बोले बुलंदशहर: दूसरों का बनाते हैं आशियाना, खुद का नहीं कोई ठिकाना
Bulandsehar News - राज मिस्त्रियों की स्थिति बेहद खराब है। उन्हें उचित मजदूरी नहीं मिलती और काम भी कम मिलता है। ठेकेदारों की चालाकी के कारण उन्हें समय पर भुगतान नहीं होता। कई बुजुर्ग मिस्त्री काम की कमी से जूझ रहे हैं।...
निर्माण कार्य में लगे राज मिस्त्रियों के सामने संकट कम नहीं है। उनकी हालत मनरेगा मजदूरों से भी खराब है। जिले में 25 सौ से अधिक राजमिस्त्री मकान, दुकान के साथ-साथ बड़े-बड़े शॉपिंग कांप्लेक्स और मॉल बनाने का काम करते हैं। इन मिस्त्रियों का दर्द है कि उनके पास खुद के खड़े होने तक की जगह नहीं है। हर दिन कम मजदूरी और ठेकेदार की अपेक्षाओं दंश वह झेलने को मजबूर रहते हैं। तमाम दावों के बीच भी उन्हें पूरा मेहनताना नहीं मिल पाता। जिला बुलंदशहर में कई स्थानों पर राजमिस्त्री खड़े हुए मिल जाते हैं। इनमें से अधिकांश ऐसे हैं जो प्रतिदिन काम की तलाश में लेबर चौक आते हैं।
कुछ ऐसे भी हैं जो ठेकेदारी में काम करते हैं। यह वर्ग जो अपने हुनर से ऊंची-ऊंची इमारतें खड़ी कर देते हैं, खुद बदहाली की बुनियाद पर खड़े हैं। उनकी मेहनत से शहर के आलीशान मकान, पुल और इमारतें तो बन जाती हैं, लेकिन उनके अपने घर अधूरे ही रह जाते हैं। सुबह से शाम तक ईंट, सीमेंट और मसाले से खेलते हुए यह लोग दूसरों के लिए मजबूत आशियाने तैयार करते हैं। पर खुद के लिए सिर्फ संघर्ष ही बचता है। निर्माण कार्य में लगे इन कारीगरों की ज़िंदगी रोज़ काम मिलने और दिहाड़ी की चिंता में बीतती है। बढ़ती महंगाई के बीच उनकी आय का कोई ठिकाना नहीं और उम्र बढ़ने के साथ-साथ काम मिलने के मौके भी कम होते जाते हैं। राजमिस्त्रियों का कहना है कि उनका जीवन लगातार कठिन होता जा रहा है। जिले के कई राजगीर हर दिन काम की तलाश में इधर-उधर भटकते हैं। काम मिल जाए तो दिन भर धूप में जलते हैं। नहीं तो खाली हाथ घर लौटने की मजबूरी होती है। सुबह होते ही यह लोग निर्माण स्थलों या चौक-चौराहों पर खड़े हो जाते हैं, जहां ठेकेदार या मकान मालिक मजदूरों की तलाश में आते हैं। कोई किस्मत से काम पा जाता है तो कोई दिनभर इंतजार के बाद भी निराश लौटता है। पहले उन्हें आसानी से काम मिल जाता था। लेकिन अब आधुनिक मशीनों के चलते राजगीरों की मांग कम हो गई है। जो काम पहले हाथ से होता था, वह अब मशीनों से होने लगा है। जिससे उनकी रोज़ी-रोटी पर असर पड़ा है। कम दिहाड़ी, उस पर ठेकेदारों की चालाकी राज मिस्रियों का कहना है कि वह दिनभर कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन उसकी दिहाड़ी महज 500-600 रुपये होती है। वहीं, ठेकेदार कई बार राजगीरों को समय पर भुगतान नहीं करते। कुछ राजगीरों ने बताया कि कई बार काम कराने के बाद ठेकेदार मजदूरी देने में आनाकानी करते हैं। कुछ तो भुगतान किए बिना ही गायब हो जाते हैं। हर मौसम में राजगीरों को नहीं मिल पाता रोजगार : राज मिस्रियों ने बताया कि आमदनी महंगाई के सामने