस्था तक आते-आते इसके संकेत बहुत स्पष्ट हो जाते हैं। ऐसे बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता। उन्हें क्लॉस में शिक्षक की बातें सुनाई नहीं देती। परिजनों को एक ही बात बार-बार कहनी पड़ती है। सबसे ज्यादा उन बच्चों को दिक्कत होती है, जिनमें 5 वर्ष से कम अवस्था में यह बीमारी विकसित हो जाती है। ऐसे बच्चे बोलना भी नहीं सीख पातें। वे शब्दों का उच्चारण नहीं कर पाते। ओपीडी में रोजाना ऐसे छह से आठ मरीज आते हैं। इनमें बच्चे, किशोर और वयस्क तीनों शामिल हैं।

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