कॉल सेंटर संचालक इस्तेमाल कर रहा था डायलर पर पाकिस्तान का इंटरनेट, खुफिया एजेन्सियां सक्रिय
- लखनऊ फर्जी कॉल सेंटर संचालक पाकिस्तान का इंटरनेट कर रहा था। खुलासे के बाद खुफिया एजेन्सियां सक्रिय हो गई हैं। संचालक रूपेश को जल्दी ही रिमाण्ड पर लिया जाएगा।
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लखनऊ के गोमतीनगर में फर्जी कॉल सेंटर चलाने वाला संचालक रूपेश सिंह का गिरोह पाकिस्तान का इंटरनेट इस्तेमाल कर रहा था। गिरोह के पाकिस्तान में कई लोगों से सम्पर्क भी थे। वहां बैठे लोग ही गिरोह के लिए अपने यहां का इंटरनेट इस्तेमाल कर विदेशी नागरिकों से बात करवाते थे। संचालक रूपेश सिंह से पूछताछ में यह बात सामने आते ही एसटीएफ भी हैरान रह गई। काल सेन्टर के नाम पर पाकिस्तान से सम्पर्क पर फर्जीवाड़ा करने का यह पहला मामला सामने आया। इस जानकारी के बाद खुफिया एजेन्सियां भी सक्रिय हो गई है। रूपेश को जल्दी ही रिमाण्ड पर लिया जाएगा।
एसटीएफ के डिप्टी एसपी दीपक कुमार सिंह की टीम ने पश्चिम बंगाल के उत्तरपारा कोतरूंगड़ निवासी रूपेश सिंह को गोमतीनगर रेलवे स्टेशन के पास कंचन टावर में फर्जी कॉल सेन्टर चलाने के आरोप में पकड़ा था। रूपेश के साथ उसके दो साथी अभिषेक पाण्डेय और रौनक त्रिपाठी भी काम करते थे। ये लोग हेल्थ इंश्योरेंश और सब्सिडी दिलाने के नाम पर विदेशी नागरिकों को अपना शिकार बनाते थे। एसटीएफ की आईटी टीम को पता चला कि कॉल करने के लिए डायलर पर पाकिस्तान के इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा रहा था। इस पर रूपेश से रात भर सवाल जवाब किए गए। इस दौरान कई सवालों का जवाब देने में रूपेश ने एसटीएफ को खूब परेशान किया। हालांकि बाद में उसने कई जानकारियां दी।
लखनऊ में 12 जगह खोले फर्जी कॉल सेंटर
रूपेश ने एसटीएफ को बताया कि वह लोग कुछ समय बाद कॉल सेन्टर का स्थान बदल देते थे। तीन साल में लखनऊ के अंदर ही अलग-अलग 12 स्थानों पर किराए पर कमरा लेकर कॉल सेंटर खोले थे। यहां काम करने वाले युवक-युवतियों को इस कॉल सेन्टर के फर्जी होने के बारे में पता नहीं रहता था। यही वजह है कि एसटीएफ ने उन्हें अभी आरोपी नही बनाया है। इन युवक-युवतियों को 15 से 20 हजार रुपए वेतन दिया जाता था। इनमें उनका ही चयन किया जाता था जो अच्छे से अंग्रेजी बोल लेते हों। इसकी वजह यह थी कि इन लोगों को विदेशी नागरिकों से बात कर उन्हें अपने जाल में फंसाना होता था।
शिकार फंसने पर अलग से मिलता था कमीशन
रूपेश ने एसटीएफ को बताया था कि उनका जो कॉलर शिकार को फंसा लेता था तो उससे मिलने वाली पहली किस्त पर कॉलर को अच्छा कमीशन दिया जाता था। युवक-युवतियों को वहां की कार्यप्रणाली देखकर कभी कॉल सेन्टर के फर्जी होने की भनक तक नहीं लगी। उन्हें वेतन भी समय पर मिलता था। कमीशन भी बिना कहे उनके खाते में अथवा नगद दे दिया जाता था।
फरार जालसाजों की तलाश में दबिश
एसटीएफ के डिप्टी एसपी दीपक सिंह ने बताया कि रूपेश के फरार साथी अभिषेक पाण्डेय और रौनक त्रिपाठी की तलाश की जा रही है। इसमें एक जालसाज की रविवार को लोकेशन असम में मिली थी। इसकी जानकारी असम पुलिस को दी गई है। इसके अलावा एसटीएफ की एक टीम दिल्ली में है। वह फरार जालससाज का पता लगा रही है।