नाकाफी होती जा रही है। एक दिन काम मिलने के बाद कई दिन खाली बैठना पड़ता है। मानसून में लोग मकान नहीं बनवाते हैं और इस दौरान राज मिस्त्री या तो खाली बैठते हैं या फिर कोई दूसरा काम करने को मजबूर हो जाते हैं। यही हाल ज्यादा गर्मियों में भी होता है। इस दौरान भी निर्माण का काम बेहद कम हो जाता है। पहले की तुलना में सीमेंट, ईंट और अन्य निर्माण सामग्री के दाम बढ़ गए हैं। जिससे मकान मालिक भी मजदूरी के पैसे कम देने की कोशिश करते हैं। योजनाओं का लाभ नहीं, खुद के घर पड़े रहते अधूरे राज मिस्रियों का कहना है कि वह लोग दूसरों के लिए पक्के मकान बनाते हैं, लेकिन खुद कच्चे घरों में रहने को मजबूर हैं। कई राजगीर मिस्त्री सालों से प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। लेकिन उन्हें आज तक कोई सरकारी सहायता नहीं मिली। बरसात में टपकती छत और सर्दियों में ठिठुरती रातें उनकी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं। श्रम विभाग की योजनाओं की भी उन्हें जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार की योजनाओं की जानकारी और इनका लाभ हमें मिलने लगे तो वारे के न्यारे हो जाए। बुजुर्ग राज मिस्रियों के लिए काम की किल्लत राज मिस्त्रियों का कहना है कि 50 साल की उम्र पार कर चुके राजगीरों के लिए काम मिलना और भी मुश्किल हो जाता है। ठेकेदार और मकान मालिक युवा मजदूरों को ही प्राथमिकता देते हैं, जिससे बुजुर्ग मजदूरों को कई-कई दिन खाली बैठना पड़ता है। कई बुजुर्ग मजदूर बताते हैं कि महीने में मुश्किल से 5-10 दिन का ही काम मिल पाता है। बाकी दिन मायूसी में काटने पड़ते हैं। शारीरिक क्षमता कम होने के कारण बुजुर्ग मजदूर युवाओं के बराबर तेजी से काम नहीं कर पाते। ऐसे में उन्हें कमतर आंका जाता है और उनकी मजदूरी भी कम कर दी जाती है। जिससे उन्हें काफी परेशानियों से जूझना पड़ता है। मजदूर अड्डों पर टिन शेड न होना भी बड़ी समस्या राज मिस्त्रियों का कहना है कि हल रोज काम की तलाश में सैकड़ों लोग शहर के अलग-अलग स्थानों पर इकट्ठा होते हैं। लेकिन यहां ना तो साइकिल स्टैंड है और ना ही बरसात में सिर छुपाने की जगह। टिन शेड तक नहीं है यहां पर। इस कारण दूर गांवों से आने वाले राजगीर मिस्त्री और लेबर बरसात में भीगकर बीमार हो जाती है। इसके बाद काम पर जाने की बजाय या तो कामगारों को घर लौटना पड़ता है और कभी कभी तो अस्पताल तक जाना पड़ जाता है। राज मिस्त्रियों के मन की व्यथा काफी सालों से राज मिस्त्री का काम कर रहा हूं।आधी जिंदगी इस काम में गुजर गई। लेकिन एक दिन भी काम पर नहीं आए तो रोजी रोटी पर संकट खड़ा हो जाता है। -उमेश हर रोज केवल यही उम्मीद में आते हैं कि काम मिलेगा। लेकिन महीने में बामुश्किल 12 से 15 दिन ही काम मिल पाता है। शेष दिनों में खाली बैठकर सिर्फ और सिर्फ इंतजार किया जाता है। -गुलाब रोज काम की तलाश में राज मिस्त्री कई किलोमीटर साइकिल चलाकर गांव से शहर आते हैं। गांव में रोज काम नहीं मिलता। शहर में गांव की अपेक्षा ज्यादा दिहाड़ी और काम मिल जाता है। -सुखवीर सिंह ऑटोमैटिक मशीन जब से आ गई हैं, काम भी बहुत कम हो गया है। राज मिस्त्रियों के पास भी अब पहले जैसा काम नहीं बचा है और दूसरे किसी काम के लिए उन्होंने प्रशिक्षण नहीं लिया है। -चंगामा शिविर लगाकर हमारे रजिस्ट्रेशन श्रम विभाग में हों, जिससे सरकारी योजनाओं का लाभ प्राथमिक तौर पर मिलेगा। यह श्रम विभाग के कैंप पड़ाव स्थल पर ही लगने चाहिए। -शिव कुमार जब कई दिन काम नहीं मिलता तो उधार लेकर घर खर्च चलाना पड़ता है। अगर हम लोगों को किसी तरह का प्रशिक्षण मिल जाए तो काम ना मिलने पर भी हमें आर्थिक संकट से नही जूझना पड़ेगा। -राजेंद्र हम लोग कई बार ऊंची बिल्डिंग में सीढ़ी लगाकर या पांड़ बांधकर काम करते हैं। कभी दुर्घटना हो जाए तो मालिक उस दिन की मजदूरी देकर छुट्टी दे देता है और अपना पीछा छुड़ा लेता है। -पीयूष गांव में हम लोगों को काम मिल जाए तो हमारी दौड़-धूप भी बचेगी और पैसा भी समय से मिल सकेगा। हम लोगों को तो मनरेगा के तहत भी काम नहीं मिल पाता है। -राधेलाल श्रम विभाग में पंजीकरण हो और हम सभी का दुर्घटना बीमा करवाया जाए जिससे कोई अनहोनी होने पर हम लोग अपना इलाज करवा सकें। बुजुर्गों को आयुष्मान कार्ड दिए जाएं। -रनरोज कई बार बाहरी ठेकेदार काम करवा लेते हैं और पैसा लेकर गायब हो जाते हैं। पुलिस के पास जाओ तो सुनवाई नहीं होती। पंजीकृत ठेकेदारों की एक लिस्ट जारी की जाए। -पुनीत शहर में तीन स्थानों पर हर रोज सैकड़ों की संख्या में राज मिस्त्री के साथ साथ अन्य मजदूर काम की तलाश में आते हैं। कम से कम प्रशासन के अधिकारियों को इन स्थानों पर सुविधा तो देनी चाहिए। -विकास हमारे काम मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए। कभी कभी ठेकेदार कम दिहाड़ी देकर परेशान करता है। शिकायत पर धमकी देते हैं। -आकाश ---------------- सुझाव 1.श्रम विभाग के जरिए सभी राज मिस्त्रियों का रजिस्ट्रेशन करवाए जाएं। 2.सभी राज मिस्त्रियों का बीमा करवाया जाए। 3.पड़ाव स्थल पर पेयजल, टायलेट आदि की सुविधाएं दी जाएं। 4.राज कारीगरों को कौशल प्रशिक्षण दिया जाए, जिससे दूसरा काम करके पेट पाला जा सके। 5.पंजीकृत ठेकेदारों की जानकारी दी जाए। जिससे कारीगरों को धोखा न होने पाए। शिकायत 1.प्रतिदिन काम मिले इसकी कोई गारंटी नहीं है। 2.कई बार ठेके पर काम करने के बाद पैसा नहीं मिलता है, बाहरी ठेकेदार भाग जाते हैं। 3.राज कारीगरों का लेबर कार्ड नहीं बना है। जबकि वे भी श्रमिक कारीगर हैं। 4.काम करते समय दुर्घटना होने पर किसी तरह की मदद नही मिलती है। 5.शहर के पड़ाव स्थल पर कोई टीन शेड तक नहीं है। शौचालय की सुविधा नहीं। ------ कोट: राज मिस्रियों की समस्याओं का समाधान करना प्राथमिकता में शामिल है। जल्दी श्रम विभाग के अधिकारियों से वार्ता कर उनकी समस्याओं का समाधान कराने का प्रयास किया जाएगा। -प्रदीप चौधरी, विधायक सदर
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